COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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रविवार, 29 मार्च 2015

शोषण के खिलाफ ‘उड़ान भरो औरत‘

 पुस्तक चर्चा 
राजीव मणि
मादा भ्रूण को जब 
राजी-खुशी
मार रहे होते उसके मां-बाप
और निर्दोष जान
यह पूछ भी नहीं पाती कि
मेरा क्या कसूर ?
या तुम दोनों मेरे द्वारा 
मारे जा रहे होते तो कैसा लगता ?
अपनी मासूमियत से 
कलेजे को चीर कर रख देने वाले 
ऐसे सवाल जहां होते 
कविता वहां होती। ---- (कविता वहां होती/पृष्ठ-80) 
डाॅ. लालजी प्रसाद सिंह की नयी कविता संग्रह है ‘उड़ान भरो औरत‘। नारी-शक्ति को समर्पित इस संग्रह में कुल 29 कविताएं हैं। लालजी साहित्य प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है। डाॅ. सिंह ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के हर गंभीर विषय पर न सिर्फ चोट किया है, बल्कि कई यक्ष प्रश्न भी सामने रखे हैं। 
बार-बार आपके पास जाता
हाई कोर्ट का आदेश
पर जूं नहीं रेंगती आपके कानों पर
आपका अवैध कब्जा हटाने के लिए 
कभी पुलिस नहीं मिल पाती
पर हम तो एक ही झटके में 
उजाड़ दिए गए
कर दिए गए बिल्कुल तहस-नहस 
पुलिस जैसे हमें उजाड़ने के लिए ही 
ट्रेनिंग करके फुर्सत में बैठी होती 
बताइए, आपने कैसा कानून बनाया है ? ---- (आपने कैसा कानून बनाया है ?/पृष्ठ-18) 
यह सिर्फ कविता नहीं, आम आदमी का दर्द है। गरीब, लाचार, असहाय का उपहास है। झोपडि़यों पर आलीशान बंगले की जीत है। पुलिस के साथ लठैतों का गठजोड़ है। ...... कानून के रक्षकों के समक्ष एक फरियाद है। लेकिन क्या समाज बदलेगा ? बदल रहा है ? और इससे भी बड़ा सवाल, क्या आज हम आजाद हैं ? ‘हमारी आजादी‘ में इन्हीं प्रश्नों के उत्तर तलाश रहे हैं डाॅ. सिंह। 
सेठों की तिजोरियों में 
राजनेताओं की कुर्सियों में 
अफसरों की फाइलों में
पुलिस की वर्दियों में 
भूमिपतियों की जमीनों में 
बहुबलियों की बांहों में 
या आतंकियों की बन्दूकों में ?
आखिर कहां गुम हो गई 
हमारी आजादी ? ---- (पृष्ठ-55) 
यह वही आजादी है, जिसकी तलाश सबों को है। इस कवि को भी। जंगल से लेकर किसानों की जमीन तक, गांव से लेकर शहर तक, चारो ओर ....! तभी तो अपनी कविता ‘शहर में चीता ...!‘ में डाॅ. सिंह लिखते हैं - 
‘शहर में चीता‘ 
टी.वी. पर आने वाला
यह समाचार 
सिरे से झूठा एवं उल्टा था
शहर में या शहर के पास
चीता नहीं
खुद चीता के पास
शहर पहुंच गया था
उसका जीना हराम करने को 
. . . . . . . 
महिला संवाददाता के चेहरे पर
पढ़ा जा सकता था सहज ही
भय को
किन्तु वह चीता से नहीं
आदमी से भयभीत थी
आदमी से -। ---- (पृष्ठ-23,24) 
कवि तमाम तरह की पीड़ा लिए हर कविता में भटकता दिखता है। लेकिन, इस दुख-दर्द का अंत कहीं होगा ? बजबजाती इस दुनिया में कभी खुशहाली आएगी ? इसी का जवाब ‘माली की अभिलाषा‘ शीर्षक कविता में डाॅ. सिंह खुद देना चाहते हैं - 
जब खिलखिलाता तुम्हारा फूल,
तुम क्यों नहीं चहक सकते ?
उसकी खुशबू से खुश होते लोग
तुम क्यों नहीं महक सकते ?
किन्तु ढील-चीलर के संग
तुम्हें झोपड़ी में रहना है। 
रोजी-रोटी की आस में
हर संकट को सहना है। 
क्या तुम्हें पता कुछ भी है माली ?
तुम्हारी मिट सकती कैसे बदहाली ?
. . . . . . . 
तुम्हारे पुष्प के बारे में बहुत कुछ
कह गया कवि कोई,
तुम्हारे दर्द की अनदेखी कर
उभार गया छवि कोई। 
बोलो माली - बोलो,
अब तुम्हें ही बोलना है। 
ऊपर-ऊपर देखने वालों का 
भेद तुम्हें ही खोलना है। 
. . . . . . . 
नहीं माली नहीं, तुम्हें हक अपना छीनना होगा।
शोषकों को हर हाल में दिन अपना गिनना होगा।। ---- (पृष्ठ-87,88)
डाॅ. लालजी प्रसाद सिंह की यह सर्वश्रेष्ठ कविता है। शेष सभी कविताएं अच्छी हैं। छपाई सुन्दर व स्पष्ट है। पाठकों को अवश्य पसंद आयेगी। इस कविता संग्रह की सहयोग राशि है 120 रुपए।
कविता संग्रह : उड़ान भरो औरत
कवि : डाॅ. लालजी प्रसाद सिंह
प्रकाशक : लालजी साहित्य प्रकाशन, पटना
मुद्रक : अमित प्रिंटर्स, पटना
पुस्तक प्राप्ति : 9430604818, 9905204412

