COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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सोमवार, 19 मई 2014

जीतन राम मांझी होंगे बिहार के नए मुख्यमंत्री

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पटना : जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि जीतन राम मांझी बिहार के अगले मुख्यमंत्री होंगे। जानकारी के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्यपाल से मिलने पहुंचे हैं और थोड़ी ही देर में बिहार के नए मुख्यमंत्री के रूप में मांझी के नाम का औपचारिक ऐलान किया जाएगा। ज्ञात हो कि मांझी गया से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। इससे पहले बिहार में बदलते सियासी समीकरणों के बीच सोमवार को पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि इस बार के लोकसभा चुनाव में विचित्र माहौल था और लोगों के बीच जदयू के बारे में भ्रम फैलाया गया। नीतीश ने कहा कि मैंने भावुकता में फैसला नहीं लिया। विधायक मेरे फैसले के साथ हैं। जीवन में कभी-कभी असाधारण फैसले लेने पड़ते हैं। 
जीतन राम मांझी को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है। मांझी महादलित हैं और काफी अर्से बाद कोई महादलित बिहार के मुख्यमंत्री पद पर बैठेगा। जब नीतीश कुमार पहली बार राज्य में सरकार बना रहे थे, तब भी जीतन राम मांझी का नाम मंत्रियों की सूची में शामिल था। लेकिन, उन पर शिक्षा घोटाले के आरोप लगे थे, जिस कारण उनका नाम कट गया और उन्हें रातोंरात इस्तीफा देना पड़ा। बाद में वह घोटाले के आरोपों से बरी हो गए और राज्य में मंत्री बने।
चर्चा है कि देश के प्रधानमंत्री और किसी राज्य के मुख्यमंत्री के बीच होने वाली बैठकों में मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री के साथ हाथ मिलाना पड़ता है और उसका सम्मान करना पड़ता है। लेकिन, शायद नीतीश ऐसा नहीं करना चाहते थे और इसलिए उन्होंने यह दांव खेला।
साभार : वन इंडिया हिन्दी

रविवार, 18 मई 2014

गुडि़या ने जन्मा दो ‘गुड्डा’

दानापुर : गुडि़या देेवी 25 साल की है। इनकी चार संतानें हैं। छह दिन पहले दानापुर अनुमंडल अस्पताल में गुडि़या को ‘जुड़वा’ पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है। गुडि़या देवी की शादी कम उम्र में ही कर दी गयी थी। गुडि़या की सबसे बड़ी पुत्री कुमकुम कुमारी सात साल की है। अभी कुमकुम केजी में पढ़ती हैं। वहीं ़िद्वतीय पुत्र अमरजीत कुमार चार साल का है। स्कूल नहीं जाता है। गुडि़या की सास शारदा देवी ने जुड़वा शिशु का नाम राम और लक्ष्मण रखा है। गुडि़या का पति रविन्द्र राय काफी खुश हैं। गाय पालना और दूध बेचकर जो पैसे मिलते हैं, उससे अच्छी तरह घर का खर्च चल जाता है। दोनों नवजात बच्चे स्वस्थ हैं।

