COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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रविवार, 10 अगस्त 2014

शर्त थी 20 पसेरी चावल के बदले पूरी जिंदगी की गुलामी : सीएम

मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के शपथ ग्रहण के कुछ दिन बाद नौकरशाह डॉट इन के संपादक इर्शादुल हक ने उनसे लंबी बातचीत की थी। यह साक्षात्कार नौकरशाह डॉट इन से लिया गया है।
CM,  BIHAR
मुख्यमंत्री ने साफ कहा है कि मैं चूहे खाने वालों में से हूं, लेकिन दुर्भाग्य है कि कुछ लोग इसे सामाजिक मान्यता देने से कतराते हैं। समाज का एक हिस्सा तो शराब को अपना स्टेटस सिम्बल मानता है, पर जब चूहे की बात आती है, तो कुछ लोग नाक-भौं चढ़ाने लगते हैं। आज कई वर्गों में शराब चाय की तरह परोसी जाती है, जबकि इसमें कई तरह की सामाजिक बुराइयां छिपी हैं। वहीं दूसरी तरफ चूहे पारम्परिक आहार के रूप में एक वर्ग में इस्तेमाल किया जाता है, फिर भी लोग इसे बुरी नजरों से देखते हैं। सवाल यह है कि महादलित समुदाय के लोगों में खासकर मुसहर जाति के लोग सामंतवादी व्यस्था के शोषण के शिकार रहे हैं। 
पटना : मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि मेरी शादी मात्र 11 साल की उम्र में कर दी गयी। मेरे ही साथ मेरे छोटे भाई (जिनकी मौत हो गयी) की शादी तो मात्र 3 साल की उम्र में कर दी गयी थी। एक गरीब और समाज के हाशिये की बिरादरी होने के कारण मुझे कई तरह की सामाजिक यातनाएं झेलनी पड़ीं। जब मेरी शादी तय हुई, तो हमारे समाज के चलन के अनुसार, लड़का पक्ष ही लड़की पक्ष को चावल उपहार में देता था। इस प्रकार तय हुआ कि मेरी शादी में 10 पसेरी (50 किलो) चावल लड़की वालों को देना है। इस तरह दोनों भाइयों की शादी में 20 पसेरी चावल देना था। पिताजी (रामजीत राम मांझी) के लिए 20 पसेरी चावल की व्यवस्था करना असंभव था। मजबूर हो कर वह गांव के भूस्वामी के यहां पहुंचे। भूस्वामी चावल कर्ज देने पर सहमत तो हो गया, पर इस शर्त पर कि मुझे चावल के बदले उसके यहां गुलामी लिखवानी पड़ेगी। शर्तों के अनुसार, पिताजी को बाजाब्ता उस कागज पर अंगूठे का निशान लगाना था कि मैं उनके यहां नियमित मजदूर के तौर पर काम करूंगा। मेरे पिता एक बंधुआ मजदूर की पीड़ा झेल चुके थे। इसलिए उन्होंने इस बात की चिंता न की कि मेरी शादी हो या न हो, वह गुलामी के लिए बनने वाले दस्तावेज पर दस्तखत नहीं करेंगे। काफी दिन बीत गये। फिर कहीं और से मेरे पिताजी ने चावल कर्ज लिया, बदले में खुद मजदूरी करने को तैयार हुए। आज अगर मेरे नाम की गुलामी लिखवा ली गयी होती, तो मैं क्या आज यहां (मुख्यमंत्री) होता?
उन्होंने कहा कि किसी और शोषण का क्या जिक्र करूं? कोई एक हो तो कहूं। पूरा बचपन ऐसी घटनाओं से भरा है। पर मैं खुद को एक मिसाल समझता हूं और मैं मानता हूं कि तमाम बाधाओं के बावजदू मैंने शिक्षा हासिल की। इसलिए हर समाज के लोग, चाहे वह महादलित ही क्यों न हों, हर हाल में शिक्षा हासिल करें। मेरे समाज के लोग पीने-खाने पर बहुत खर्च करते हैं (उनका इशारा नशा की तरफ है)। हर परिवार यह तय करे कि अपनी थोड़ी सी आमदनी में से भी कुछ बचा कर बच्चों को पढ़ायेगा। मीडिया के रवैये की चर्चा करते हुए श्री मांझी ने कहा कि शोषण के मामले में आज भी हमारा समाज बहुत नहीं बदला है। उन्हें एक दलित से आज भी चिढ़ है। पर हम उनके रवैये पर ध्यान नहीं देते। हम काम में भरोसा करते हैं। मीडिया का एक हिस्सा, मनुवादी समाज और विरोधी दल जो चाहे बोलें, हमने विधान सभा में बोल भी दिया है। अब हमें उनके बारे में कुछ नहीं बोलना। हम काम से ही उन्हें जवाब देंगे। मैंने कहा कि उन्हें जो बोलना है, बोलते रहेंगे। हम काम करेंगे। पर मैं आप को बताऊं कि सरकार और संगठन दो चीजें होने के बावजूद लक्ष्य एक ही रखते हैं। फिर भी सरकार अपना काम करती है और संगठन अपना। लेकिन, हम संगठन के किसी भी पदाधिकारी के सुझाव को जरूर सुनेंगे। अगर उनका सुझाव अच्छा लगेगा, तो हम उस काम को करेंगे। अगर लगा कि उनका सुझाव ठीक नहीं, तो हम बिल्कुल भी उस पर अमल नहीं करेंगे।
नीतीश कुमार की चर्चा करते हुए मांझी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बहुत कुछ किया है दलितों के लिए, बच्चियों के लिए। पहले स्कूल नहीं थे, टीचर नहीं थे। अब गांव-गांव में स्कूल भी हैं और टीचर भी। सड़कें हैं और काफी गांवों में बिजली भी है। हम इस काम को जारी रखेंगे और गति देंगे। यह बात जरूर है कि एक महादलित परिवार का आदमी हमें देख कर गर्व करेगा, उसे प्रेरणा मिलेगी। हम पूरी कोशिश में हैं कि सरकार सबके विकास के लिए काम करे। नीतीश कुमार के प्रभाव के संबंध में श्री मांझी ने कहा कि नीतीश जी मुझसे कितने प्रभावित हैं, यह मुझे नहीं पता। पर इतना कह सकता हूं कि वह मुझसे प्रभावित थे, तभी तो उन्होंने और शरद यादव ने मुझ पर भरोसा किया और आज मैं यहां हूं। नहीं तो मेरे जैसे बहुत लोग थे। जहां तक नीतीश जी से मेरे प्रभावित होने की बात है, तो मैं बताऊं कि मैं 1980 से यानी 34 सालों से विधायक हूं। इन चैतीस सालों में मुझे सात मुख्यमंत्रियों के साथ काम करने का मौका मिला। लेकिन, मैंने इस दौरान किसी भी मुख्यमंत्री में इतनी ऊर्जा, इतना बड़ा विजन और मेहनत करने की इतनी ललक किसी में नहीं देखी। आज नतीजा है कि बिहार की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। मुख्यमंत्री बनने के संदर्भ में उन्होंने कहा कि मैंने अभी कहा कि मैं 1980 से विधायक हूं। इस पूरे पीरियड में सिर्फ एक टर्म मैं मंत्री नहीं रहा। वरना हर सरकार में, भले ही दो साल, तीन साल के लिए ही सही, मंत्री जरूर रहा। एक मंत्री के तौर पर किस की इच्छा नहीं होती कि वह मुख्यमंत्री बने। पर इच्छा होना या कल्पना करना एक बात है, सपना पूरा होना दूसरी बात। आज सपना पूरा हुआ।
अपनी दिनचर्या की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मैं एक साधारण इंसान हूं। सुबह चार बजे जगता हूं। सुबह में सत्तू पीना। फिर जो मिला वह खा लेना। दिन भर काम में लगे रहना। दोपहर में भोजन मिले तो करना, न मिले तो कोई बात नहीं। हां, ननवेज भी खाता हूं। मुख्यमंत्री ने साफ कहा है कि मैं चूहे खाने वालों में से हूं, लेकिन दुर्भाग्य है कि कुछ लोग इसे सामाजिक मान्यता देने से कतराते हैं। समाज का एक हिस्सा तो शराब को अपना स्टेटस सिम्बल मानता है, पर जब चूहे की बात आती है, तो कुछ लोग नाक-भौं चढ़ाने लगते हैं। आज कई वर्गों में शराब चाय की तरह परोसी जाती है, जबकि इसमें कई तरह की सामाजिक बुराइयां छिपी हैं। वहीं दूसरी तरफ चूहे पारम्परिक आहार के रूप में एक वर्ग में इस्तेमाल किया जाता है, फिर भी लोग इसे बुरी नजरों से देखते हैं। सवाल यह है कि महादलित समुदाय के लोगों में खासकर मुसहर जाति के लोग सामंतवादी व्यस्था के शोषण के शिकार रहे हैं। जीवीकोपार्जन के लिए खेती या अन्य पारम्परिक संसाधन से इस तबके को वंचित रखा गया। इस कारण इस समुदाय के लोग खेतों में कटनी के बाद छूट गये अनाज पर निर्भर करते रहे हैं, जिन्हें चूहे अपने बिलों में रखते हैं। अनाज की तलाश के क्रम में उन्हें अनाज के साथ-साथ चूहे को भी आहार के रूप में उपयोग करना पड़ता रहा है। लेकिन कभी भी चूहा खाने को इस व्यस्था ने अच्छी नजरों से नहीं देखा। लेकिन, समाज को मानसिकता बदली चाहिए और यथार्य को स्वीकार करना चाहिए।
साभार : नौकरशाह डॉट इन