माली की अभिलाषा

Dr. Lalji Prasad, Writer-Poet
 कविता 
कवि : डाॅ. लालजी प्रसाद सिंह 
ऐ माली महान !
तुम्हारे पुष्प की अभिलाषा महान !
जो चाहता रौंदाना
देशभक्तों के कदमों तले आना ।
जिसे पूजनीय बनने की नहीं चाह
जिसे प्रेमी के प्यार की नहीं परवाह ।
इसके आगे उसे नहीं कोई जिज्ञासा
उसकी आशा की यही अन्तिम भाषा ।
किसी कवि की कैसी यह कोरी कल्पना है
तुम्हारे जीवन के बारे में नहीं कोई सपना है ।
रोपते रहो फूल बस यहीं तक सोचना है
बदहाली में तुम्हें तुम्हारे बच्चों को नोचना है ।
या बिलबिलाते हों भूखे तो पेट दाब सोना है
तुमको परिवार संग जीवन भर रोना है ।
फिर कैसा है फूल तेरा उसकी कैसी अभिलाषा ?
कैसा है जीवन तेरा यह कैसी तमाशा ?
जब खिलखिलाता तुम्हारा फूल,
तुम क्यों नहीं चहक सकते ?
उसकी खुशबू से खुश होते लोग
तुम क्यों नहीं महक सकते ?
किन्तु ढील-चीलर के संग
तुम्हें झोपड़ी में रहना है । 
रोजी-रोटी की आस में 
हर संकट को सहना है ।
क्या तुम्हें पता कुछ भी है माली ?
तुम्हारी मिट सकती कैसे बदहाली ?
क्या तुम्हारा पुष्प ही सिर्फ कर सकता अभिलाषा ?
तुम कह भी नहीं सकते अपने श्रम की भाषा ?
तुम्हारे पुष्प के बारे में बहुत कुछ
कह गया कवि कोई,
तुम्हारे दर्द की अनदेखी कर
उभार गया छवि कोई।
बोलो माली - बोलो,
अब तुम्हें ही बोलना है ।
ऊपर-ऊपर देखने वालों का
भेद तुम्हें ही खोलना है ।
पूछो उनसे 
कि सृजन वाले हाथ उन्हें क्यों नहीं दीखते ?
शासक अंग्रेजों का पाठ छोड़
जन-सेवा का पाठ क्यों नहीं सीखते ?
क्या नहीं तुम्हारी अभिलाषा कि हो अपनी खुशहाली ?
रहे भरा-पूरा घर अपना चारों तरफ हरियाली ?
यदि सचमुच गणों का तंत्र यह देश 
फिर तुम्हीं क्यों सहते रहो जीवन भर क्लेश ?
तुम रहो फटेहाल फूल करते रहो भेंट !
जुल्मी इस देश को करते रहें मटियामेट !
नहीं माली नहीं, तुम्हें हक अपना छीनना होगा ।
शोषकों को हर हाल में दिन अपना गिनना होगा ।
रोपते तुम विविध फूल बनाते हो चमक
नमन तुम्हें नमन है कोटिशः है नमन ।
समझता मैं तुम्हें तुम्हारी अभिलाषा
होती नहीं किसे अच्छे जीवन की आशा ?
परिचय : डाॅ. लालजी प्रसाद सिंह महंत हनुमान शरण काॅलेज, मैनपुरा, पटना में राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष एवं बीआईटीएनए, पटना के प्रवक्ता हैं। आपकी दर्जनों कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह, उपन्यास, यात्रा-संस्मरण व बाल कहानी लालजी साहित्य प्रकाशन से प्रकाशित हो चुकी हैं। आप पुस्तक मेला के अलावा अपनी भी पुस्तक प्रदर्शनी गांव देहातों में लगाते रहे हैं।