आप विक्रांत से सबक ले सकते हैं

पटना : यक्ष्मा यानी टीबी अब जानलेवा नहीं है। हां, केवल समय पर टीबी रोग की पहचान हो जाए तो। स्वास्थ्य केन्द्रों पर आसानी से दवा उपलब्ध है। बस आपको स्वास्थ्य केन्द्र जाकर अपना नाम रजिस्टर करवाना होगा। उसके बाद बलगम और एक्स-रे जांच की जाएगी। जांच के बाद ही दवा उपलब्ध करायी जाएगी। दवा देने वाले स्वास्थ्यकर्मी के मार्गदर्शन में आपको दवा खानी है। हां, ध्यान रहे कि जबतक चिकित्सक अथवा स्वास्थ्यकर्मी दवा सेवन करने को मना ना करें, दवा का सेवन करते रहना है। ऐसा करने पर जानलेवा टीबी का खौफ सदा के लिए खत्म हो जाएगा। 
अगर यकिन ना हो तो पटना नगर निगम अंतर्गत वार्ड नम्बर एक चलिए। यहां शबरी काॅलोनी है। इसे दीघा मुसहरी भी कहते हंै। इसी मुसहरी में विक्रांत कुमार रहता है। लंबे समय तक ग्लैंड टीबी से बेहाल था। ग्लैंड टीबी का प्रसार गले से उतरकर छाती तक हो चुका था। घाव के कारण वस्त्र नहीं पहन सकता था। घाव को लोगों से छुपाने के लिए चादर लपेटकर रहता था। वह कई बार ग्लैंड टीबी की दवा खाकर छोड़ चुका था। इस कारण दवा देने वाले और उसके परिजन भी परेशान थे। अंततः विक्रांत कुमार को सुबुद्धि आई। वह नियमित दवा का सेवन करने लगा। आखिरकार बीमारी हमेशा के लिए जाती रही। 
दीघा मुसहरी के लोगों का कहना है कि हम गरीबी में जन्म लेते और बुढ़ापा देखे बिना ही जवानी में ही मर जाते हैं। हमलोग जन प्रतिनिधियों की तकदीर बनाते हैं। परन्तु खुद की तकदीर नहीं बना पाते। रोजगार के अभाव में महिलाएं महुआ दारू बनाती और बेचती हैं। बच्चे कचरा से कागज, प्लास्टिक आदि चुनने जाते हैं। नौजवान ठेका पर जमकर काम करते हैं। आज विक्रांत रद्दी कागज आदि चुनकर खुद खाता और मां-बाप को भी खिलाता है। 
ज्ञात हो कि टीबी की दवा का नियमित सेवन नहीं करने से इसके जीवाणु शक्तिशाली होते चले जाते हैं। फिर से दवा चालू करते वक्त मरीज को हाई डोज दवा देनी पड़ती है। यह शरीर के वजन और उम्र के अनुसार ही दी जाती है। ऐसे में अगर आपको टीबी की बीमारी है तो निराश होने की जरूरत नहीं। आप विक्रांत को देखकर सबक ले सकते हैं। 

सुशासन के मंत्रियों का परस्पर विरोधी बयान, लोगों में आक्रोश

पटना : यह कैसा सुशासन है? यहां एक मंत्री पदोन्नत करने की बात करता है, दूसरा बर्खास्त करने पर उतारू हैं। इसे लेकर प्रभावित लोग परेशान हैं। प्रभावितों को न निगलते और न ही उगलते बन रहा है। यह स्थिति बिहार सरकार के दो मंत्रियों के द्वारा अलग-अगल दिये परस्पर विरोधी बयान के बाद उत्पन्न हुई है। 
हुआ यूं कि राजधानी स्थित श्रीकृष्ण स्मारक सभागार में फरवरी, 2014 को बिहार सरकार के पंचायती राज मंत्री भीम सिंह ने राज्य के सभी पंचायत रोजगार सेवकों को पंचायत सचिव का प्रभाव देने की बात कर डाली। दूसरी तरफ ग्रामीण विकास मंत्री नीतीश मिश्रा पंचायत रोजगार सेवकों को बर्खास्त करने का आदेश निर्गत कर रहे हैं। इसपर सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खामोश हैं। 
अब यह मामला सोशल नेटवर्किंग पर चर्चा में है। कटिहार जिले के एक पंचायत रोजगार सेवक सुधांशु चैधरी ने फेसबुक पर सभी पंचायत रोजगार सेवकों व मनरेगा मित्रों को स्मरण करवाते हुए लिखा है कि पंचायती राज मंत्री ने पंचायत सचिव का प्रभार देने का जो सब्जबाग दिखाया था, अब उसपर वज्रपात होने वाला है। उन्होंने सवाल उठाया है कि यह कौन सा न्याय और कैसा विकास है? बिना किसी गलती किये सात साल नौकरी करने के बाद बर्खास्ती का फरमान जारी कर दिया गया है! बिहार में पंचायत रोजगार सेवकों की बहाली कर मानदेय 5400 रुपए दिये जाते थे। अब बदले हालात में लोगों में आक्रोश है।

