COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

HAPPY NEW YEAR


सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार अनिल साह का निधन

 न्यूज@ई-मेल 
पटना : सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक व पत्रकार अनिल साह नहीं रहे। पिछले दिनों हृदय गति रूक जाने से उनका निधन हो गया। वे 72 साल के थे। आप लोकनायक जयप्रकाश नारायण के निकटतम सहयोगी थे। आप कुर्जी होली फैमिली हाॅस्पीटल के क्रेडिट मैनेजर थे और बाद में जयप्रभा हाॅस्पीटल के प्रशासक बने। कुर्जी पल्ली परिषद के माननीय सदस्य, कैथोलिक एसोसिएशन के माननीय सदस्य, कोलकाता से प्रकाशित विकली हेराल्ड के रिर्पोटर, ‘सार’ न्यूज एजेंसी के अधिकृत रिपोर्टर व ‘पवित्र हृदय का संदेश’ के लेखक थे। 
अनिल साह के पुत्र सिसिल साह बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अल्पसंख्यक विभाग के उपाध्यक्ष हैं। पत्नी स्टेला साह हार्टमन स्कूल की पूर्व शिक्षिका हैं। साथ ही, छोटा बेटा राजन साह और बेटियां हैं। अनिल साह के निधन की खबर पाकर कुर्जी होली फैमिली हाॅस्पीटल की पूर्व प्रशासिका सिस्टर ग्रेस, सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास केन्द्र की पूर्व प्रभारी सिस्टर आन डिसूजा, सिस्टर बेर्नाडेक्ट, सिस्टर रोज आदि ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी। बाद मंे प्रेरितों की रानी ईश मंदिर में 24 दिसम्बर की सुबह मिस्सा के बाद कुर्जी कब्रिस्तान में उन्हें दफन कर दिया गया। 
इस अवसर पर फादर अरुण अब्राहम, फादर सुशील साह, फादर सेराफिम जौन, फादर जौर्ज हिलारियन, फादर मैथ्यू चैम्पलानी, फादर अब्राहम पुतुमुना, फादर एंड्रू, फादर जाॅनसन केलकत, फादर केसी फिलिप, फादर फिलिप, फादर स्कारिया, फादर सेवास्टियन आदि येसु समाजी पुरोहितों ने मिस्सा किया। मुख्य अनुष्ठानकर्ता फादर अरुण अब्राहम थे। जो अनिल साह के पड़ोसी भी हैं।

फादर दीपक का निधन

पटना : फादर दीपका का निधन पिछले दिनों 13 दिसंबर को परमानंदा हॉस्पीटल, दिल्ली में हो गया। वे 61 साल के थे। उन्हें पटना में ही हाॅर्ट अटैक हुआ था। हाॅर्ट अटैक के बाद उन्हें पटना स्थित कुर्जी होली फैमिली अस्पताल सहित अन्य कई अस्पतालों में ले जाया गया, लेकिन पूर्ण रूप से ठीक ना हो पाने के कारण उन्हें दिल्ली ले जाना पड़ा, जहां डाॅक्टर उन्हें बचा नहीं सकें। 
फादर दीपक का होम पैरिश संत जोसेफ चर्च, मीरा रोड, मुम्बई है। इनका जन्म 12 सितंबर, 1954 को हुआ था। येसु समाज में 2 जनवरी, 1975 को प्रवेश किए। इनका पुरोहिताभिषेक 26 अप्रैल, 1986 को हुआ। येसु समाज की अंतिम प्रतिज्ञा 23 अप्रैल, 1995 को लिये। ईश्वर के राज में 13 दिसंबर, 2015 को चले गए। जीवन के 61 वसंत देख चुके फादर दीपक ने 39 साल की आयु में येसु समाजी के रूप में शिक्षा ली और अपना जीवन पल्ली स्तर की सेवा में लगाए। पुरोहिताभिषेक के एक साल के आनंद के बाद फादर दीपक पहली बार छात्रावास अधीक्षक के रूप में केआर हाई स्कूल, बेतिया में 1987-1989 तक रहे। संत जेवियर, पटना के उप प्राचार्य 1989-1991 तक रहे। केलीब्स हॉस्टल के सुपीरियर के रूप में सेंट जोसेफ कॉलेज त्रिची में 1992 से 1994 तक रहे। पल्ली पुरोहित व प्रधानाध्यापक, चुहड़ी में 1994-1998 तक रहे। कोषाध्यक्ष, बेतिया धर्मप्रांत में 1998-2000 तक रहे। प्रधानाध्यापक, मिशन मध्य विद्यालय, बेतिया में 2000-06 तक, सुपीरियर व प्रधानाध्यापक, राज राजेश्वर हाई स्कूल, बरबीघा में 2006-09 तक, स्टाफ जुनियरेट के रूप में एक्सटीटीआई, पटना में 2010 तक और पल्ली पुरोहित के रूप में फुलवारीशरीफ में 2010 से मृत्यु दिवस तक रहे।
निधन के बाद फादर दीपक को पटना के दीघा स्थित एक्सटीटीआई कब्र में दफना दिया गया। यहीं येसु समाज के मृतक सदस्यों को दफनाया जाता है। इसके पूर्व पटना महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष विलियम डिसूजा के नेतृत्व में धार्मिक अनुष्ठान किया गया। मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष काॅजिटेन फ्रांसिस ओस्ता, येसु समाजी, बक्सर धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष सेवास्टियन कल्लूपुरा, येसु समाजी, पटना जेसुइट के सुपेरियर फादर जोस और दिल्ली जेसुइट के प्रतिनिधि फादर टोम तथा येसु समाजी के साथ दर्जनों पुरोहित इस अवसर पर उपस्थित थे। 

