COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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रविवार, 26 अक्तूबर 2014

महापर्व छठ की शुभकामनाएं


अब न्यूनतम पेंशन एक हजार रुपए

न्यूज@ई-मेल
पटना : अब कर्मचारी पेंशन योजना के तहत पेंशनधारकों को न्यूनतम एक हजार रुपए मासिक पेंशन मिलेगा। इसका श्रेय भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को जाता है। पिछले दिनों पटना के क्षेत्रीय कार्यालय में एक समारोह का आयोजन किया गया। केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने दीप जलाकर समारोह का उदघाटन किया। इस अवसर पर पेंशनधारकों को सम्मानित भी किया गया।
इस अवसर पर श्री पासवान ने कहा कि 3-4 सौ रुपयों से रिटायर कर्मचारियों का भविष्य कैसे संवर सकता है! इसलिए प्रधानमंत्री ने पेंशन की राशि में बढ़ोतरी कर दी है। अब किसी भी कर्मचारी को न्यूनतम एक हजार रुपए मिलेंगे। इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव, सांसद रामकृपाल यादव आदि ने भी विचार व्यक्त किए।

अब मिड डे मील में बच्चों को मिलने लगा अंडा

दानापुर : सूबे के शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल ने कहा है कि राज्य सरकार ने मिड डे मील में बच्चों को अंडा देने का निश्चय किया है। जो बच्चे शाकाहारी होंगे, उन्हें फल दिया जाएगा। सप्ताह में कितने दिन अंडे मिलेंगे और कब से मिलेंगे, इसे लेकर विचार-विमर्श किया जा रहा है। इस बीच आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को अंडा दिया जाने लगा है। 
ज्ञात हो कि दानापुर प्रखंड में 226 आंगनबाड़ी केन्द्र हैं। इन केन्द्रों पर बच्चों को अंडा मिलने लगा। वहीं प्रखंड पर्यवेक्षक एस. मिंज ने 29 बच्चों को पोशाक खरीदने के लिए प्रति बच्चे 250 रुपए दिये। कौथवां ग्राम पंचायत अन्तर्गत आंगनबाड़ी केन्द्र, कोड संख्या 44 में बच्चों को उबला अंडा खाने को दिया गया। यहां की सविता देवी सेविका और सोना देवी सहायिका हैं। 
लोगों ने बताया कि कौथवां ग्राम पंचायत के मुखिया की उपेक्षा के कारण 2006 से केन्द्र का भवन नहीं बन पा रहा है। यहां पर गैरमजरूआ आम भूमि है। यहां 40 बच्चे पढ़ते हैं। एक छोटे से कमरा में बच्चे पढ़ने को बाध्य हैं। बतौर 200 रुपए किराया दिया जाता है। आठ गर्भवती और आठ दूध पिलाने वाली मां को टेक होम राशन मिलता है। इसके अलावा सात माह पूर्ण करने वाली 40 गर्भवती महिलाओं को तीन साल तक टीएचए दिया जाता है। 14 से 18 उम्र की किशोरियों को भी टीएचए मिलता है। 
इस केन्द्र के अंतर्गत महादलित मुसहर समुदाय के लोग आते हैं। ये अंधविश्वास से ग्रस्त हैं। गरीबी काफी है। इन्दिरा आवास योजना से निर्मित उनके मकान ध्वस्त हो गए हैं। सीएम जीतन राम मांझी की बिरादरी के लोग हैं। 