शनिवार, 17 मई 2014

़ ़ ़ और गुडि़या बन गयी एंकर

न्यूज@ई-मेल
संक्षिप्त खबर
गया : जब सूबे के शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल थे, तब जिले की गुडि़या नामक एक गरीब लड़की खेत में काम करना छोड़ पढ़ना चाहती थी। मगर परिजन समर्थ नहीं थे। आखिरकार परिजनों ने शिक्षा विभाग से संपर्क किया। गुडि़या पढ़ने लगी। सौभाग्य से यूनिसेफ ने मेहनती गुडि़या का चयन कर विदेश एक कार्यक्रम में भेजा। आज यह गुडि़या काफी शोहरत हासिल कर चुकी है। आज परिवहन, सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री वृशिण पटेल को एक दूसरी गुडि़या से रू-ब-रू होना पड़ा। पहली की तरह यह गुडि़या भी अल्पसंख्यक समुदाय की है। 
पटना जिले की रहने वाली है दूसरी गुडि़या। शबनम खातून नाम है इसका। गुडि़या ने अन्तर धार्मिक विवाह किया है। उसने मनोज कुमार सिन्हा से लव मैरेज की है। पटना जिला ऑटो रिक्शा चालक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष नवीन कुमार मिश्रा के कहने पर ऑटो रिक्शा चलाना सीखी। और फिर शबनम से गुडि़या बन गयी। गुडि़या से आॅटो चालक और फिर आॅटो चालक से एंकर बन गयी। एक कार्यक्रम के दौरान आॅटो चालक गुडि़या ने कहा कि पटना जंक्शन के पास महिला टेम्पो चालकों के लिए अलग से पार्किंग जोन बनना चाहिए। 
गुडि़या ऑटो चलाने के साथ-साथ नौ देवियां धारावाहिक का एंकरिंग कर रही है। इस कार्यक्रम को लाइफ स्टाइल टीवी पर नौ देवियां धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। इस अवसर पर नेहा कुमारी, अनुप्रिया, विनीता कुमारी आदि ने शुभकामनाएं दी हैं।

भगवान भरोसे हैं महादलित

पालीगंज : पटना जिले में पालीगंज है। यहीं नक्सल प्रभावित क्षेत्र में खनपुराटाढ़ नामक महादलित मुसहर समुदाय की बस्ती है। महादलितों ने सरकारी जमीन पर झोपड़ी बना रखी है। यह बस्ती बढ़ते-बढ़ते 350 घरों की मुसहरी बन चुकी है। कोई आठ सौ की आबादी है। पूरी बस्ती में केवल तीन लोग ही मैट्रिक पास हैं। सरकार द्वारा विकास के नाम पर एक चापाकल लगा है। मुख्यमंत्री से लेकर नौकरशाहों तक द्वारा प्रचारित जल स्वच्छता अभियान के तहत ‘अपना शौचालय, अपना जल’ मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह है यहां। हां, पालीगंज के पदाधिकारियों द्वारा 150 लोगों को महात्मा गांधी नरेगा के तहत जाॅब कार्ड निर्गत कर दिया गया है। समय पर काम और समय पर भुगतान होने से रोजगार की तलाश में अन्य प्रदेशों में पलायन रूका है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) का स्मार्ट कार्ड निर्गत नहीं किया गया है। इसका नतीजा यह है कि यहां के लोग अक्सर बीमार पड़ पोंगा पंडितों की शरण में पहुंच जाते हैं। पोंगा पंडितों की खूब कमाई हो रही है यहां। 
यहीं बद मांझी रहते हैं। इनकी पुत्री रेवंती देवी है। रेवंती आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका बनने वाली है। मां-बाप ने रेवंती की शादी बचपन में ही कर दी थी। मगर बचपन की शादी खिलवाड़ बनकर रह गया। शादी के बाद से ही रेवंती अपने ससुराल नहीं गयी। नतीजा निकला कि विवाह विच्छेद हो गया। अब मायके में रहकर खेत में मजदूरी करती है रेवंती। 