सिस्टर अल्फंसा का निधन

पटना : सिस्टर अल्फंसा का निधन पिछले दिनों हो गया। सिस्टर अल्फंसा कुर्जी-बालूपर स्थित सिस्टर्स आॅफ सेक्रेट हार्ट की सिस्टर थी। ज्ञात हो कि यह धर्मप्रांतीय स्तर का काॅन्वेंट है। पटना धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष लुइस वान हुइक, येसु समाजी इसके संस्थापक हैं। बेतिया में 1929 में सिस्टर्स आॅफ सेक्रेट हार्ट के गठन के बाद इसका विस्तार यहां किया गया था। सिस्टर अल्फंसा केरल से बिहार आकर सेवा कार्य कर रही थी। सिस्टर अल्फंसा का अंतिम संस्कार कुर्जी स्थित कब्रिस्तान में कर दिया गया। इसके पूर्व पटना महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष विलियम डिसूजा के नेतृत्व में धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन किया गया। साथ ही मुजफ्फरपुर के धर्माध्यक्ष काजिटेन फ्रांसिस ओस्ता सहित कई पुरोहित भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

एनटीपीसी कर्मी की पत्नी का निधन

पटना : बाढ़ में कार्यरत एनटीपीसी कर्मी क्लारेंस लौरेंस की पत्नी शीला लौरेंस का पिछले दिनों निधन हो गया। उनका हार्ट अटैक हुआ था। पश्चिमी पटना स्थित शिवाजी नगर स्थित उनके मकान से अस्पताल ले जाते समय राह में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। वह 50 साल की थीं। शीला लौरेंस के दो लड़के और एक लड़की हैं। कुर्जी पल्ली की कब्रिस्तान में इन्हें दफनाया गया है।