शनिवार, 9 अगस्त 2014

कृष्ण और यादवों का ब्राह्मणीकरण

चंद्रभूषण सिंह यादव

इस देश की पिछड़ी जातियों में शुमार अहीर व यादव कृष्ण को अपना पूर्वज मानते हैं। इस जाति के बीच कृष्ण का नायकत्व ऐसा है कि अहीर और कृष्ण पर्यायवाची बन गए हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथों में इस यादव नायक का नाम कृष्ण, श्याम, गोपाल आदि आया है, जो यादवों के शारीरिक रंग एवं व्यवसाय से मेल खाने वाला है। बहुसंख्यक यादव सांवले या काले होते हैं, जो कि इस देश के मूल निवासियों अर्थात अनार्यों का रंग है, के होंगे, तो निश्चय ही इनके महामानव या नायक का नाम कृष्ण या श्याम होगा, जिसका शाब्दिक अर्थ काला, करिया या करियवा होगा। देश एवं हिंदू धर्म की वर्ण-व्यवस्था सवर्ण-अवर्ण या काले-गोरे के आधार पर बनी है। 
आर्यों और अनार्यों के संदर्भ में प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा की प्रसिद्ध पुस्तक ‘आर्य संस्कृति की खोज‘ का यह अंश उल्लेखनीय है - ‘‘1800 ईसा पूर्व के बाद छोटी-छोटी टोलियों में आर्यों ने भारतवर्ष में प्रवेश किया। ऋग्वेद और अवेस्ता, दोनों, प्राचीनतम ग्रंथों में आर्य शब्द पाया जाता है। ईरान शब्द का संबंध आर्य शब्द से है। ऋग्वैदिक काल में इंद्र की पूजा करने वाले आर्य कहलाते थे। ऋग्वेद के कुछ मंत्रों के अनुसार आर्यों की अपनी अलग जाति है। जिन लोगों से वे लड़ते थे, उनको काले रंग का बतलाया गया है। आर्यों को मानुषी प्रजा कहा गया है, जो अग्नि वैश्वानर की पूजा करते थे और कभी-कभी काले लोगों के घरों में आग लगा देते थे। आर्यों के देवता सोम के विषय में कहा गया है कि वह काले लोगों की हत्या करता था। उत्तर-वैदिक और वैदिकोत्तर साहित्य में आर्य से उन तीन वर्णों का बोध होता था, जो द्विज कहलाते थे। शूद्रों को आर्य की कोटि में नहीं रखा जाता था। आर्य को स्वतंत्र समझा जाता था और शूद्र को परतंत्र।‘‘
इंद्र विरुद्ध कृष्ण
हिंदुओं के प्रमुख धर्मग्रंथ ऋग्वेद का मूल देवता इंद्र है। इसके 10,552 श्लोकों में से 3,500 अर्थात ठीक एक-तिहाई इंद्र से संबंधित हैं। इंद्र और कृष्ण का मतांतर एवं युद्ध सर्वविदित है। प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत में वेदव्यास ने कृष्ण को विजेता बताया है तथा इंद्र का पराजित होना दर्शाया है। इंद्र और कृष्ण का यह युद्ध आमने-सामने लड़ा गया युद्ध नहीं है। इस युद्ध में कृष्ण द्वारा इंद्र की पूजा का विरोध किया जाता है, जिससे कुपित इंद्र अतिवृष्टि कर मथुरावासियों को डुबोने पर आमादा हैं। कृष्ण गोवर्धन पर्वत के जरिए अपने लोगों को इंद्र के कोप से बचा लेते हैं। इंद्र थककर पराजय स्वीकार कर लेता है। इस संपूर्ण घटनाक्रम में कहीं भी आमने-सामने युद्ध नहीं होता है, लेकिन अन्य हिंदू धर्मग्रंथों, विशेषकर ऋग्वेद में इस युद्ध के दौरान जघन्य हिंसा का जिक्र है तथा इंद्र को विजेता दिखाया गया है। 
ऋग्वेद मंडल-1 सूक्त 130 के 8वें श्लोक में कहा गया है कि - ‘‘हे इंद्र! युद्ध में आर्य यजमान की रक्षा करते हैं। अपने भक्तों की अनेक प्रकार से रक्षा करने वाले इंद्र उसे समस्त युद्धों में बचाते हैं एवं सुखकारी संग्रामों में उसकी रक्षा करते हैं। इंद्र ने अपने भक्तों के कल्याण के निमित्त यज्ञद्वेषियों की हिंसा की थी। इंद्र ने कृष्ण नामक असुर की काली खाल उतारकर उसे अंशुमती नदी के किनारे मारा और भस्म कर दिया। इंद्र ने सभी हिंसक मनुष्यों को नष्ट कर डाला।‘‘
ऋग्वेद के मंडल-1 के सूक्त 101 के पहले श्लोक में लिखा है कि - ‘‘गमत्विजों, जिस इंद्र ने राजा ऋजिश्वा की मित्रता के कारण कृष्ण असुर की गर्भिणी पत्नियों को मारा था, उन्हीं के स्तुतिपात्र इंद्र के उद्देश्य से हवि रूप अन्न के साथ-साथ स्तुति वचन बोला। वे कामवर्णी दाएं हाथ में बज्र धारण करते हैं। रक्षा के इच्छुक हम उन्हीं इंद्र का मरुतों सहित आह्वान करते हैं।‘‘ 
इंद्र और कृष्ण की शत्रुता की भी ऋणता को समझने के लिए ऋग्वेद के मंडल 8 सूक्त 96 के श्लोक 13, 14, 15 और 17 को भी देखना चाहिए (मूल संस्कृत श्लोक देखें शांति कुंज प्रकाशन, गायत्री परिवार, हरिद्वार द्वारा प्रकाशित वेद में)। 
ऋगवेद के श्लोक 13 - शीघ्र गतिवाला एवं दस हजार सेनाओं को साथ लेकर चलने वाला कृष्ण नामक असुर अंशुमती नदी के किनारे रहता था। इंद्र ने उस चिल्लाने वाले असुर को अपनी बुद्धि से खोजा एवं मानव हित के लिए वधकारिणी सेनाओं का नाश किया। 
श्लोक 14 - इंद्र ने कहा, मैंने अंशुमती नदी के किनारे गुफा में घूमने वाले कृष्ण असुर को देखा है, वह दीप्तिशाली सूर्य के समान जल में स्थित है। हे अभिलाषापूरक मरुतो, मैं युद्ध के लिए तुम्हें चाहता हूं। तुम युद्ध में उसे मारो। 
श्लोक 15 - तेज चलने वाला कृष्ण असुर अंशुमती नदी के किनारे दीप्तिशाली बनकर रहता था। इंद्र ने बृहस्पति की सहायता से काली एवं आक्रमण हेतु आती हुई सेनाओं का वध किया। 
श्लोक 17 - हे बज्रधारी इंद्र! तुमने वह कार्य किया है। तुमने अद्वितीय योद्धा बनकर अपने बज्र से कृष्ण का बल नष्ट किया। तुमने अपने आयुधों से कुत्स के कल्याण के लिए कृष्ण असुर को नीचे की ओर मुंह करके मारा था तथा अपनी शक्ति से शत्रुओं की गाएं प्राप्त की थीं। ( अनुवाद-वेद, विश्व बुक्स, दिल्ली प्रेस, नई दिल्ली) 
क्या कृष्ण और यादव असुर थे?
ऋग्वेद के इन श्लोकों पर कृष्णवंशीय लोगों का ध्यान शायद नहीं गया होगा। यदि गया होता, तो बहुत पहले ही तर्क-वितर्क शुरू हो गया होता। वेद में उल्लेखित असुर कृष्ण को यदुवंश शिरोमणि कृष्ण कहने पर कुछ लोग शंका व्यक्त करेंगे कि हो सकता है कि दोनों अलग-अलग व्यक्ति हों, लेकिन जब हम सम्पूर्ण प्रकरण की गहन समीक्षा करेंगे, तो यह शंका निर्मूल सिद्ध हो जाएगी, क्योंकि यदुकुलश्रेष्ठ का रंग काला था, वे गायवाले थे और यमुना तट के पास उनकी सेनाएं भी थीं। वेद के असुर कृष्ण के पास भी सेनाएं थीं। अंशुमती अर्थात् यमुना नदी के पास उनका निवास था और वह भी काले रंग एवं गाय वाला था। उसका गोवर्धन गुफा में बसेरा था। यदुवंशी कृष्ण एवं असुर कृष्ण दोनों का इंद्र से विरोध था। दोनों यज्ञ एवं इंद्र की पूजा के विरुद्ध थे। वेद में कृष्ण एवं इंद्र का यमुना के तीरे युद्ध होना, कृष्ण की गर्भिणी पत्नियों की हत्या, सम्पूर्ण सेना की हत्या, कृष्ण की काली छाल नोचकर उल्टा करके मारने और जलाने, उनकी गायों को लेने की घटना इस देश के आर्य-अनार्य युद्ध का ठीक उसी प्रकार से एक हिस्सा है, जिस तरह से महिषासुर, रावण, हिरण्यकष्यप, राजा बलि, बाणासुर, शम्बूक, बृहद्रथ के साथ छलपूर्वक युद्ध करके उन्हें मारने की घटना को महिमामंडित किया जाना। इस देश के मूल निवासियों को गुमराह करने वाले पुराणों को ब्राह्मणों ने इतिहास की संज्ञा देकर प्रचारित किया। इसी भ्रामक प्रचार का प्रतिफल है कि बहुजनों से उनके पुरखों को बुरा कहते हुए उनकी छल कर हत्या करने वालों की पूजा करवाई जा रही है।
यदुवंशी कृष्ण के असुर नायक या इस देश के अनार्य होने के अनेक प्रमाण आर्यों द्वारा लिखित इतिहास में दर्ज है। आर्यों ने अपने पुराण, स्मृति आदि लिखकर अपने वैदिक या ब्राह्मण धर्म को मजबूत बनाने का प्रयत्न किया है। पद्म पुराण में कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध एवं राजा बलि की पौत्री उषा के विवाह का प्रकरण पढ़ने को मिलता है। कृष्ण के पौत्र की पत्नी उषा के पिता का नाम बाणासुर था। बाणासुर के पूर्वज कुछ यूं थे - असुर राजा दिति के पुत्र हिरण्यकश्यप के पुत्र विरोचन के पुत्र बलि के पुत्र बाणासुर थे। उषा का यदुकुल श्रेष्ठ कृष्ण एवं रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध से प्रेम हो गया। अनिरुद्ध अपनी प्रेमिका उषा से मिलने बाणासुर के महल में चले गए। बाणासुर द्वारा अनिरुद्ध के अपने महल में मिलने की सूचना पर अनिरुद्ध को पकड़कर बांधकर पीटा गया। इस बात की जानकारी होने पर अनिरुद्ध के पिता प्रद्युम्न और वाणासुर में घमासान हुआ। जब बाणासुर को पता चला कि उनकी पुत्री उषा और अनिरुद्ध आपस में प्रेम करते हैं, तो उन्होंने युद्ध बंद कर दोनों की शादी करा दी। इस तरह से कृष्ण और असुर राज बलि एवं बाणासुर और कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न आपस में समधी हुए। अब सवाल उठता है कि यदि कृष्ण असुर कुल यानी इस देश के मूल निवासी नहीं होते, तो उनके कुल की बहू असुर कुल की कैसे बनती? श्रीकृष्ण और राजा बलि दोनों के दुश्मन इंद्र और उपेंद्र आर्य थे। कृष्ण ने इंद्र से लड़ाई लड़ी, तो बालि ने वामन रूपधार उपेंद्र (विष्णु) बलि से। राजा बलि के संदर्भ में आर्यों ने जो किस्सा गढ़ा है, वह यह है कि राजा बलि बड़े प्रतापी, वीर किंतु दानी राजा थे। आर्य नायक विष्णु आदि राजा बलि को आमने-सामने के युद्ध में परास्त नहीं कर पा रहे थे, सो विष्णु ने छल करके राजा बलि की हत्या की योजना बनाई। विष्णु ने वामन का रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। महादानी एवं महाप्रतापी राजा बलि राजी हो गए। पुराण कथा के मुताबिक, वामन वेशधारी विष्णु ने एक पग में धरती, एक पग में आकाश तथा एक पग में बलि का शरीर नापकर उन्हें अपना दास बनाकर मार डाला। कुछ विद्वान कहते हैं कि वामन ने राजा बलि के सिंहासन को दो पग में मापकर कहा कि सिंहासन ही राजसत्ता का प्रतीक है, इसलिए हमने तुम्हारा सिंहासन मापकर संपूर्ण राजसत्ता ले ली है। एक पग जो अभी बाकी है, उससे तुम्हारे शरीर को मापकर तुम्हारा शरीर लूंगा। महादानी राजा बलि ने वचन हार जाने के कारण अपनी राजसत्ता वामन विष्णु को बिना युद्ध किए सौंप दी तथा अपना शरीर भी समर्पित कर दिया। वामन वेशधारी विष्णु ने एक लाल धागे से हाथ बांधकर राजा बलि को अपनेे शिविर में लाकर मार डाला। इस लाल धागे से हाथ बांधते वक्त विष्णु ने बलि से कहा था कि तुम बहुत बलवान हो, तुम्हारे लिए यह धागा प्रतीक है कि तुम हमारे बंधक हो। तुम्हें अपने वचन के निर्वाह हेतु इस धागा को हाथ में बांधे रखना है। 
हजारों वर्ष बाद भी इस लाल धागे को इस देश के मूल निवासियों के हाथ में बांधने का प्रचलन है, जिसे रक्षासूत्र या कलावा कहते हैं। इस रक्षासूत्र या कलावा को बांधते वक्त पुरोहित उस हजार वर्ष पुरानी कथा को श्लोक में कहता है कि - ‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल - तेन त्वामि प्रतिबद्धामि रक्षे मा चल मा चल।‘ (अर्थात जिस तरह हमने दानवों के महाशक्तिशाली राजा बलि को बांधा है, उसी तरह हम तुम्हें भी बांधते हैं। स्थिर रह, स्थिर रह।) 