हर गरीब का अपना मकान का सपना 2022 तक होगा सच 

पटना : पिछली सरकार के समय आगरा में एक जनसंगठन द्वारा आयोजित एक आमसभा में शिरकत करने आये पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने इन्दिरा आवास योजना की राशि में बढ़ोतरी करने की घोषणा की थी। इसके तहत इन्दिरा आवास योजना यानी आईएवाई से सामान्य क्षेत्र के लाभान्वितों को 70 हजार रुपए और नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लाभान्वितों को 75 हजार रुपए मिलेंगे। इस बढ़ोतरी को मोदी सरकार ने मानते हुए आईएवाई की राशि में वृद्धि कर दी है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने ऐलान किया कि अब आईएवाई के तहत सभी लाभान्वितों को सामान्य क्षेत्र में 70 हजार के बदले 95 हजार रुपए और नक्सलग्रस्त व पहाड़ी क्षेत्रों में 75 हजार के बदले एक लाख रुपए मिलेंगे। इसके बाद सामान्य क्षेत्र में 115 लाख रुपए और नक्सल क्षेत्र में 125 लाख रुपए करने की योजना भी हैं। वित्त मंत्रालय से मंजूरी मिलते ही इसे लागू कर दिया जाएगा। यह वादा भी किया गया कि हरेक गरीब के अपना मकान का सपना 2022 तक साकार कर दिया जाएगा।
अब जिनका नाम बीपीएल सूची में नहीं है, उन्हें भी ग्राम सभा की स्वीकृति से इन्दिरा आवास मिलेगा। ग्रामीण आवास मिशन के तहत आवासविहीन सभी लोगों को अगले 7 सालों में आवास उपलब्ध कराया जाएगा। इसमें आवास के साथ ही शौचालय, पीने का पानी और बिजली की भी व्यवस्था होगी। 70 हजार रुपए के साथ मजदूरी चार्ज के रूप में 15 हजार रुपए और शौचालय निर्माण के लिए 10 हजार रुपए यानी एक इंदिरा आवास पर 95 हजार रुपए दिए जायेंगे। इसी तरह नक्सलग्रस्त व पहाड़ी क्षेत्रों में 75 हजार रुपए के साथ मजदूरी चार्ज के रूप में 15 हजार रुपए और शौचालय निर्माण के लिए 10 हजार रुपए यानी एक इंदिरा आवास पर एक लाख रुपए दिए जायेंगे। 
दलित अधिकार मंच के प्रांतीय अध्यक्ष कपिलेश्वर राम ने घर का अधिकार कानून बनाने पर बल दिए हैं। साथ ही अरबन और रूरल एरिया में अधूरा निर्मित इंदिरा आवास को पूरा करवाने का आग्रह किया है। खराब अवस्था में पड़े इन्दिरा आवास के लाभान्वितों को आईएवाई से लाभ देने का आग्रह किया गया है। इसके साथ ही अरबन एरिया में जिस जमीन पर लोग रहते हैं, उसपर आईएवाई की तरह ही मकान निर्माण करवाने की राशि उपलब्ध करायी जाए। वहीं केन्द्र सरकार द्वारा इन्दिरा आवास निर्माण की संख्या में कटौती पर चिन्ता व्यक्त की गयी। 

पटना नगर निगम के दैनिक मजदूरों की जिन्दगी बेहाल

पटना : पटना नगर निगम के अंचलों में दैनिक मजदूर के रूप में काम करने वालों की संख्या काफी है। वे लंबे समय से दैनिक मजदूर की तरह काम कर रहे हैं और इसी दशा में अवकाशप्राप्त भी कर लेते हैं। ये सभी दलित व महादलित वर्ग से हैं। इन्हीं में से एक हैं नूतन अंचल के वार्ड नम्बर 15 के वैशाखी मांझी। ये दैनिक मजदूर के रूप में अपनी जिन्दगी के 30 साल खपा चुके हैं। इन्हें आजतक ना तो स्थाई किया गया और ना ही किसी तरह की पदोन्नति मिली। मजदूरी में इजाफा भी नहीं किया गया है। इनके जैसे कई अन्य मजदूर भी हैं। 
मजदूरों का वेतन 26 जून, 2014 को जमा किया गया था। इसके बाद से मजदूरों के खाते में उनका वेतन जमा नहीं किया गया। परिणाम यह निकला कि मजदूर महाजनों के द्वार पर दस्तक देने लगें। ये अधिक ब्याज पर कर्ज ले रहे हैं। इस कारण मजदूरों की माली हालत चरमराती जा रही है। 
हार्डिंग रोड, हज भवन के पीछे झोपड़पट्टी में दैनिक मजदूर वैशाली मांझी रहते हैं। इनके पुत्र सुग्गा मांझी और करीमन मांझी भी वार्ड नम्बर 15 में मजदूरी करते हैं। सुग्गा मांझी 15 साल से और करीमन मांझी 10 साल से काम कर रहे हैं। आजतक स्थायी नौकरी नहीं हुई। वैशाली मांझी के पुत्र लड्डू मांझी वार्ड नम्बर 10, रंजीत मांझी वार्ड नम्बर 11 और दामाद सोनू मांझी वार्ड नम्बर 12 में कार्यरत हैं। ये तीनों मजदूर तीन साल से काम कर रहे हैं। इन मजदूरों को 184 रुपए दैनिक मजदूरी की दर से 26 दिनों की मजदूरी 4,784 रुपए मिलते हैं।