आलोक कुमार की खबरें

सोमवार, 21 दिसंबर 2015

किसी को अपनों ने मारा, किसी को महंगाई ने

  • दीघा रेलवे लाइन के किनारे सरकारी जमीन पर बसायी बस्ती
  • अधिकांश हैं रविदास और मुसहर समुदाय से
  • सरकारी सुविधाओं से हैं वंचित
 खास खबर 
राजीव मणि
पटना : पश्चिमी पटना स्थित दीघा रेलवे लाइन के किनारे दलितों की एक बस्ती है। यह बस्ती विस्तार पाकर बड़ी होती जा रही है। पहले यहां कुछेक झोपडि़यां ही थीं। अब कई नयी झोपडि़यां और बन गयीं। यहां रहने वाले कुछ तो अपनों के ठुकराये हैं। दूसरी तरफ ज्यादातर बढ़ती महंगाई से तंग आकर यहां झोपड़ी बनाने को मजबूर हैं। अधिकांश का कहना है कि इन्हें कभी कोई सरकारी सहायता नहीं मिली। मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का खर्च चला रहे हैं। 
यहीं चालीस वर्षीय विजय दास अपनी पत्नी लालती (35) और चार छोटे-छोटे बच्चों के साथ रहते हैं। विजय प्राइवेट गाड़ी चलाकर हर माह तीन-चार हजार रुपए कमा लेते हैं। लालती घरों में दाई का काम करती है। वह भी हर माह करीब तीन हजार रुपए कमा लेती है। किसी तरह इनके घर का खर्च चल पाता है। लालती बताती है कि पहले वह पास के ही मुहल्ले में किराये पर रहती थी। लेकिन, महंगाई बढ़ जाने पर जब घर का खर्च चलाना मुश्किल हुआ, तो वह यहां झोपड़ी बनाकर रहने लगी। वह कहती है कि आजतक कभी कोई सरकारी मदद नहीं मिली। 
वहीं देव सहाय उर्फ सिपाही जी (67) अपनी पत्नी शारदा देवी (65) के साथ यहां झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। इनके बेटों ने इन्हें अपने साथ रखने से मना कर दिया। सिपाही जी बताते हैं कि वह पहले दीघा स्थित जूट मिल में काम करते थे। 1976 तक वहां काम किया। इसके बाद 1978 में दीघा क्षेत्र में ही किराये के मकान मेें पत्नी-बच्चों सहित रहने लगे। जब बच्चे बड़ा हुए तो उन्होंने सिपाही जी और उनकी पत्नी को घर से बाहर कर दिया। अंततः उन्हें यहां झोपड़ी बनानी पड़ी। सिपाही जी और उनकी पत्नी को वृद्धा पेंशन मिलता है। 
यहीं शिवनाथ चौधरी (40) मिलें। राजमिस्त्री का काम करते हैं। यह भी अपनी पत्नी धर्मशीला देवी (38) और बच्चों के साथ यहां रहते हैं। शिवनाथ कहते हैं कि हर दिन काम नहीं मिलने से आर्थिक तंगी बनी रहती है। धर्मशीला भी दाई का काम करती है। दाई का काम कर वह हर माह दो हजार रुपए कमा लेती है। 
इसी तरह के कई और परिवार यहां रह रहे हैं। सभी मजदूरी करते हैं। साथ ही, अधिकांश औरतें भी कुछ ना कुछ काम कर अपने पति का आर्थिक रूप से मदद करती हैं। यहां असुरक्षित झोपडि़यों में रहते हुए इन्हें असामाजिक तत्वों के साथ चोरों से भी सामना करना पड़ता है। चोरी की घटनाएं यहां आम हैं। इन सभी दलितों की मांग है कि सरकार इनके रहने की समुचित व्यवस्था करे। साथ ही राशन-किरासन भी दिये जाने की मांग ये सरकार से कर रहे हैं।

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

एक बस्ती, तीस घर, दस विधवाएं

 संक्षिप्त खबर 
पश्चिमी पटना में एक मुहल्ला है एलसीटी घाट। यहीं गंगा किनारे मुसहरों की एक बस्ती है। नाम है एलसीटी घाट मुसहरी। इस मुसहरी में करीब तीस घर हैं। और इन तीस घरों की बस्ती में दस विधवाएं ! सबकी उम्र 45 साल से कम। सभी अपने-अपने पति की मनमानी की सजा विधवा के रूप में भुगत रही हैं। सभी को शराब की लत थी। पत्नियां काफी समझाती थीं। इसके बावजूद उनकी बात वे नहीं माने। बात मानने की बात तो दूर, वे मारपीट करने लगते थे। परिणाम यह हुआ कि शराब के कारण अधिकांश क्षयरोग के शिकार हो गये। साथ ही, कालाजार व किडनी की समस्या भी। और इन्हीं रोगों से वे एक-एक कर चल बसे। 
कलासो देवी (45), गीता (30), सुशीला (40), शान्ति देवी (45), शारदा (35), तारामुनि (35) के अलावा चार अन्य महिलाएं आज विधवा हैं। सभी के छोटे-छोटे बच्चे हैं। कचरा के ढेर से कागज, लोहा, प्लास्टिक आदि चुनकर किसी तरह गुजारा चलता है। इनके पास ना लाल कार्ड है, ना पीला। विधवा पेंशन भी नहीं मिलता है। ज्ञात हो कि यह क्षेत्र उत्तरी मैनपुरा पंचायत में पड़ता है। कभी इंदिरा आवास योजना अंतर्गत इनके मकान बने थे। आज ढह रहे हैं। अब इन्हें किसी तरह की सरकारी या गैर सरकारी सहायता नहीं मिल पा रही है। भगवान भरोसे जी रहे हैं सभी। 
इस संबंध में उत्तरी मैनपुरा पंचायत के मुखिया सुधीर सिंह से बात की गई। उन्होंने बताया कि जिन महिलाओं ने आवेदन जमा कर रखा है, उनका काम जल्द ही हो जायेगा। दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव के कारण विधवा पेंशन सहित अन्य मामला अटका पड़ा था।  