पुराणों के प्रमाण
दरअसल, इन पौराणिक किस्सों से यही प्रमाणित होता है कि कृष्ण, राजा बलि, राजा महिषासुर, राजा हिरण्यकश्यप आदि से विष्णु ने विभिन्न रूप धरकर इस देश के मूल निवासियों पर अपनी आर्य संस्कृति थोपने के लिए संग्राम किया था। इंद्र एवं विष्णु आर्य संस्कृति की धुरी हैं, तो कृष्ण और बलि अनार्य संस्कृति की। 
बहरहाल, कृष्ण को क्षत्रिय या आर्य मानने वाले लोगों को कृष्ण काल से पूर्व राम-रावण काल में भी अपनी स्थिति देखनी चाहिए। महाकाव्यकार वाल्मीकि ने रामायण में भी यादवों को पापी और लुटेरा बताया है तथा राम द्वारा किए गए यादव राज्य दु्रमकुल्य के विनाश को दर्शाया है।
वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड के 22वें अध्याय में राम एवं समुद्र का संवाद है। राम लंका जाने हेतु समुद्र से कहते हैं कि तुम सूख जाओ, जिससे मैं समुद्र पार कर लंका चला जाऊं। समुद्र राम को अपनी विवशता बताता है कि मैं सूख नहीं सकता, तो राम कुपित होकर प्रत्यंचा पर वाण चढ़ा लेते हैं। समुद्र राम के समक्ष उपस्थित होकर उन्हें नल-नील द्वारा पुल बनाने की राय देता है। राम समुद्र की राय पर कहते हैं कि वरुणालय मेरी बात सुनो। मेरा यह वाण अमोध है। बताओ इसे किस स्थान पर छोड़ा जाए। राम की बात सुनकर समुद्र कहता है कि ‘प्रभो! जैसे जगत में आप सर्वत्र विख्यात एवं पुण्यात्मा हैं, उसी प्रकार मेरे उत्तर की ओर दु्रमकुल्य नाम से विख्यात एक बड़ा पवित्र देश है, वहां आभीर आदि जातियों के बहुत-से मनुष्य निवास करते हैं, जिनके रूप और कर्म बड़े ही भयानक हैं। वे सबके सब पापी और लुटेरे हैं। वे लोग मेरा जल पीते हैं। उन पापाचारियों का स्पर्श मुझे प्राप्त होता रहता है, इस पाप को मैं सह नहीं सकता, श्रीराम! आप अपने इस उत्तम वाण को वहीं सफल कीजिए। महामना समुद्र का यह वचन सुनकर सागर के दियाए अनुसार उसी देश में वह अत्यंत प्रज्जवलित वाण छोड़ दिया। वह वाण जिस स्थान पर गिरा था, वह स्थान उस वाण के कारण ही पृथ्वी में दुर्गम मरुभूमि के नाम से प्रसिद्ध हुआ।‘ 
राम-रावण काल में यादवों के राज्य दु्रमकुल्य को समुद्र द्वारा पवित्र बताने तथा वहां निवास करने वाले यादवों को पापी एवं भयानक कर्म वाला लुटेरा कहने से सिद्ध हो जाता है कि यादव न आर्य हैं और न क्षत्रिय, अन्यथा वाल्मीकि और समुद्र इन्हें पापी नहीं कहते। जिस तरह से इस देश में दलितों को तालाब, कुओं आदि से पानी पीने नहीं दिया जाता था और डॉ. आम्बेडकर को महाड़ तालाब आंदोलन करना पड़ा, क्या उससे भी अधिक वीभत्स घटना यादवों के दु्रमकुल्य राज्य के साथ घटित नहीं हुई है? रामचरितमानस में भी तुलसीदास ने उत्तर कांड के 129 (1) में लिखा है कि आभीर यवन, किरात खस, स्वचादि अति अधरुपजे। अर्थात अहीर, मुसलमान, बहेलिया, खटिक, भंगी आदि पापयोनि हैं। इसी प्रकार व्यास स्मृति का रचयिता एक श्लोक में कहता है कि ‘बढ़ई, नाई, ग्वाला, चमार, कुम्भकार, बनिया, चिड़ीमार, कायस्थ, माली, कुर्मी, भंगी, कोल और चांडाल ये सभी अपवित्र हैं। इनमें से एक पर भी दृष्टि पड़ जाए तो सूर्य दर्शन करने चाहिए तब द्धिज जाति अर्थात बड़ी जातियों का एक व्यक्ति पवित्र होता है।‘ 
सहमत हैं इतिहासविद् 
इसी कारण महान इतिहासकार डीडी कौशाम्बी ने अपनी पुस्तक ‘प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता‘ में लिखा है - ‘ऋग्वेद में कृष्ण को दानव और इंद्र का शत्रु बताया गया है और उसका नाम श्याम, आर्य पूर्व लोगों का द्योतक है। कृष्णाख्यान का मूल आधार यह है कि वह एक वीर योद्धा था और यदु कबीले का देवता था। परंतु सूक्तकारों ने पंजाब के कबीलों में निरंतर चल रहे कलह से जनित तत्कालीन गुटबंदी के अनुसार, इन यदुओं को कभी धिक्कारा है, तो कभी आशीर्वाद दिया है। कृष्ण शाश्वत भी हैं और मामा कंस से बचाने के लिए उसे गोकुल में पाला गया था। इस स्थानांतरण ने उसे उन अहीरों से भी जोड़ दिया, जो ईसा की आरंभिक सदियों में ऐतिहासिक एवं पशुपालक लोग थे और जो आधुनिक अहीर जाति के पूर्वज हैं। कृष्ण गोरक्षक था, जिन यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी, उनमें कृष्ण का कभी आह्वान नहीं हुआ है, जबकि इंद्र, वरुण तथा अन्य वैदिक देवताओं का सदैव आह्वान हुआ है। ये लोग अपने पैतृक कुलदेवता को चाहे जिस चीज की बलि भेंट करते रहे हों, पर दूसरे कबीलों द्वारा उनकी इस प्रथा को अपनाने का कोई कारण नहीं था। दूसरी तरफ जो पशुचर लोग कृषि जीवन को अपना रहे थे, उन्हें इंद्र की बजाय कृष्ण को स्वीकार करने में निश्चित ही लाभ था। सीमा प्रदेश के उच्च वर्ग के लोग गौरवर्ण के थे। उनका मत था कि काला आदमी बाजार में लगाए गए काले बीजों के ढेर की भांति है और उसे शायद ही कोई ब्राह्मण समझने की भूल कर सकता है। कन्या का मूल्य देकर विवाह करने का पश्चिमोत्तर में जो रिवाज था, वह भी पूर्ववासियों को विकृत प्रतीत होता था। कन्या हरण की प्रथा थी, जिसका महाभारत के अनुसार, कृष्ण के कबीले में प्रचलन था और ऐतिहासिक अहीरों ने भी जिसे चालू रखा और जो पूर्ववासियों को विकृत लगती थी। अंततोगत्वा ब्राह्मण धर्मग्रंथों ने इन दोनों प्रकार के विवाहों को अनार्य प्रथा में कहकर निषिद्ध घोषित कर दिया।‘ 
डीडी कौशाम्बी अपनी पुस्तक में स्पष्ट करते हैं कि कृष्ण आर्यों की पशु बलि के सख्त विरोधी थे, यानी गोरक्षक थे। कृष्ण की बहन सुभद्रा से अर्जुन द्वारा भगाकर शादी करने का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार कौशाम्बी ने भी कृष्ण को अनार्य अर्थात असुर माना है।
इतिहासकार भगवतशरण उपाध्याय ने अपनी ऐतिहासिक पुस्तक ‘खून के छींटे इतिहास के पन्नों पर‘ में लिखा है कि क्षत्रियों ने ब्राह्मणों के देवता इंद्र और ब्राह्मणों के साधक यज्ञानुष्ठानों के शत्रु कृष्ण को देवोत्तर स्थान दिया। उन्होंने उसे जो क्षत्रिय भी न था, यद्यपि क्षत्रिय बनने का प्रयत्न कर रहा था, को विष्णु का अवतार माना और अधिकतर क्षत्रिय ही उस देव दुर्लभ पद के उपयुक्त समझे गए। 
उपाध्याय ने इसे भी स्पष्ट कर दिया है कि कृष्ण ब्राह्मणों के देवता इंद्र और उनके यज्ञानुष्ठानों के प्रबल विरोधी थे, जबकि वे क्षत्रिय नहीं थे। कृष्ण के बारे में उपाध्याय ने लिखा है कि वे क्षत्रिय बनने का प्रयत्न कर रहे थे। अब तक जो भी प्रमाण मिले हैं, वे यही सिद्ध करते हैं कि अहीर और कृष्ण आर्यजन नहीं थे। कृष्ण और अहीर इस देश के मूलनिवासी काले लोग थे। इनका आर्यों से संघर्ष चला है। 
ऋग्वेद कहता है कि निचुड़े हुए, गतिशील, तेज चलने वाले व दीप्तिशाली सोम काले चमड़े वाले लोगों को मारते हुए घूमते हैं, तुम उनकी स्तुति करो। ( मंडल 1 सूक्त 43) 
इस आशय के अनेक श्लोक ऋग्वेद में हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि आर्य लोग भारत के मूल निवासियों से किस हद तक नफरत करते थे तथा उन्होंने चमड़ी के रंग के आधार पर इनकी हत्याएं की हैं। यादवश्रेष्ठ कृष्ण काली चमड़ी वाले थे। इंद्र और यज्ञ विरोधी होने के लिहाज से ऋग्वेद के अनुसार, उनका संघर्ष अग्नि, सोम, इंद्र आदि से होना स्वाभाविक है। 
जिनसे जीत नहीं सकते, उन्हें अपने में मिला लो
ऋग्वेद से लेकर तमाम शास्त्रों में अहीर व अहीर नायक कृष्ण अनार्य कहे गए हैं, लेकिन इसके बावजूद जब इस देश के मूल निवासियों में कृष्ण का प्रभाव कायम रहा, तो इन आर्यों ने कृष्ण के साथ नृशंसता बरतने के बावजूद उन्हें भगवान बना दिया और कृष्णवंशीय बहादुर जाति को अपने सनातन पंथ का हिस्सा बनाने में कामयाबी हासिल कर ली। 
जब कृष्ण अनार्य थे, तो गीतोपदेश का सवाल उठना लाजिमी है। गीतोपदेश में कृष्ण ने खुद भगवान होने, ब्राह्मण श्रेष्ठता, वर्ण व्यवस्था बनाने जैसे अनेक गले न उतरने वाली बातें कही हैं। ऋग्वेद स्वयं ही गीता में उल्लेखित बातों का खंडन करता है। जब कृष्ण खुद वेद के अनुसार, असुर और इंद्रद्रोही थे, तो वे वर्ण व्यवस्था को बनाने की बात कैसे कर सकते हैं। गीता में ब्राह्मणवाद को मजबूत बनाने वाली जो भी बातें कृष्ण के मुंह से कहलवाई गई हैं, वे सत्य से परे हैं। काले, अवर्ण असुर कृष्ण कभी भी वर्ण-व्यवस्था के समर्थक नहीं हो सकते। भारत के मूल निवासियों में अमिट छाप रखने वाले कृष्ण का आभामंडल इतना विस्तृत था कि आर्यों को मजबूरी में कृष्ण को अपने भगवानों में सम्मिलित करना पड़ा। यह कार्य ठीक उसी तरह से किया गया, जिस तरह से ब्राह्मणवाद के खात्मा हेतु प्रयत्नशील रहे गौतम बुद्ध को ब्राह्मणों ने गरुड़ पुराण में कृष्ण का अवतार घोषित कर खुद में समाहित करने की चेष्टा की। 
जिस तरह से असुर कृष्ण की भारतीय संस्कृति आर्यों ने उदरस्थ कर ली, उसी तरह बुद्ध की वैज्ञानिक बातों ने हिन्दू धर्म के अवैज्ञानिक कर्मकांडों के समक्ष दम तोड़ दिया। डॉ. आम्बेडकर के बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद अब भारत में कुछ बौद्ध नजर आ रहे हैं, वरना इन आर्यों ने बुद्ध को कृष्ण का अवतार और कृष्ण को विष्णु का अवतार घोषित कर कृष्ण एवं बुद्ध को निगल लिया था। कितनी विडंबना है कि विष्णु का अवतार जिस कृष्ण को बताया गया है, वह कृष्ण लगातार वेद से लेकर महाभारत ग्रंथ में इंद्र से लड़ रहा है। 
एक सवाल उठेगा कि यदि कृष्ण आर्य या क्षत्रिय नहीं थे, तो श्रीमद्भागवद गीता में क्यों लिखा है कि यदुवंश का नाम सुनने मात्र से सारे पाप दूर हो जाते हैं। (स्कंध-9. अध्याय. 23, लोक.19) मैं इस संदर्भ में यही कहूंगा कि असुर कृष्ण अति लोकप्रिय थे। वे लोकनायक थे। उनकी लोकप्रियता इस देश के मूल निवासियों में इतनी प्रबल थी कि आर्य उन्हें उनके मन से निकाल पाने में सफल नहीं थे। 
बहरहाल, मैंने कृष्ण और यादवों के संदर्भ में कुछ तथ्य विभिन्न स्रोतों से एकत्रित कर तर्कशील पाठकों के समक्ष बहस हेतु रखा है। मैं यह सवाल अब पाठकों के लिए छोड़ रहा हूं कि कृष्ण कौन थे ? यादव किस वर्ण के हैं ? मैं समझता हूं कि ये प्रश्न अब अनुत्तरित नहीं रह गए हैं। 
लेखक परिचय : चंद्रभूषण सिंह यादव यादव समाज की प्रमुख पत्रिका ‘यादव शक्ति‘ के प्रधान संपादक हैं। यह लेख ‘फाॅरवर्ड प्रेस‘ के अगस्त, 2014 की कवर स्टोरी के रूप में प्रकाशित हो चुका है।