पंचायत प्रेरकों को 14 माह से मानदेय नहीं, लाखों का गोलमाल

गया : सूबे की साक्षर आबादी 3,16,75,607 है। साक्षर पुरुषों की संख्या 73.39 प्रतिशत और साक्षर महिलाओं की संख्या 53.33 प्रतिशत है। सर्वाधिक साक्षर जिला पटना 63.36 प्रतिशत है। 16 नवम्बर, 2011 से जन शिक्षा विभाग के जन शिक्षा निदेशालय के द्वारा पहल की गयी। राज्य में 8463 पंचायते हैं। निरक्षरों की बढ़ती संख्या में कमी लाने और साक्षरता दर को बढ़ाने के लिए एक पंचायत में दो पंचायत प्रेरक बहाल किये गये। इनको दो हजार रुपए मानदेय निर्धारित किये गये। छह माह के अंदर 10 लोगों को साक्षर करना है। दुर्भाग्य से इन्हें 14 माह से मानदेय नहीं मिला है। 
वहीं जन शिक्षा निदेशालय द्वारा 8463 पंचायतों में लोक शिक्षा केन्द्र स्थापित किये गये हैं। केन्द्र में लाइब्रेरी स्थापित कर टीवी खरीदने के लिए 60 हजार रुपए आवंटित करने थे। इसमें सूबे के 38 जिलों में केवल भोजपुर, लखीसराय और खगडि़या ही भाग्यशाली निकले, जिन्हें एकमुश्त 60 हजार रुपए उपलब्ध करा दिये गये हैं। शेष 35 जिले पटना, नालंदा, रोहतास, भभुआ, बक्सर, गया, अरवल, जहानाबाद, औरंगाबाद, नवादा, सारण, सीवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, पूर्णिया, अररिया, किशनगंज, कटिहार, भागलपुर, जमुई, बांका, शेखपुरा, मुंगेर और बेगूसराय को 16 हजार 153 रुपए थमा दिये गये। शेष 43 हजार 847 रुपयों का गोलमाल कर दिया गया। इसके अलावा 2250 रुपए भी मिलने थे, जिससे कागजात आदि क्रय करना है, उसे भी नहीं दिया गया। अब साक्षर भारतकर्मी संघ, नालंदा के अध्यक्ष सरोज ठाकुर का कहना है कि 2014 में पटना उच्च न्यायालय में जनहित याचिका पेश की जाएगी। 