डाॅक्टर ने बनाया अंधा 

दस वर्षीया सुमन जन्मजात अंधी नहीं है। एक नर्सिंग होम के डाॅक्टरों ने उसे अंधी बना दिया। जी हां, यही कहना है सुमन की माता रीता देवी का। वह बताती है कि बचपन में एकबार सुमन बीमार पड़ी थी। उसे तेज बुखार के साथ उल्टी हो रही थी। सुमन को पटना के बोरिंग रोड चैराहा स्थित एक नर्सिंग होम में ले जाया गया। वहां इलाज के दौरान उसके आंख की रौशनी खत्म हो गयी। सुमन को कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। तब सुमन मात्र चार साल की थी। सुमन एलसीटी घाट मुसहरी में रहती है। इसके पिता अर्जुन मांझी मजदूरी करते हैं। मां रीता देवी कचरा से कागज, प्लास्टिक, लोहा आदि चुनती है। 

बेटी चला रही सारा खर्च

जी हां, इसी एलसीटी घाट मुसहरी में एक बेटी ऐसी भी है, जो अपने मां-बाप सहित भाई-बहनों का सारा खर्च ना सिर्फ चला रही है, बल्कि घर बनवाने को अपने मां-बाप को पैसे भी दिये। इस बेटी का नाम है मनीषा। मनीषा मात्र 18 साल की है और महंथ स्कूल के पास होसिनी मियां के कबाड़ की दुकान पर काम करती है। छह हजार रुपए प्रतिमाह वेतन पर। मनीषा के पिता बालदेव मांझी मजदूर हैं। मां सूगापति देवी कचरा चुनने जाती है। बालदेव मांझी बताते हैं कि मनीषा हमेशा अपने घर में सहयोग करती है। अब उसकी शादी नदौल में ठीक हो गयी है। अगले साल वह शादी कर अपने घर चली जायेगी।

पर्यावरण सह पुस्तक प्रदर्शनी का समापन

दो दिवसीय पर्यावरण सह पुस्तक प्रदर्शनी का समापन पिछले दिनों हो गया। साईं-शिवम् पब्लिक स्कूल एवं शिवम् क्लाशेज की ओर से इस प्रदर्शनी का आयोजन पटना के बोरिंग रोड में किया गया था। सड़क किनारे लगी इस प्रदर्शनी की खास बात यह रही कि इसमें 30 रुपए की कोई भी किताब खरीदने पर एक पौधा बिल्कुल फ्री दिया गया। प्रदर्शनी का संचालन कर रहे एवं लालजी साहित्य प्रकाशन के लालजी सिंह ने बताया कि इस तरह की प्रदर्शनी का मकसद लोगों को साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति भी जागरूक करना है।
 और अंत में 

कैसे-कैसे बाबा !