‘मंडल कमीशन की सभी अनुशंसाओं को लागू किये बिना पिछड़ों का उत्थान नहीं‘

  • विभिन्न मांगों के लेकर ओबीसी का दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन 
  • केन्द्रीय विद्यालयों के नामांकन में ओबीसी बच्चों को मिले 27 फीसदी आरक्षण
  • बजट में हो अलग से फंड का प्रावधान
  • ब्याज मुक्त लोन की भी हो व्यवस्था

न्यूज@ई-मेल
पिछले दिनों
नई दिल्ली : नई सरकार पर ओबीसी समुदाय के प्रति उपेक्षा का आरोप लगाते हुए मंडल दिवस की 25वीं वर्षगाठ के अवसर पर ओबीसी समुदाय ने प्रधानमंत्री से विभिन्न मांगों के लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री को एक मांग-पत्र भी सौंपा गया। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा संचालित केन्द्रीय विद्यालय, जवाहर नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूल आदि केन्द्रीय स्कूलों के नामांकन में ओबीसी बच्चों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाय। साथ ही, केन्द्रीय बजट में ओबीसी के लिए अलग से फंड का प्रावधान हो। ओबीसी उद्यमियों के लिए विशेष रियायत और पिछड़े समुदाय की दस्ताकारी-कारीगरी से जुड़ी जातियों को ब्याज मुक्त लोन दिया जाय, ताकि वे अपने व्यवसाय का आधुनिकीकरण द्वारा देश की उन्नति में योगदान कर सकें। 
ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम, जेएनयू के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में दिल्ली के प्रमुख विश्वविद्यालयों के छात्र, बुद्धिजीवी, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता शामिल हुए। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जेडीयू के सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि सरकार द्वारा मंडल कमीशन की रिपोर्ट को खंड-खंड करके लागू करने के कारण सामाजिक न्याय का सपना साकार नहीं हो पा रहा है। और अब ओबीसी में किन्नरों को शामिल करना सरासर सामाजिक न्याय के खिलाफ है। उन्होंने पुनर्याचिका दायर कर सरकार से इसे तत्काल वापस लेने की मांग की। 
इस अवसर पर आरजेडी सांसद जयप्रकाश नारायण ने कहा कि मंडल कमीशन की सभी अनुशंसाओं को लागू किये बिना पिछड़े वर्ग का उत्थान संभव नहीं है। उन्होंने सामाजिक न्याय की राजनीतिक शक्तियों को एकजूट होने और युवाओं को मोर्चा संभालने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए संसद से लेकर सड़क तक आंदोलन करती रही है और आगे भी सामाजिक न्याय के प्रति हमारी पूरी प्रतिबद्धता है। जेएनयू के छात्र नेता और एआईबीएसएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र यादव ने चुनावी सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए कहा कि नई सरकार बनाने में ओबीसी मतदाताओं का सबसे बड़ा योगदान रहा है। परंतु वर्तमान सरकार के बजट और तमाम योजनाओं से ओबीसी वंचित रखने के कारण समुदाय को निराशा हाथ लगी है। उन्होंने प्रधानमंत्री से अपील की कि ओबीसी समुदाय की इन मांगों पर तत्काल कार्यवाही करें। 
कार्यक्रम में फाॅरवर्ड प्रेस के संपादक प्रमोद रंजन, सोशल ब्रेनवास पत्रिका के कौशलेंद्र यादव, सर्वसमाज संघर्ष समिति के संयोजक वेदपाल तंवर, स्त्रीकल के संपादक संजीव चंदन, जनता दल इंटिग्रेटेड पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दानबहादुर यादव, महामंत्री ईश्वर पटेल, अखंड भारत समाज पार्टी के दिनेश कुशवाहा, पूर्व सांसद रामअवधेश सिंह समेत करीब 300 लोग शामिल हुए।