बुधवार, 11 मार्च 2015

नीतीश सरकार में ईसाई सर्वाधिक सुरक्षित : सिसिल

Cecil  Shah
न्यूज@ई-मेल
पटना : प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के पूर्व संयोजक सिसिल साह ने मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को बहुमत सिद्ध हो जाने पर तमाम बिहारी ईसाई समुदाय की ओर से शुभकामनाएं दी है। उन्होंने आभार एवं प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि नीतीश कुमार की सरकार में ही ईसाई समुदाय सर्वाधिक सुरक्षित है। 
श्री साह ने कहा कि बिहार के ईसाइयों को अबतक हर स्तर पर नजरअंदाज किया गया है। यही वजह है कि ईसाइयों की स्थिति बेहर खराब है। राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े इस समाज को सुशासन की सरकार ही बेहतर राह दिखा सकती है। अतः मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को इसपर ध्यान देना चाहिए। 
श्री साह ने मुख्यमंत्री से मांग किया है कि ईसाई समाज से किसी बेहतर व्यक्ति को सरकार में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए जिससे कि वे इस समुदाय की विभिन्न समस्याओं के निदान हेतु सरकार के समक्ष आवाज उठा सके। उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकारों ने अल्पसंख्यकों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है।

सोमवार, 2 मार्च 2015

सभी पाठकों को होली की शुभकामनाएं


मोटी पत्नी

  Kaka  Hathrasi  
  बुरा ना मानो होली है  
काका हाथरसी

ढाई मन से कम नहीं, तौल सके तो तौल 
किसी-किसी के भाग्य में, लिखी ठौस फुटबौल
लिखी ठौस फुटबौल, न करती घर का धंधा
आठ बज गये किंतु पलंग पर पड़ा पुलंदा
कहँ ‘काका‘ कविराय, खाय वह ठूँसमठूँसा
यदि ऊपर गिर पड़े, बना दे पति का भूसा।

2.  जम और जमाई

बड़ा भयंकर जीव है, इस जग में दामाद
सास-ससुर को चूस कर, कर देता बरबाद
कर देता बरबाद, आप कुछ पियो न खाओ
मेहनत करो, कमाओ, इसको देते जाओ
कहॅं ‘काका‘ कविराय, सासरे पहुँची लाली
भेजो प्रति त्यौहार, मिठाई भर-भर थाली।
लल्ला हो इनके यहाँ, देना पड़े दहेज
लल्ली हो अपने यहाँ, तब भी कुछ तो भेज
तब भी कुछ तो भेज, हमारे चाचा मरते
रोने की एक्टिंग दिखा, कुछ लेकर टरते
‘काका‘ स्वर्ग प्रयाण करे, बिटिया की सासू
चलो दक्षिणा देउ और टपकाओ आँसू।
जीवन भर देते रहो, भरे न इनका पेट
जब मिल जायें कुँवर जी, तभी करो कुछ भेंट
तभी करो कुछ भेंट, जँवाई घर हो शादी
भेजो लड्डू, कपड़े, बर्तन, सोना-चाँदी
कह ‘काका‘, हो अपने यहाँ विवाह किसी का
तब भी इनको देउ, करो मस्तक पर टीका।
कितना भी दे दीजिये, तृप्त न हो यह शख्श
तो फिर यह दामाद है अथवा लैटर बक्स ?
अथवा लैटर बक्स, मुसीबत गले लगा ली
नित्य डालते रहो, किंतु खाली का खाली
कहँ ‘काका‘ कवि, ससुर नर्क में सीधा जाता
मृत्यु-समय यदि दर्शन दे जाये जमाता।
और अंत में तथ्य यह कैसे जायें भूल
आया हिंदू कोड बिल, इनको ही अनुकूल
इनको ही अनुकूल, मार कानूनी घिस्सा
छीन पिता की संपत्ति से, पुत्री का हिस्सा
‘काका‘ एक समान लगें, जम और जमाई
फिर भी इनसे बचने की कुछ युक्ति न पाई।।