एक बाबा हैं। उन्होंने अपना नाम रखा है भगवान ललन जी। जी हां, खुद को वे भगवान ही बताते हैं। एकबार वे कहीं से पता करते मेरे घर अपनी खबर छपवाने पहुंच गये। उन्होंने मुझे ‘‘भगवान ललन जी दर्शन होंगे’’ नामक एक परची भी दी। उस परची में यह दावा किया गया है कि ललन जी भूकंप को रोक सकते हैं। नेपाल में आये प्रलयंकारी भूकंप की तीव्रता को उन्होंने ही अपने तप से कम किया था। परची के माध्यम से वे दावा करते हैं कि संसार में झूठ, छल, अधर्म तथा पाप के बढ़ने के कारण ही इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। अतः मनुष्य को झूठ, छल, अधर्म तथा पाप का त्याग करना चाहिए। साथ ही, उन्होंने कहा कि प्रलय तीन प्रकार के होते हैं - पल में प्रलय, जल प्रलय और भूकंप।

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

दो आत्माओं का पवित्र बन्धन है विवाह

भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, यहाँ दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गया है। इसलिए कहा गया है 'धन्यो गृहस्थाश्रमः'। सद्गृहस्थ ही समाज को अनुकूल व्यवस्था एवं विकास में सहायक होने के साथ श्रेष्ठ नई पीढ़ी बनाने का भी कार्य करते हैं। वहीं अपने संसाधनों से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रमों के साधकों को वाञ्छित सहयोग देते रहते हैं। ऐसे सद्गृहस्थ बनाने के लिए विवाह को रूढ़ियों-कुरीतियों से मुक्त कराकर श्रेष्ठ संस्कार के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। युग निर्माण के अन्तर्गत विवाह संस्कार के पारिवारिक एवं सामूहिक प्रयोग सफल और उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
विवाह दो आत्माओं का पवित्र बन्धन है। दो प्राणी अपने अलग-अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं। स्त्री और पुरुष दोनों में परमात्मा ने कुछ विशेषताएँ और कुछ अपूर्णताएं दे रखी हैं। विवाह सम्मिलन से एक-दूसरे की अपूर्णताओं की अपनी विशेषताओं से पूर्ण करते हैं, इससे समग्र व्यक्तित्व का निर्माण होता है। इसलिए विवाह को सामान्यतया मानव जीवन की एक आवश्यकता माना गया है। एक-दूसरे को अपनी योग्यताओं और भावनाओं का लाभ पहुँचाते हुए गाड़ी में लगे हुए दो पहियों की तरह प्रगति-पथ पर अग्रसर होते जाना विवाह का उद्देश्य है। 
विवाह का स्वरूप आज वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं। रंग, रूप एवं वेष-विन्यास के आकर्षण को पति-पत्नि के चुनाव में प्रधानता दी जाने लगी है, यह प्रवृत्ति बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। यदि लोग इसी तरह सोचते रहे, तो दाम्पत्य-जीवन शरीर प्रधान रहने से एक प्रकार के वैध-व्यभिचार का ही रूप धारण कर लेगा। पाश्चात्य जैसी स्थिति भारत में भी आ जायेगी। शारीरिक आकर्षण की न्यूनाधिकता का अवसर सामने आने पर विवाह जल्दी-जल्दी टूटते-बनते रहेंगे। अभी पत्नि का चुनाव शारीरिक आकषर्ण को ध्यान में रखकर किये जाने की प्रथा चली है, थोड़े ही दिनों में इसकी प्रतिक्रिया पति के चुनाव में भी सामने आयेगी। तब असुन्दर पतियों को कोई पत्नि पसन्द न करेगी और उन्हें दाम्पत्य सुख से वंचित ही रहना पड़ेगा। समय रहते इस बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए और शारीरिक आकर्षण की उपेक्षा कर सद्गुणों तथा सद्भावनाओं को ही विवाह का आधार पूर्वकाल की तरह बने रहने देना चाहिए।
 विवाह के प्रकार 
ब्रह्म विवाह : दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना 'ब्रह्म विवाह' कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का "Arranged Marriage" 'ब्रह्म विवाह' का ही रूप है।
दैव विवाह : किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना 'दैव विवाह' कहलाता है।
आर्श विवाह : कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य देकर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना 'अर्श विवाह' कहलाता है।
प्रजापत्य विवाह : कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना 'प्रजापत्य विवाह' कहलाता है।
गंधर्व विवाह : परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' किया था। उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम "भारतवर्ष" बना।
असुर विवाह : कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है।
राक्षस विवाह : कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह' कहलाता है।
पैशाच विवाह : कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना 'पैशाच विवाह' कहलाता है।
साभार: विकिपीडिया

ईसाइयों ने पवित्र युख्रीस्तीय यात्रा निकाला