शिक्षक बन पुत्र ने अपने पिता को बंधुआ मजदूरी से छुड़ाया

पटना : पटना जिले में अवस्थित है पालीगंज। एक नक्सल प्रभावित क्षेत्र। इससे सटे ही नक्सल प्रभावित क्षेत्र भोजपुर है। इसकी चपेट में आ जाने से पालीगंज भी अछूता नहीं रहा। यहां के नक्सलियों के प्रभाव में आकर छुटभैया भी दबंग बन गए। ये महादलितों को बेहद ही तुच्छ समझने लगें। ये महादलितों पर सोनार की तरह नहीं, लोहार की तरह चोट करते। 
पालीगंज में ही अजदा सिकरिया ग्राम पंचायत है। इस पंचायत में ठकुरी गांव है। यहां राम छविला पासवान रहते हैं। इनके पिता का नाम वंशी पासवान और माता का नाम जागेश्वरी देवी है। राम छविला के भाई राम नरेश पासवान की मृत्यु गोली चलाना देखने के क्रम में हो गयी। राम छविला के 2 पुत्र है - अजय कुमार और संजय कुमार। संजय दसवीं की परीक्षा दे चुका है। राम छविला पासवान मध्य विद्यालय, पालीगंज में पढ़ाते हैं। इसी साल अवकाश ग्रहण करेंगे। 
राम छविला पासवान बताते हैं कि गांव में झलक देव शर्मा रहते हैं। इन्हीं के पास मेरे पिताजी वंशी पासवान बंधुआ मजदूर थे। मालिक के पास 24 बीघा खेती योग्य जमीन थी। अब 3 भाइयों में बंट चुकी है। एक दिन खेत पर आकर झलक देव शर्मा कहने लगे - ‘तू परीक्षा देवे जाएगा तो मेरा हल कौन जोतेगा?’ इतना सुनते ही छविला पासवान गुस्से स ेजल उठा। उसने अपने बाबूजी से कहा कि आप मजदूरी छोड़ दें। इसपर उसके पिता ने कहा कि झलक देव गोली मार देगा। 
शिक्षक राम छविला पासवान आगे बताते हैं कि जब इस बात की जानकारी मेरे अनुज राम नरेश को चली, तो घर आकर आग बबूला हो उठा। किसी तरह से उसे शांत किया गया। मैं मैट्रिक और फिर बिहारशरीफ स्थित नूरसराय के पास शिक्षण प्रशिक्षण केन्द्र से पास कर शिक्षण कार्य करने लगा। काम शुरू कर अपने पिता को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया। जमीन खरीदी। इन सब से पिता इतने खुश हुए कि मौत के मुंह में समा गए। 
शिक्षक राम छविला पासवान ने बताया कि मैंने प्रयास कर 4 लोगों को टोला सेवक में बहाल करवाया। ये हैं पीयूष कुमार, रामप्रवेश मांझी, विशुनदेव मांझी और प्रदीप मांझी। विकास मित्र में रिंकी कुमारी और आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका के रूप में रेवंती देवी को बहाल कराया। अब अवकाश ग्रहण करने के बाद मैं सामाजिक कार्य करूंगा।

बिहार के लोगों को नहीं रहा स्मार्ट कार्ड पर भरोसा

न्यूज@ई-मेल

स्मार्ट कार्ड रहते दिखाते हैं प्राइवेट डाॅक्टर को 

भोजपुर : ग्राम-देवनारायण नगर, पंचायत-बरूही, पोस्ट-बरूही, थाना-सहार, जिला-भोजपुर। व्यवसाय बांस के सूप, बेना आदि बनाना और बेचना। खेती के समय धान और गेहंू काटना और पिटाई करना। देवनारायण नगर में करीब 130 घर हैं। ये सभी मुसहर और डोम जाति के हैं। 55 परिवारों का स्मार्ट कार्ड बना हुआ है। यहां काफी लोगों को फोटो के लिए पर्चा मिला, पर फोटो नहीं खिचवाने गये। इस कारण स्मार्ट कार्ड नहीं बन सका। बीमारी होने पर ये अपने पैसे से इलाज करवाते हैं। कुछेक के पास स्मार्ट कार्ड है। फिर भी ये स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल नहीं करते। गांव की ही एक महिला कहती है, ‘‘हमरो पेट के आॅपरेशन करावे के रहे, पर पैसा ना जुटल अउर आॅपरेशन न हो सकल।’’ यह गांव जिला से 43 किलोमीटर दक्षिण सोन नदी के पूर्वी किनारे पर अवस्थित है। 