बुधवार, 6 अगस्त 2014

सिसिल साह के प्रयास से चर्च को मिला ऐतिहासिक व पर्यटक स्थल का दर्जा

संक्षिप्त खबर
पटना सिटी : पटना सिटी में एक बड़ा चर्च है। यहां 1620 में मां मरियम की मूर्ति की स्थापना की गयी थी। आज इस चर्च को धार्मिक स्थल के साथ ऐतिहासिक एवं पर्यटक स्थल के रूप में पहचान मिल चुकी है। पटना सिटी पल्ली के पल्ली पुरोहित फादर जेरोम अब्राहम कापुचिन धर्मसमाज के हैं। इस धर्म समाज के पुरोहित खुद ही प्रभु येसु ख्रीस्त के घर की साफ-सफाई करते हैं। पल्ली पुरोहित होने के बावजूद वे झाड़ू लगाते हैं। इनके कार्यकाल में 394 साल पुराने इस महागिरजाघर में सुधार हुआ। धार्मिक भ्रमण के दौरान जेरूसलेम से पवित्र जल, जेरूसलेम की मिट्टी, असीसी का पानी, रोम के पत्थर, असीसी की मिट्टी, असीसी के कैंडल और पटना महाधर्मप्रांत के प्रथम धर्माध्यक्ष हार्टमन की लकड़ी को व्यवस्थित ढंग से चर्च में रखा गया है। पर्यटक आकर श्रद्धा से इन्हें देखते हैं। यहां पवित्र घंटा है, जिसे बजाया जाता है। 
पल्ली पुरोहित फादर जेरोम अब्राहम बताते हैं कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में चर्च को पर्यटक स्थल का दर्जा मिला। इसका श्रेय बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के समन्वयक सिसिल साह को जाता है। उन्होंने लगातार यूपीए सरकार के केन्द्रीय मंत्रियों को इस संबंध में पत्र लिखा। अंततः इस महागिरजाघर को एक धार्मिक स्थल के साथ ऐतिहासिक एवं पर्यटक स्थल घोषित कर दिया गया। 
फादर जेरोम अब्राहम ने कहा कि सूबे के चर्चों में यह इकलौता चर्च है, जो शानदार ढंग से बना है। अभी हाल में मां मरियम का ग्रोटो निर्माण किया गया है। चर्च के मुख्य द्वार को आकर्षक ढंग से बनाया गया है। इन सब कार्यों में पटना महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष विलियम डिसूजा का सहयोग प्राप्त हो रहा है। इसके अलावा पल्ली के लोगों का योगदान भी मिला है।

महादलितों की जमीन पर दबंगों का कब्जा

पटना : वर्ष 1986-87 में 42 और 1987-88 में 17 आवासीय भूमिहीनों को जमीन की बंदोबस्ती पर्चा मिली। इस तरह कुल 59 लोगों में बिन्द जाति के 40, दुसाध जाति के 2, मुसहर जाति के 16 और विजय धान के एक हैं। इनमें से कुछ लोग जमीन मिलने पर कब्जा जमा पाने में सफल रहे। कुछ को दबंगों ने जमीन पर से खदेड़ दिया। इसमें महादलित मुसहर समुदाय के लोग हैं। सभी 26-27 सालों से भटक रहे हैं। 
सभी ने जून, 2014 को अनुमंडलाधिकारी कार्यालय, दानापुर के जनता दरबार में फरियाद किया। इनको सरकार से 0.02 डिसमिल गैरमजरूआ जमीन की बन्दोबस्ती की गयी थी। यह जमीन पटना जिले के दानापुर अंचल के जलालपुर ग्राम में स्थित है। गैरमजरूआ जमीन बन्दोबस्ती केस न0 13, वर्ष 1987-88 के अधीन है। इन्हें जिला कार्यालय, पटना के राजस्व शाखा के द्वारा औपबंधिक परवाना दिया गया है। महादलित मुसहर और बिन्द समुदाय के लोगों ने निर्गत परवाना के आलोक में ग्राम जलालपुर, थाना न0 22, खाता न0 149, खेसरा न0 274, 291 और एराजी 0.02 डिसमिल जमीन पर जाकर कब्जा करना चाहा। कुछ बसे और कुछ बस नहीं सके। 
यह जमीन रूपसपुर थानान्तर्गत अभिमन्यु नगर में है। यहां महादलित दिन में झोपड़ी बनाकर चले गए और रात में जलालपुर के दबंगों ने झोपड़ी में आग लगा दी। दबंग खुलेआम धमकी देने लगे। आतंकित होकर महादलित भाग गए। ये आज भी सहमे और डरे हुए हैं। इसी संदर्भ में दानापुर प्रखंड के अंचलाधिकारी सीओ कुमार कुंदन लाल को फरवरी, 2013 में एक स्मार पत्र सौंपा गया। सीओ साहब अभिमन्यु नगर आए। आश्वासन दिया, लेकिन हुआ उलटा। दबंगों ने अपने मकान के आगे बढ़ा-चढ़ाकर चहारदीवारी खड़ी कर ली। रास्ता भी बना लिया। कुछ इसी जमीन पर खेती कर रहे हैं। 

इन्दिरा आवास योजना में बंदरबांट

भोजपुर : संदेश प्रखंड के जमुआंव पंचायत के कुसरे गांव की दक्षिण तरफ रहते हैं दुलारचंद मुसहर। महादलित दुलारचंद की झोपड़ी में छोटे-बड़े मिलाकर कुल 26 लोग रहते हैं। इनको बीपीएल सूची में 9 अंक प्राप्त है। इनसे अधिक अंक वालों को इन्दिरा आवास योजना की राशि मिल चुकी है और वे मकान बनाकर रह रहे हैं। 2011 में इन्दिरा आवास योजना की राशि स्वीकृत की गयी थी। वहीं दुलारचंद के मामले में 3 साल के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही है।
दुलारचंद ने बताया कि हमारा इन्दिरा आवास पास था। खाता भी खुला था। जब पैसा निकालने बैंक गए तो बैंक मैनेजर, संदेश ने बताया कि पैसा नहीं आया है। प्रभावित मुसहर का आरोप है कि पंचायत समिति के सदस्य जितेन्द्र और पंचायत के मुखिया के कारण यह सब हो रहा है। दोनों के हाथ होने के कारण संदेश प्रखंड के बीडीओ असहाय दिख रहे हैं। यहां रिश्वत का बोलबाला पंचायत से प्रखंड तक है। दुलारचंद ने मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से आग्रह किया है कि वे भोजपुर जिले के जिलाधिकारी को आदेश निर्गतकर स्वीकृति राशि दिलवाने में उसकी मदद करें। 
वहीं संदेश प्रखंड के डिहरा पंचायत के धर्मपुर गांव में तुलसी मुसहर रहते हैं। तुलसी कहते हैं कि हमलोगों को अगस्त, 2011 में इन्दिरा आवास योजना की राशि 45 हजार रू. स्वीकृत हुई थी। इसमें 30 हजार रू. दिए गए, 15 हजार रू. नहीं मिले। उस समय यह कहा गया कि मकान के लिन्टर तक बन जाने के बाद शेष 15  हजार रू. मिलेंगे। घर के पाटन के बाद भी यह रकम नहीं मिली। यह भी महादलितों से कहा गया कि शौचालय का निर्माण भी करवाना होगा। इतने कम पैसे में यह कैसे बन पायेगा। यही समस्या दुखित मुसहर, नमी मुसहर, गणेश मुसहर, पियासी मुसहर, राधे मुसहर, संतोष मुसहर की भी है।

दो दिवसीय कैडर प्रशिक्षण शिविर का आयोजन

गया : पिछले दिनों पैक्स के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति ने 16 प्रखंडों में दो दिवसीय कैडर प्रशिक्षण शिविर का आयोजित किया। शिविर में कुल 899 कैडरों ने हिस्सा लिया, इसमें अधिकांश महिलाएं थीं। इस अवसर पर भूमि अधिकार, स्वास्थ्य, मनरेगा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, जननी सुरक्षा योजना आदि पर विस्तार से चर्चा की गयी। 
शिविर में वक्ताओं ने कहा कि भूमि के बिना मनुष्य का मान-सम्मान और पहचान नहीं है। भूमि का रहना अनिवार्य है। बिहार में भूमि को विभिन्न श्रेणी में रखा गया है। भूदान भूमि, गैर मजरूआ भूमि, आम गैर मजरूआ भूमि, मालिक गैर मजरूआ भूमि, मठ-मंदिर की भूमि, चरागाह भूमि, चिरारी की भूमि, बेचिरागी भूमि, सैरात की भूमि, भू हदबंदी भूमि, रैयती भूमि, वन भूमि, आवासीय भूमि, श्मशान भूमि, खेल भूमि, लगानी और बेलगानी भूमि आदि। इन सब भूमि पर अनेक समस्याएं हैं। सरकार द्वारा वितरित भूमि पर वाजिब लोगों का कब्जा नहीं है। काबिज भूमि पर पट्टा नहीं, दाखिल खारिज नहीं, अनेक के नाम से परवाना वितरण, वासगीत भूमि का पर्चा नहीं होना जैसी कई समस्याएं हैं। साथ ही, वासभूमि पर अन्य का स्वामित्व होना। 
इस अवसर पर मनरेगा से संबंधित जानकारी दी गयी। जैसे, मनरेगा में काम पाने का हक किसे है? एक वर्ष में मनरेगा श्रमिकों को कितने दिनों का रोजगार मिलेगा? श्रमिकों को काम कैसे मिलेगा? काम किधर उपलब्ध कराया जाएगा? बेरोजगारी भत्ता किसको और कब मिलेगा? बेरोजगारी भत्ता कितना मिलता है? एक बार में मनरेगा के तहत कितने दिनों का काम मांगा जा सकता है? मजदूरी कितनों दिनों के अंदर मिलनी है? काम के लिए आवेदन किसको देना है? कार्य स्थल पर श्रमिकों को क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं? साथ ही, मनरेगा पर दलीय चर्चा की गयी। 
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, संस्थागत प्रसव, जननी सुरक्षा योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, कबीर अंत्येष्ठि योजना, मुख्यमंत्री परिवार लाभ योजना, खाद्य सुरक्षा अधिनियम, आंगनबाड़ी केन्द्र, शिक्षा का अधिकार, मध्याह्न भोजन, असंगठित मजदूरों का बीमा योजना, सूचना का अधिकार, घरेलू हिंसा आदि पर भी जानकारी दी गयी। शिविर में नालंदा जिला समन्वयक चन्द्रशेखर, दरभंगा जिला समन्वयक बीके सिंह, जहानाबाद जिला समन्वयक नागेन्द्र कुमार, कटिहार जिला समन्वयक बाबूलाल चैहान, गया जिला समन्वयक अनिल पासवान, अररिया जिला समन्वयक विजय गौरेया, भोजपुर जिला समन्वयक सिंधु सिन्हा और बांका जिला समन्वयक वीणा हेम्ब्रम ने संयुक्त रूप से कहा कि प्रशिक्षण शिविर में आए कैडरों को जन अधिकार और जन आवाज बुलंद करने की जानकारी दी गयी। 

महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास

मधेपुरा : महिला सशक्तिकरण की दिशा में मधेपुरा में जोरदार प्रयास हो रहा है। जिले के सिहेश्वर, शंकरपुर, गम्हरिया, मुरलीगंज, कुमारखंड, मधेपुरा और ग्वालपाड़ा प्रखंड के दलित, महादलित और पिछड़ी जाति के गांवों में सहयोगिनी और सहेली नामक कार्यकर्ताओं के द्वारा कार्य किया जा रहा है। 
महिला समाख्या, केन्द्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है। इसके द्वारा सहयोगनी कार्यकर्ता को बहाल किया गया है। इन्हें 3 हजार रू. मानदेय दिये जाते हैं। प्रखंड के 10 गांवों में कार्य इन्हें करना है। 25 सहयोगिनी कार्यकर्ताओं को बहाल किया गया है। इनको गांव घर में महिला समूह का गठन करना है। स्वयं सहायता बचत समूह बनाना है। स्वास्थ्य, शिक्षा, सरकारी योजनाओं की जानकारी और उनका लाभ दिलवाना है। 
महिला सशक्तिकरण के तहत मधेपुरा में 30 जगजगी केन्द्र खोले गये हैं। जगजगी केन्द्र को संचालित करने के लिए सहेली कार्यकर्ताओं को बहाल किया गया है। इन्हें डेढ़ हजार रू. मानदेय मिलते हैं। एक केन्द्र में  13-14 साल की 20 किशोरियों और 20 ही महिलाओं को साक्षर किया जाता है। मात्र 4 घंटे में किशोरियों और महिलाओं को गीत, नुक्कड़ नाटक, नारा आदि के माध्यम से जागरूक किया जाता है। इनको भी पढ़ना-लिखना, स्वास्थ्य, सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी जाती है।

पेट की खातिर 75 की उम्र में भी करता है काम

पटना : दीघा पोस्ट ऑफिस के सामने जूता-चप्पल बनाते हैं तेजस्वी राम। पिछले 7 सालों से एक पीपल के पेड़ के नीचे ये यह काम करते हैं। तेजस्वी बताते हैं कि जब वे 7 साल के थे, तबसे जूता-चप्पल बनाते हैं। आज तेजस्वी की उम्र करीब 75 साल है। इनके चार बच्चे हैं। एक बीए पास है। नौकरी की तलाश में भटक रहा है। 
तेजस्वी कहते हैं कि इस पेड़ के नीचे ही सारा दिन काम करता हूं। यहीं घर से खाना आ जाता है। जब नींद आती है, सो जाता हूं। नींद खुलते ही काम करने लगता हूं। तेजस्वी कहते हैं कि पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत की मुखिया ने इंदिरा गांधी सामाजिक सुरक्षा पेंशन दी है। यह हर महीने मिलना चाहिए, मगर तीन माह में मिलता है। साथ ही यह राशि बहुत कम है।

सोमवार, 4 अगस्त 2014

यहां ‘मरणदेवा‘ से बचाती है भक्तिनी !

महादलितों के बीच फैला है अंधविश्वास
साल भर के अंदर टीबी बीमारी से दर्जनों की मौत
राजीव मणि
पटना : दीघा में एक मुहल्ला है। नाम है शबरी काॅलोनी। यहां मुसहरों की एक बड़ी बस्ती है। अबतक यहां के कई मुसहर टीबी बीमारी से मर चुके हैं। इनमें से ही एक है बुद्ध मांझी। बुद्ध पलम्बर मिस्त्री का कार्य करता था। अच्छी-खासी कमाई होती थी उसकी। पिछले कुछ सालों से बुद्ध टीबी की बीमारी से परेशान था। अच्छी कमाई के बावजूद वह पौष्टिक आहार नहीं लेता था। नियमित रूप से टीबी की दवा भी नहीं लेता था। हां, दारू उसकी कमजोरी बन गई थी। इस कारण टीबी के जीवाणु फैलते चले गये और एक दिन ऐसा भी आया कि उसे खून की उल्टी होने लगी। फिर क्या था, डाॅक्टरों ने जवाब दे दिया था और अंततः उसकी मौत हो गयी। 
केवल बुद्ध मांझी ही क्यों, उसके जैसे कई थे, जो अब मर चुके हैं। मुसहरी के लोगों ने तो कइयों के नाम तक भुला दिए। कुछ याद हैं भी तो बस चर्चा या मरणदेवा पूजा तक। जी हां, मरणदेवा पूजा! बताया जाता है कि साल भर के अंदर सिर्फ इस मुसहरी में दर्जनों काल के गाल में समा गये।
मुसहरों का मानना है कि मृत्यु के बाद मनुष्य मरणदेवा बन जाता है। अगर उसकी पूजा नहीं की गई, तो वह काफी आफत मचाता है। पहले घर के लोगों को अपनी चंगुल में लेता है, फिर बाहर वालों को। मौत का सिलसिला शुरू हो जाता है। एक-एक कर लाशों की लाइन लग जाती है। 
कुछ ऐसे ही कारणों से बचने को दुखनी देवी ने नेऊरा मुसहरी से ‘भक्तिनी’ को बुलाया है। भक्तिनी बैठकी लगा चुकी है। अपने बाल खोलकर भक्तिनी देवी-देवताओं व मरणदेवा के नाम से भूत खेलाने लगती है। भूत खेलावन कर देवी-देवताओं को खुश कर लिया जाता है। परिवार के सभी मरणदेवा या मनुष्यदेवा को स्मरण कर खुश किया जाता है। इनमें अभी-अभी मृत्यु को प्राप्त बुद्ध मांझी भी है। मरणदेवा को खेलाकर घर के अंदर एक कोने में स्थान दे दिया गया। अब हर साल मरणदेवा या मनुष्यदेवा के रूप में इनकी पूजा होगी। बताया गया कि अगर ऐसा नहीं किया जाता, तो मुसहरी के अंदर किसी की मौत होने पर बुद्ध मांझी को ही जिम्मेवार ठहराया जाता। इसे लेकर दुखनी देवी को प्रताडि़त किया जाता। अब दुखनी देवी सामाजिक प्रताड़ना से बची रह सकेगी।
कुछ माह पहले बुद्ध मांझी और दुखनी देवी के नौजवान बेटा प्रमोद की मौत हो गयी थी। वह किडनी का मरीज था। गरीबी और लाचारी के कारण बेहतर ढंग से इलाज नहीं हो सका। अभी दुखनी देवी भी बीमार है। उसे भी टीबी की बीमारी है। 
विडम्बना यह है कि इस बस्ती में सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा समय-समय पर कार्य किया जाता रहा है। इसके बावजूद अंधविश्वास खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। गंदगी, बीमारी और नशा यहां के लोगों की पहचान और किस्मत, दोनों, बन चुकी है। यह भी सच है कि अभी तक यहां ईमानदार प्रयास नहीं किये गये हैं, अगर किये जाते तो कहानी कुछ और ही लिखी जाती। और यह मुसहरी तो एक उदाहरण भर है, सूबे के सभी मुसहरी की हालत करीब ऐसी ही है। बीमारी और फिर हर दिन डराती मौत, किसी मरणदेवा की तरह! विडम्बना यह भी है कि सूबे के मुख्यमंत्री इसी विरादरी से आते हैं। इसके बावजूद इनकी जिन्दगी जस की तस चल रही है। अभी तक इन महादलितों के लिए कुछ नहीं किया गया। इसे लेकर इनमें आक्रोश भी दिखता है।

भगवान भरोसे हैं संथाल आदिवासी

Barki Hembrem with mother in law
सखुआ के पत्तों से पत्तल बनाकर चलता है गुजारा
राजीव मणि
बांका : चांदन प्रखंड में दक्षिण कसवा बसिला ग्राम पंचायत है। दऊवा पहाड़ और घनघोर जंगल यहां की पहचान है। इसी पहाड़ और जंगल के बीच एक छोटा-सा गांव है, नाम है पहाड़पुर। संथाल आदिवासियों का गांव। इस गांव में पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है। जंगल और पहाड़ किनारे-किनारे होकर ही आया-जाया जा सकता है। गांव के लोगों का मुख्य पेशा है जंगल से सखुआ के पेड़ से पत्तों को तोड़ना और उससे पत्तल बनाकर बाजार में बेचना। दिनभर कड़ी परिश्रम के बाद कुछ रुपए ही मिल पाते हैं। और वह भी जान जोखिम में डालकर!
Leaf for Pattal
दरअसल जंगल में जानवर और आदमी दोनों से बराबर खतरा बना रहता है। जहां एक ओर जंगली जानवर का शिकार गांव के कई लोग हो चुके हैं, वहीं नक्सलियों और माओवादियों से भी आदिवासियों को खतरा बना रहता है। इन सबके बावजूद पेट की खातिर जान हथेली पर रखकर जंगल में रहना और पत्तल का करोबार करना पड़ता है। 
Barki Hembrem
पहाड़पुर गांव के वार्ड नंबर 5 की वार्ड सदस्य है बड़की हेम्ब्रम। बड़की हेम्ब्रम सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती रही हैं। वह बताती है कि वार्ड सदस्य बन जाने के बाद भी सुबह उठकर क्रियाक्रम करने के बाद बासी भात खाकर 10 किलोमीटर का रास्ता तय कर दऊवा पहाड़ पहंुचती है। उसके बाद पहाड़ पर चढ़ जंगल में जाती है। यहां सखुआ के पेड़ से पत्ते तोड़ती है। उसे घर लाकर नीम के तिनके से जोड़कर पत्तल बनाती है। और फिर बाजार बेचने को ले जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में तीन से चार दिन लग जाते हैं। 20 पत्तलों को बांधकर एक छोटा पैकेट बनाया जाता है। छोटे-छोटे 80 पैकेटों से एक बंडल। बाजार में 20 पत्तलों की कीमत इन्हें दो से तीन रुपए ही मिलती है। यह इनके श्रम से बहुत ही कम है।
बड़की हेम्ब्रम कहती है कि मेरे पति मनरेगा के तहत सड़क के निर्माण में काम कर चुके हैं, मगर पैसा दक्षिण कसवा बसिला ग्राम पंचायत के मुखिया सुदामा बेसरा और रोजगार सेवक प्रमोद यादव मिलकर हड़प लिए। गांव के 14 अन्य लोगों का पैसा भी नहीं मिला। वह बताती है कि विकास के नाम पर गांव के लागों को कोई सुविधा नहीं मिली है। किसी योजना का कोई लाभ यहां नहीं मिल पाता है। मनरेगा के नाम पर तो जैसे लूट ही मची है। गांव के संथाल आदिवासी बस भगवान के भरोसे जी रहे हैं।