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

फाॅरवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय में छापेमारी, अक्टूबर अंक जब्त

न्यूज@ई-मेल
पटना : हिन्दी-अंग्रेजी की मासिक पत्रिका फॉरवर्ड प्रेस के नई दिल्ली स्थित संपादकीय कार्यालय में दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने छापेमारी की और चार कर्मचारियों को उठा ले गयी। साथ ही, पत्रिका के अक्टूबर अंक को जब्त कर लिया। पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ फाॅरवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन ने गुरुवार को जारी बयान में कहा कि फाॅरवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय में वसंतकुंज थाना, दिल्ली पुलिस के स्पेशल ब्रांच के अधिकारियों द्वारा की गयी तोड़फोड़ व हमारे चार कर्मचारियों की अवैध गिरफ्तारी की हम निंदा करते हैं। फाॅरवर्ड प्रेस का अक्टूबर, 2014 अंक ‘बहुजन-श्रमण परंपरा’ विशेषांक के रूप में प्रकाशित है तथा इसमें विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों व नामचीन लेखकों के शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हैं। 
श्री रंजन ने कहा कि विशेषांक में ‘महिषासुर और दुर्गा’ की कथा को बहुजन पाठ चित्रों व लेखों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। लेकिन, अंक में कोई भी ऐसी सामग्री नहीं है, जिसे भारतीय संविधान के अनुसार आपत्तिजनक ठहराया जा सके। बहुजन पाठों के पीछे जोतिबा फूले, पेरियार, डॉ आम्बेडकर की एक लंबी परंपरा रही है। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हुए इस हमले की भर्तसना करते हुए यह भी कहना चाहते हैं कि यह कार्रवाई स्पष्ट रूप से भाजपा में शामिल ब्राह्मणवादी ताकतों के इशारे पर हुई है। 
उन्होंने कहा कि देश के दलित-पिछड़ों और आदिवासियों की पत्रिका के रूप में फाॅरवर्ड प्रेस का अस्तित्व इन ताकतों की आंखों में लंबे समय से गड़ता रहा है। फाॅरवर्ड प्रेस ने हाल के वर्षों में इन ताकतों की ओर से हुए अनेक हमले झेले हैं। इन हमलों ने हमारे नैतिक बल को और मजबूत किया है। हमें उम्मीद है कि इस संकट से मुकाबला करने में हम सक्षम साबित होंगे।