कार्ड को लेकर जागरूकता का अभाव 

भोजपुर : जिले मंे सहार प्रखंड है। इसी प्रखंड में है गुलजारपुर पंचायत। गांव से प्रखंड की दूरी 8 किलोमीटर है। जिला मुख्यालय की दूरी 32 किलोमीटर। गांव में कुल 263 घर हैं। दलित और पिछड़ी जाति के लोग यहां रहते हैं। बीमार पड़ने पर लोग 5 किलोमीटर की दूरी तय कर नारायणपुर बाजार स्थित निजी क्लिनिक में जाते हैं। यहां के कुछ लोग 8 किलोमीटर की दूरी तय कर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सहार जाते हैं। गांव में करीब 150 लोगों का राष्ट्रीय स्वास्थ्य जीवन बीमा के तहत कार्ड बना है। यहीं विधवा महेश्वरी देवी भी रहती है। इनका भी स्मार्ट कार्ड बना हुआ है। विडम्बना है कि महेश्वरी ने 30 रुपए देकर स्मार्ट कार्ड तो बनवा लिया है, लेकिन उसे बक्सा में रखकर भूल चुकी है। महेश्वरी इनदिनों बीमार है। इसके बावजूद स्मार्ट कार्ड से मिलने वाली बीमित राशि का उपयोग नहीं कर सकी है। साथ ही, उसके पास पैसे का अभाव है। इस तरह वह डाॅक्टर को नहीं दिखवा पा रही है। स्मार्ट कार्ड रहते रोग लेकर घुम रही है। कुछ ऐसी ही स्थिति गांव के अन्य लोगों की भी है।

दस साल बाद हो सकेगा बच्चेदानी का आॅपरेशन

गया : जिले के मोचारिम पंचायत में मोचारिम मुसहरी है। यहीं भोला साव नामक मजदूर रहता है। उसे एक लड़का और एक लड़की है। मानसी कुमारी (9 साल) और मानव कुमार (7 साल) का है। दोनों के जन्म के बाद भोला साव की पत्नी शकुंतला देवी (30 साल) महिला रोग से बेहाल हो गयी। ठीक तरह से मासिक स्त्राव नहीं होने और पेट दर्द की शिकायत है। वह चिकित्सकों को दिखवा चुकी है। चिकित्सक उसे आॅपरेशन करवाने की सलाह दे चुके हैं। लेकिन, परेशानी यह है कि स्मार्ट कार्ड के माध्यम से उसे आॅपरेशन का लाभ तभी मिल सकेगा, जब वह 40 साल की हो जाएगी। इस समय बच्चेदानी का आॅपरेशन करना हाई रिस्क हो गया है। ज्ञात हो कि हाल के दिनों में बच्चेदानी का आॅपरेशन करने पर लूटपाट की खबरें आयी थीं। इस कारण ही चिकित्सक स्मार्ट कार्ड से आॅपरेशन करने से कतरा रहे हैं। मजदूर परिवार की होने के कारण शकुंतला किसी प्राइवेट क्लिनिक में आॅपरेशन करवाने में सक्षम नहीं है। ऐसे में स्मार्ट कार्ड के रहते उसे कम से कम 10 साल तक इंतजार करना होगा। और इन दस सालों में अगर वह बच जाती है, तो उसका आॅपरेशन हो सकेगा।