शनिवार, 2 अगस्त 2014

मुसहर समुदाय में 98 फीसदी महिलाएं अशिक्षित : सहदेव

न्यूज@ई-मेल
आलोक कुमार
गया : बिहार सरकार के कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा महादलित के रूप में इनकी पहचान की गई। इसके तहत बंतार, बौरी, भोगता, भुईया या भूमजीज, चैपाल, धोबी, डोम या धनगर, घासी, हलालखोर, हरि, मेहतर या भंगी, कंजर, कुरियर, लालबेगी, डबगर, मुसहर, नट, पान या सवासी, पासी, रजवार, तुरी और चमार जाति के लोगों को मिलाकर 21 और पासवान को मिलाकर 22 जातियां हंै। आकड़ों में अंतर होने के बाद भी मुसहरों की आबादी सूबे में 60 लाख है। 
महादलित आयोग के उदय मांझी कहते हैं कि सरकार ने 2012 में टोला सेवकों का सेवाकाल समाप्त कर दिया था। पंचायत में विकास मित्र और टोला सेवक हैं, जो सरकार और जनता के बीच सेतु का कार्य करते हैं। विकास मित्र का काम लाभकारी योजनाओं के बारे में जानकारी देकर अधिकाधिक लाभ वंचित समुदायों को दिलवाना और टोला सेवकों का कार्य शिक्षा का अलख जगाना है। विकास मित्र और टोला सेवक को 5 हजार रूपए मानदेय दिये जाते हैं। अन्य सरकारी सेवकों की तरह इनकी अवकाश की सीमा 60 साल करने की मांग हो रही है। उदय मांझी कहते हैं कि वंचित समुदाय के लोग समस्याओं को लेकर आते ही नहीं है और न ही आवेदन देते हैं।
गया के सहदेव मंडल कहते हैं कि मुसहर समुदाय की स्थिति दयनीय है। इस मुसहर समुदाय के 98 प्रतिशत महिलाएं तथा 90 प्रतिशत पुरूष आज भी अशिक्षित हैं। राज्य ही नहीं, देश भर में अपवाद स्वरूप डॉक्टर, जज, वकील, इंजीनियर, आईएएस पदाधिकारी तथा पीएचडी मिल पाते हैं। 

ऐसे सरकारी वायदों का क्या

पटना : काफी समय के बाद अल्पसंख्यक विद्यालय की श्रेणी में हार्टमन बालिका उच्च विद्यालय, कुर्जी को शामिल किया गया। वहीं पटना वीमेंस काॅलेज महाविद्यालय का दर्जा पाने को छटपटा रहा है। नीतीश की सरकार ने पटना वीमेंस काॅलेज को महाविद्यालय का दर्जा दिलवाने का वादा किया था। यह आजतक पूरा नहीं हो सका। अब तो इसपर किसी तरह की चर्चा तक नहीं होती। लोकसभा चुनाव के पूर्व भी पटना वीमेंस काॅलेज को महाविद्यालय बनाने का वादा किया गया था। तब वादा कर अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय से वोट भी लिये गये थे। आज सूबे में जीतन राम मांझी की सरकार है। लोगों को उनसे काफी उम्मीदें हैं। 
पटना वीमेंस काॅलेज की प्राचार्य सिस्टर डोरिस डिसूजा ने बताया कि बिहार सरकार खुद महाविद्यालय बनाने का ऐलान करती है। लंबे-चैड़े भाषण में सीएम महाविद्यालय का प्रथम उप कुलपति बनाने की इच्छा जाहिर करते हैं। उसके बाद मामला अटक जाता है। ऐसा एक बार नहीं, तीन बार हो चुका है।

पानी के अभाव में सरकारी स्कूल में खिचड़ी बंद

पटना : दीघा थाना के बगल में नहर है। और इसके ठीक किनारे बसा है रामजीचक मुसहरी। पहले यहां पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण मुसहरों को काफी दूर से पानी लाना पड़ता था। सरकार द्वारा किसी तरह की मदद नहीं मिलने पर लोगों ने चंदा कर चापाकल लगवा लिया। लेकिन, इन मुसहरों की किस्मत भी दगा दे गयी। आजकल चापाकल से गंदा पानी आ रहा है। गंदे पानी से थोड़े राहत के लिए लोग बाल्टी में पानी भड़कर उसे एक घंटे तक छोड़ देते हैं। ऐसा करने पर पानी के नीचले सतह पर मिट्टी जम जाती है। फिर इस पानी को मुसहर कपड़े से छान लेते हैं। तब इस पानी को पीने के काम में लाते हैं। 
इसी नहर के किनारे एक सरकारी स्कूल है। यहां का चापाकल भी खराब पड़ा है। इसका असर विद्यालय के दोपहरिया भोजन पर पड़ रहा है। यहां पांच महीने से बच्चों को भोजन नहीं दिया जा रहा है। लोगों का कहना है कि अगर बच्चों को भोजन नहीं दिया जा रहा है तो अनाज ही दे दिया जाना चाहिए। लोगों का आरोप है कि इस संबंध में महिलाएं जब आवाज बुलंद करती हैं, तो स्कूल के टीचर सीधे थाना पहुंच जाते हैं। दीघा थाना की पुलिस टीचर के ही पक्ष में बोलकर मामला को दबा देती है। लोगों की मांग है कि इसकी जांच होनी चाहिए ताकि महादलितों के बच्चों एवं अभिभावकों के साथ न्याय हो सके।

तलाक किसी समस्या का समाधान नहीं : पल्ली पुरोहित

पटना सिटी : ईसाई धर्मरीति के अनुसार प्रशांत और स्मृति की शादी पिछले दिनों हो गयी। फादर जेरोम अब्राहम ने शादी की रस्म की आदायगी की। इस अवसर पर पटना सिटी पल्ली के पल्ली पुरोहित फादर जेराम अब्राहम ने कहा कि यह चर्च महागिरजाघर है। 1620 में इसकी स्थापित हुई थी। आज यह धार्मिक, ऐतिहासिक एवं पर्यटक स्थल बन चुका है। 
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि शादी का बंधन आजीवन का होता है। यह गुड्डा-गुड्डी का खेल नहीं है। जो पवित्र बंधन में बंध जाता है, उसे कोई तोड़ नहीं सकता। उन्होंने कहा कि लोगांे को तलाक के चक्कर में नहीं फंसना चाहिए। अगर कोई इंसान किसी के उकसाने पर ऐसा करता है, तो उसे जीवन भर पश्ताना पड़ता है। उन्होंने आह्वान किया कि आपलोग पारिवारिक विघटन को टालने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि ईसाई धर्म के अनुसार विवाह का मतलब प्रेम और सेवा करना है। लोग आपस में मेलमिलाप कर रहें। यहां छोटा और बड़ा होने का सवाल ही नहीं है। अगर मेलमिलाप में परेशानी आ रही हो तो पल्ली पुरोहित से संपर्क कर लें। आपका परिवार टूटने से बच जायेगा।

विस्थापित लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था नहीं

पटना : पूर्व मध्य रेलवे परियोजना के तहत गंगा नदी पर रेल सह सड़क सेतु निर्माणाधीन है। लेकिन, इसके निर्माण में झुग्गी-झोपड़ी बाधा बन रही है। कई बार अतिक्रमण हटाने का प्रयास किया जा चुका है। इसके बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ। इससे निजात पाने के लिए रेलवे ने पाटलिपुत्र स्टेशन से बेलीरोड ऊपरी पुल तक चहारदीवारी खड़ा कर दी। जेसीबी मशीन से झोपड़ी धराशाही कर दी गयी। यह सब पाटलिपुत्र स्टेशन को चालू कराने के लिए किया गया। ज्ञात हो कि अबतक कई बार पाटलिपुत्र स्टेशन की उद्घाटन तिथि बढ़ायी जा चुकी है। 
लोगों का कहना है कि हमलोगों ने पटना उच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दायर कर विस्थापन के पूर्व पुनर्वास की मांग की थी। माननीय न्यायालय ने 6 माह के अंदर सरकार को पुनर्वास करा देने का आदेश दिया था। लेकिन, नौकरशाहों ने माननीय न्यायालय के आदेश को अनदेखा कर दिया। इसी बीच लोकहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता की मृत्यु हो गयी। आज भी लोगों की मांग सिर्फ पुनर्वास की है। लोग नहर किनारे रह रहे थे। दीघा से लेकर खगौल तक नहर के किनारे रहने वाले लोगों को हटा दिया गया। लोगों का आरोप है कि झोपड़ी उजाड़ने से पहले किसी तरह की सूचना नहीं दी गयी।
ज्ञात हो कि पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दीघा बिन्द टोली के लोगों को जमीन बंदोबस्त कर बसाने का निर्णय लिया था, जिसपर अबतक अमल नहीं किया गया है। लोगों की मांग है कि सरकार को इसपर गंभीरता से निर्णय लेना चाहिए।

मनरेगा के घायल श्रमिकों को कोई लाभ नहीं

गया : मगध प्रमंडल में मनरेगा का काम किस तरह चल रहा है, इस घटना से इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। मामला गया जिले के मानपुर निवासी फेकू मांझी और जहानाबाद सदर निवासी शिवलाल मांझी का है। दोनों मनरेगा में कार्य करने के दरम्यान घायल हो गए। इनका प्राथमिक उपचार नहीं कराया गया और न ही मुआवजा दिया गया। दोनों अपने हाल पर हैं।
केस एक : गया जिले के मानपुर के लखनपुर पंचायत के ग्राम रसलपुर में स्व. बुद्धू मांझी के पुत्र फेकू मांझी रहते हैं। मनरेगा में वन पोषक का कार्य करते थे। जानवर को खदेड़ने के क्रम में वे घायल हो गए। तब उनके परिजन फेकू को उठाकर अबगिल्ला, जगदीशपुर ले गए। वहां हड्डी रोग विशेषज्ञ डाॅ. मोहम्मद एजाज ने अप्रैल, 2013 को बायें पैर में प्लास्टर चढ़ा दिया। 47 दिनों के बाद मई, 2013 को प्लास्टर हटा देने के बाद फेकू चलने लगे। इलाज का सारा खर्च उनके परिजनों ने ही उठाया। इस बीच जाॅब कार्डधारी फेकू मांझी ने कार्यक्रम पदाधिकारी, मानपुर को आवेदन देकर कहा कि चार माह से मजदूरी नहीं दी जा रही है। मनरेगा श्रमिक फेकू की मजदूरी सीधे बैंक आॅफ बड़ौदा के अकाउंटस में भेज दी जाती थी, जो चार माह से नहीं मिली है। यह जानकारी गैर सरकारी संस्था कदम की जयमणि कुमारी ने दी है।
केस दो : जहानाबाद सदर के सेवनन ग्राम पंचायत के सेवनन मुसहरी में स्व. जगलाल मांझी के पुत्र शिवलाल मांझी रहते हैं। इनका जाॅब कार्ड नम्बर 9749 है। यह मई, 2008 में जारी किया गया है। दहारूचक में कार्य करने शिवलाल मांझी गए थे। दहारूचक से पतरीया तक पईन उड़ाही का कार्य चल रहा था। कुछ साल पहले ही दोनों आंखों का मोतियाबिन्द का आॅपरेशन करवाया था। शिवलाल मिट्टी की टोकरी को दूसरे के सिर पर रख ही रहे थे कि एक मिट्टी का टुकड़ा आंख पर जाकर लग गया। बायीं आंख पर मिट्टी का टुकरा गिरते ही वे बेहाल हो गए। परेशान शिवलाल घर आ गये। उसे मजदूरी भी नहीं मिली। जून में जिलाधिकारी के जनता दरबार में मामला दर्ज करवाया था। यह जानकारी गैर सरकारी संस्था प्रगति ग्रामीण विकास समिति के नागेन्द्र कुमार ने दी है।

मुसहरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाए

गया : राष्ट्रीय मुसहर-भुइया विकास परिषद के संयोजक उमेश मांझी और सचिव अजय मांझी ने कहा है कि बिहार में मुसहर समुदाय की 40 लाख और देशभर में 66 लाख की आबादी है। हमलोगों की स्थिति बद से बदतर है। मात्र वोट बैंक समझकर हमें व्यवहार किया गया। हालांकि केन्द्र और राज्य सरकार ने योजनाएं बना रखी हैं। लेकिन योजनाओं का लाभ मुसहर समुदाय को नहीं मिला। अगर लाभ मिला भी, तो ‘दलाल’ सेंधमारी करने लगे। महादलितों में इंदिरा आवास योजना अधूरा ही रह गया। शौचालय निर्माण करने वाले सही ढंग से शौचालय बनाए ही नहीं। हमलोग बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। इस आलोक में पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महादलित आयोग बनाया। यह सोचकर कि समाज के किनारे रह जाने वालों का विकास करेंगे। वह भी राजनीति की बलिवेदी पर चढ़ गया। 
उमेश मांझी ने आगे कहा कि हमलोगों ने पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को स्मार पत्र देकर मांग किया कि अगर सच में आप मुसहर समुदाय का कल्याण और विकास करना चाहते हैं, तो आप अनुसूचित जाति की श्रेणी से निकालकर मुसहर समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल कर लें। मगर स्मार पत्र की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब बिहार की राजनीति में नेतृत्व परिवर्तन हो चुका है। हमलोग चाहेंगे कि बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मुसहर समुदाय की मांग को पूरा करें।

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

जवानी में ही मर रहे महादलित

NARESH  MANJHI
संक्षिप्त खबर
पटना : एक गैर सरकारी संस्था में काम करते हैं नरेश मांझी। वे बताते हैं कि एक माह के अंदर मैंने कई अपनों को खो दिया है। वे बताते हैं, उनकी पुत्री गायत्री कुमारी होनहार छात्रा थी। मैट्रिक में प्रथम श्रेणी से उत्र्तीण होने के बाद आई. एससी. कर रही थी। उसे घरेलू कार्य में मन नहीं लगता था। इस कारण उसकी छोटी बहन से सदैव तू-तू, मैं-मैं होती रहती थी। गायत्री की मां भी ताना मारती थी। इससे नाराज होकर उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वह 20 साल की थी। मृतका को गंगा में बहा दिया गया। 
अभी नरेश मांझी दुख से गुजर ही रहे थे कि पुनपुन स्थित पैमार घाट के पास रहने वाली उनकी दीदी और जीजा के घर हादसा हो गया। जीजा सुदेश्वर मांझी के पुत्र बारू मांझी ने जहर खा लिया। 25 वर्षीय बारू की मौत हो गयी। पैसे के अभाव में उसे मिट्टी खोदकर दफना दिया गया। इसी बीच एक और हादसा हो गया। इस बार भतीजे ने जहर खा लिया। मृतक का नाम विजय मांझी (25 साल) है। उसके दो बच्चे हैं। विजय की पत्नी जवानी में ही विधवा हो गयी। ज्ञात हो कि महादलितों में इस तरह की मौत कोई नयी बात नहीं है। खासकर मुसहरों में कुछेक ही 60 साल की आयु पार कर पाते हैं। अधिकांश की मौत बीमारी या फिर शराब या जहर खाने से हो जाती है। इनमें बच्चों की मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। विडम्बना यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री भी महादलित वर्ग से आते हैं। इसके बावजूद महादलितों के लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा है। मुसहरों का आरोप है कि अब तो मुसहरों से मिलना तक वे पसंद नहीं करते, उनकी समस्या सुनने की बात तो बहुत दूर की है।

गंगा में समा गयी महादलितों की बस्ती

पटना : गंगा नदी में पानी बढ़ने से दियारा क्षेत्र जलमग्न हो गया है। इससे कई महादलितों की बस्ती गंगा में समा गयी। भागकर लोग दानापुर प्रखंड कार्यालय में रह रहे हैं। आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से अनाज और भोजनादि की व्यवस्था की गयी है। वहीं दानापुर प्रशासन द्वारा मानस पंचायत के नया पानापुर के कटावपीडि़तों को बसाने के लिए जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया है। साथ ही जमीन का पर्चा भी दिया जा रहा है। लेकिन, पीडि़त शहरी क्षेत्र में जमीन की मांग कर रहे हैं। दानापुर प्रखंड के सीओ कुमार कुंदन लाल ने प्रखंड कार्यालय परिसर में रह रहे कटावपीडि़तों को वहां से हटने का नोटिस दिया है। बताया जा रहा है कि यह कार्रवाई एसडीओ राहुल कुमार के निर्देश पर की जा रही है। इसके पहले भी सात-आठ बार नोटिस दी गयी है, लेकिन पीडि़त परिसर खाली करने को तैयार नहीं हैं।

बीमारी और मौत को मान रहे भूत-प्रेत का चक्कर

पटना : एलसीटी घाट मुसहरी के एक घर में टीबी रोग के चार मरीज हैं। पिता से पुत्र-पुत्री को रोग लगा। पिता सुरता मांझी, पुत्र संतोष कुमार, पुत्री काजल कुमारी और संजू कुमारी टीबी रोग के मरीज हैं। इनका इलाज कुर्जी होली फैमिली अस्पताल में चल रहा था। इनमें से सुरता मांझी की मौत 10 मई, 2014 को हो गई। सुरता मांझी की विधवा सुशीला देवी को कबीर अंत्येष्ठि योजना से लाभ नहीं मिलने पर शव को गंगा किनारे बालू में ही दफना दिया गया। अभी सुशीला देवी पर 7 हजार रूपए का कर्ज है। साथ ही दुकानदार से अनाज उधार लायी थी। इस कारण उसे 10 हजार रूपए जमा करने हैं। 
महादलितों में अंधविश्वास काफी ज्यादा है। मौत और बीमारी को वे इससे ही जोड़कर देखते हैं। इसी कारण वह भगत और भक्तिनी की बैठक बुलाना चाह रही है। उसे विश्वास है कि अगर देवी-देवताओं के साथ मनुष्यदेवा को पूजा न दी गयी तो बाल-बच्चों पर आफत आ सकती है। सुरता मांझी भी मरकर मनुष्य देवा बन गया है। अगर पूजा नहीं दी गयी तो वह बाल-बच्चों पर ही आक्रमण कर देगा। उसके बाद वह बाहर के लोगों को अपनी चपेट में ले लेगा। इससे बचने के लिए पूजा कराना अनिवार्य है।

आंगनबाड़ी केन्द्रों में शौचालय नहीं

पटना : सूबे के आंगनबाड़ी केन्द्रों की क्या स्थिति है, यह राजधानी के आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति को देखकर ही सहज अनुमान लगाया जा सकता है। एक आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका शारदा देवी बताती हैं कि शौचालय के अभाव में बच्चों को शौचक्रिया के लिए घर जाना पड़ता है। यहां शौचालय का काम अधूरा पड़ा है। वहीं एक अन्य आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका राधा देवी का कहना है कि यहां तो शौचालय बना ही नहीं है। सहायिका तारा देवी बच्चों को घर ले जाकर शौचक्रिया करवाती हैं।

वासगीत पर्चा निर्गत करने को भरे जा रहे आवेदन

गया : पूर्व जिलाधिकारी बालामुरूगन डी द्वारा सरकारी जमीन पर रहने वालों को वासगीत पर्चा देने का निर्णय लिया गया था। यह निर्णय जिले के 150 साल पूर्ण करने के उपलक्ष्य में लिया गया था। अब इसमें गैर सरकारी संस्थाओं से सहयोग लेकर सरकारी भूमि पर रहने वालों के आवेदन पत्र भरे जा रहे हैं। वासगीत पर्चा निर्गत करने के आवेदन पत्र को लोग सीओ साहब को सौंप रहे हैं। जानकारी के अनुसार, पूर्व जिलाधिकारी बालामुरूगन डी के जाने के बाद वासगीत पर्चा निर्गत करने के कार्य में शिथिलता आ गयी थी। अब इसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। 2 अक्तूबर, 2014 के पूर्व ही वासगीत पर्चा निर्गत कर देने का निर्णय लिया गया था। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि जुलाई में 500 लोगों के आवेदन पत्र भरे जायेंगे। इसके बाद मोहनपुर के सीओ जयराम सिंह को आवेदन सौंप दिया जायेगा। 
सामाजिक कार्यकर्ता राजेश पासवान ने बताया कि टेसवार पंचायत के सुखदेवचक, जयनगर, सागरपुर, चोरनीमा और सुगवां में महादलित मोहनपुर से बोधगया तक में सड़क और पईन के किनारे रहते हैं। भूदान और गैर मजरूआ जमीन पर रहने वाले सैकड़ों लोगों के पास वासगीत पर्चा नहीं है। वहीं बगुला पंचायत के गांव बान्देगड़ा, मुसहर सबदा, बंगहा, नरहर, और नट्ठा गांव के लोग भूदान भूमि पर रहते हैं। उनको भूदान यज्ञ कमेटी द्वारा वासगीत पर्चा निर्गत नहीं किया गया है। गोपालकेड़ा गांव के लोग भूदान में मिली भूमि पर रहते हैं। वहीं माड़र, चांव और खरगपुरा गांव के लोग वन विभाग की भूमि पर रहते हैं। सिंदुआर पंचायत के सिंदुआर, कृपाचक, जमुआर, बाजूखुर्द और बाजूकला गांव के लोग गैर मजरूआ और भूदान की जमीन पर रहते हैं। मुसहर समुदाय के लोगों के बुमुआर पंचायत के बलजोड़ी बिगहा में 40 घर हैं। ये लाड़ू से बाराचट्टी पथ के किनारे ठौर जमाए हुए हैं। यहां के लोगों ने मोहनपुर प्रखंड के बीडीओ सुशील कुमार सिंह से आग्रह किया है कि वे कल्याण और विकास की किरण महादलितों के ऊपर आने दें।