महिषासुर शहादत दिवस के कार्यक्रम में एबीबीपी छात्रों का हंगामा

9 अक्टूबर, 2014 को महिषासुर शहादत दिवस के कार्यक्रम में एबीबीपी के छात्रों ने जिस प्रकार की हिंसात्मक वारदात को अंजाम दिया, वह वाकई चिंताजनक और निंदनीय है। 9 अक्टूबर के दिन कैम्पस महिषासुर के मुद्दे पर देखते-देखते दो ध्रुवों में बंट गया। जाहिर है कि महिषासुर के समर्थक छात्रों की संख्या ज्यादा थी, परन्तु परिषद् के छात्रों ने अपने प्रायोजित कार्यक्रम के अनुसार कार्यक्रम स्थल पर हिंसात्मक उपद्रव मचाया। वे ‘भारत माता की जय’ और ‘दुर्गा माता की जय’ का नारा लगाते हुए कार्यक्रम के बीचोबीच पहुंच कर व्यवधान डालने की कोशिश करते रहे। उन्होंने कावेरी छात्रावास के शीशे और दरवाजे तोड़ दिए। महिषासुर के समर्थक छात्रों से उनकी हाथापाई भी हुई, जिसमें कई छात्र-छात्राओं को चोंटे भी आई। इस हिंसात्मक संघर्ष के क्रम में महिषासुर समर्थक छात्रों ने बराबर शांति-व्यवस्था बनाये रखने की कोशिश की।
एक घंटे चले इस कार्यक्रम में जेएनयू के लगभग सभी प्रगतिशील संगठनों के प्रतिनिधियों ने महिषासुर पर अपने-अपने विचार रखे। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद महिषासुर की जयघोष के साथ छात्रों ने जेएनयू परिसर में एक प्रोटेस्ट मार्च भी निकाला। 
गौरतलब है कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में महिषासुर शहादत दिवस मनाने की शुरुआत 2011 में एक लम्बे संघर्ष के बाद हुई। विदित है कि 2011 के दशहरा के अवसर पर आॅल इण्डिया बैकवर्ड स्टूडेंट फोरम ने प्रेमकुमार मणि द्वारा लिखित ‘किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन’ नामक आलेख जेएनयू की दीवारों पर चिपकाया। इस पोस्टर को लेकर जेएनयू में तनाव का माहौल बन गया। विद्यार्थी परिषद् के छात्रों ने इसके विरोध में विश्वविद्यालय प्रशासन से धार्मिक भावनाओं के आहत होने की शिकायत की। पूरे मामले में एक नया मोड़ तब आ गया, जब परिषद् के छात्रों ने एआईबीएसएफ के अध्यक्ष जितेन्द्र यादव और उनके साथियों पर हमला किया। जेएनयू प्रशासन ने मामले पर त्वरित कार्यवाही करते हुए हमलावर छात्रों को दण्डित करने के बजाय जितेन्द्र यादव को ही धार्मिक भावनाओं के आहत करने के आरोप में नोटिस जारी किया। बहरहाल, जेएनयू प्रशासन और सांप्रदायिक शक्तियों के गठजोड़ के विरोध में जेएनयू के छात्रों ने प्रगतिशील मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई। जएनयू प्रशासन को इस मुद्दे पर माफी मांगनी पड़ी। महीने भर चले इस गतिरोध के बाद जेएनयू के छात्रों ने इस संघर्ष में हुई जीत से उत्साहित होकर 24 अक्टूबर, 2011 को महिषासुर शहादत दिवस मनाया। तब से यह क्रम प्रत्येक वर्ष चल रहा है।
वीरेन्द्र कुमार यादव फाॅरवर्ड प्रेस के पटना संवाददाता हैं।

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

आरा में पांच महादलित महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म

आरा : बिहार के भोजपुर जिले के सिकरहटा थाना क्षेत्र में एक कबाड़ी की दुकान (कबाड़खाना) में हथियार के बल पर महादलित परिवार की पांच महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना प्रकाश में आई है। पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। 
पुलिस के अनुसार, तरारी थाना क्षेत्र में पांच महिलाएं कबाड़ चुनने के बाद उसे बेचने के लिए बुधवार की शाम पास के गांव गई थीं। कबाड़ी दुकानदार ने खुदरा पैसा नहीं होने और कुछ देर में पैसा देने की बात कह कर उन्हें रोक लिया। आरोप है कि शाम होने के बाद तीन लोगों ने हथियार के बल पर सभी महिलाओं को जबरदस्ती शराब पिलाई और उसके बाद बारी-बारी से उनके साथ दुष्कर्म किया। आरोपियों ने पीडि़तों को इस बारे में किसी से नहीं बताने की धमकी भी दी।
बदहवास महिलाएं जब देर रात घर पहुंचीं, तो उन्होंने सारी बात घरवालों को बताई। गुरुवार को इसकी सूचना पुलिस को दी गई, जिसके बाद पुलिस हरकत में आई। पुलिस ने गुरुवार देर शाम पीडि़ताओं से पूछताछ की तथा घटनास्थल पर जाकर छानबीन की।
भोजपुर के पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार ने बताया कि इस मामले में एक प्राथमिकी संबंधित थाना में दर्ज कराई गई है, जिसमें कबाड़ी दुकान के मालिक उसके कर्मचारी जग्गू और उसके भाई को आरोपी बनाया गया है। एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि पीरो के पुलिस उपाधीक्षक कृष्ण कुमार सिंह क्षेत्र में मौजूद हैं। अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है। घटना के विरोध में भाकपा (माले) के कार्यकर्ता शुक्रवार को सुबह सड़कों पर उतर आए। वे फतेहपुर-सिकरहटा मार्ग पर प्रदर्शन कर रहे हैं।

Jharkhand Govt. Has No Funds For Minority School

जान बचाने को 350 दलितों ने छोड़ा गांव

खास खबर
गया : बिहार के एक गांव के 350 से अधिक दलित अपने गांव को छोड़ कर चले गए हैं। यह गया जिले के टेकारी प्रखंड का एक पूरा गांव है। इस गांव के लगभग सौ दलित परिवार लगातार मिल रही धमकी के कारण 25 सितंबर को गांव से पलायन कर गए। पलायन करने वालों में से एक ग्रामीण लालजीत कुमार मांझी ने बताया कि एक हत्या के अभियुक्तों के परिजनों की ओर से दिए जा रहे धमकी के कारण वे सब गांव छोड़ने पर मजबूर हुए हैं।
घटना के संबंध में गया के जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल ने बताया कि जिला प्रशासन इन ग्रामीणों का विश्वास हासिल कर उन्हें गांव लौटाने के प्रयासों में जुटा है। उन्होंने बताया कि हत्या के मुख्य अभियुक्त ऋषि शर्मा को शनिवार दोपहर गिरफ्तार कर लिया गया और गांव में पुलिस बल की तैनाती कर दी गई है। साथ ही गांव के दलित टोले में पुलिस चैकी के स्थापना को भी स्वीकृति दे दी गई है।
सूचना के मुताबिक 19 सितंबर की रात महादलित समुदाय के एक युवक अर्जुन मांझी की हत्या कर दी गई थी। हत्या का संबंध सहकारी समिति (पैक्स) चुनाव से जुड़ा बताया जा रहा है।
गांव छोड़ने का सामूहिक फैसला : हत्या से संबंधित एफआईआर में गांव के ही सवर्ण जाति के सात लोग अभियुक्त हैं। ग्रामीणों के अनुसार, एफआईआर के बाद उन्हें लगातार धमकियां मिलने लगीं और फिर जब पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने में विफल रही, तो उन्होंने सामूहिक रूप से गांव छोड़ने का फैसला किया।
ग्रामीण अर्जुन मांझी के अनुसार, ग्रामीणों की योजना गया जाकर धरना देने की थी। लेकिन, प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद वे टेकारी प्रखंड स्थित मोटीवेशन सेंटर में शरण लेने को तैयार हुए। ग्रामीणों की मांग है कि सुरक्षा के लिहाज से सरकार उन्हें किसी दूसरी जगह पर बसाए। इस संबंध में जिलाधिकारी का कहना है कि ग्रामीणों को दूसरी जगह बसाना आसान है, लेकिन इससे पीडि़त परिवारों की परेशानी हल नहीं होगी।
जिलाधिकारी ने कहा कि उन्होंने ग्रामीणों से लौटने का आग्रह किया है। भविष्य में जिला प्रशासन पीडि़त परिवारों को न सिर्फ सुरक्षा मुहैया कराएगा, बल्कि उनके टोले को बिजली से जोड़ा जाएगा और वहां विकास संबंधी दूसरे कामों को जल्द से जल्द अमली जामा पहनाया जाएगा।
दूसरी ओर बिहार राज्य अनुसूचित जाति आयोग की दो सदस्यीय टीम प्रभावित लोगों से मिलकर घटना की जांच करेगी। आयोग के अध्यक्ष विद्यानंद विकल ने बताया कि उन्होंने जिला प्रशासन को दलितों की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, विकल ने यह भी कहा कि लक्ष्मणपुर बाथे और बथानी टोला के अभियुक्तों की रिहाई के कारण भी सूबे में दलित उत्पीड़न की ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं।
अमर उजाला डाॅट काॅम से साभार