मृत्यु प्रमाण पत्र भी निर्गत नहीं करते डाॅक्टर

भोजपुर : जिले के संदेश प्रखंड में कन्हैया लाल के पुत्र दुर्गा लाल (45 साल) रहते हैं। दुर्गा लाल को पेशाब की थैली में पत्थरी थी। करीब 15 दिनों से पेशाब रूक गया था। उनकी पत्नी पार्वती देवी ने संदेश के ही किसी चिकित्सक से दुर्गा को दिखाया। उन्हें पाइप लगाकर पेशाब उतार दिया गया। पांच दिनों के बाद संदेश से दुर्गा को आरा लाया गया। डाॅ. टीपी सिंह से 8 दिनों तक इलाज करवाया गया। दुर्गा की मर्ज में सुधार नहीं होने पर उसे बिहटा ले जाया गया। यहां के चिकित्सक ने जांच कर कहा कि पेशाब की थैली में पत्थरी है। ऑपरेशन करने में 14 हजार रुपए लगेंगे। 
दुर्गा लाल के नाम से स्मार्ट कार्ड बना हुआ है। कई जगहों पर चक्कर लगाने के बाद 12 मई, 2012 को डाॅक्टर नरेश प्रसाद से दुर्गा को देखा। आवश्यक जांच करवाने के बाद घर भेज दिया। उनको अगले दिन 13 मई को भर्ती किया गया। भर्ती होने के तीन घंटे के बाद डाॅक्टर नरेश प्रसाद ने दुर्गा का ऑपरेशन किया। मगर अगले ही दिन 14 मई को दुर्गा की मौत हो गयी। 
मौत होने से घबराड़े डाॅक्टर ने खुद एम्बुलेंस कॉल करके मरीज को सदर अस्पताल ले जाने का आदेश दे दिया। शव को एम्बुलेंस से सदर अस्पताल ले जाया गया। रिश्तेदारों ने जब 15 मई को हंगामा किया, तो डाॅक्टर नरेश प्रसाद ने अपने लेटर पैड पर रेफर टू पीएमसीएच लिखकर दे दिया। पहले डाॅक्टर नरेश प्रसाद ने दिनांक 15-5-2012 लिखा। उसके बाद 15 तारीख को बदलकर 14 बना दिया। यहां से मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया गया। अस्पताल से मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत नहीं होने पर बिहार सरकार (योजना एवं विकास विभाग) के सांख्यिकी एवं मूल्यांकन निदेशालय से मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया गया। इसकी संख्या 724183 है। पंजीयन संख्या 12 है। यह 18-5-2012 को सतीश कुमार सिंह के द्वारा जारी किया गया है। अब इस प्रमाण पत्र से बीमा की जमा राशि नहीं निकाली जा सक रही है। इस कारण परिवार की परेशानी बढ़ गयी है। 7वीं कक्षा छोड़कर जय गोविन्द कुमार (16 साल) बाल मजदूर बन गया है। अभी वह केरल में काम कर रहा है। प्रीति कुमारी (12 साल) 5वीं में और काजल कुमारी (6 साल) अध्ययनरत है। मां बावली बनकर न्याय की भीख मांगती फिर रही है। 
परिजन दुर्गा लाल की मौत की न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं। परिजनों का आरोप है कि चिकित्सक की लापरवाही के कारण दुर्गा लाल की मौत हुई है। अब वे मुआवजे के तौर पर 10 लाख रुपए की मांग कर रहे हैं। साथ ही, अस्पताल द्वारा मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत करने की मांग कर रहे हैं, ताकि उनकी बेवा पार्वती बीमा कंपनी को प्रमाण पत्र देकर बीमा की राशि निकाल सके। साथ ही परिजनों की मांग है कि पार्वती को लक्ष्मी बाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिले और बाल मजदूर बन चुके जय गोविन्द कुमार और उसकी बहनों को पढ़ाने की व्यवस्था सरकारी स्तर से की जाए। 
ज्ञात हो कि श्रम एवं नियोजन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा निजी कंपनी आईसीआईसीआई, लोम्बार्ड जेनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के सहयोग से राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीआई) योजना के अन्तर्गत स्मार्ट कार्ड प्रदान किया जाता है।
  • इस कार्ड के माध्यम से नगद भुगतान किये बिना एक वर्ष के अन्तर्गत तीस हजार रुपए तक का मुफ्त ईलाज कार्डधारी करा सकता है 
  • इस कार्ड का प्रयोग परिवार के पांच सदस्यों के मुफ्त ईलाज में किया जा सकता है 
  • भत्र्ती होने की स्थिति में कार्ड प्रस्तुत करने पर सूचीबद्ध बीमारियों का बिना किसी शुल्क का ईलाज होगा 
  • जरूरत के अनुसार, अस्पताल से छुट्टी होने पर पांच दिनों की अतिरिक्त दवा मुफ्त मिलेगी 
  • अस्पताल से छुट्टी होने पर 100 रुपए आने-जाने का खर्च मिलेगा 
  • इस कार्ड से देश भर में कहीं भी किसी भी सूचीबद्ध अस्पताल में ईलाज करवाया जा सकता है 
  • अस्पताल पहंुचने पर स्मार्ट कार्ड काउन्टर पर दर्ज करवाना होता है।

शुक्रवार, 16 मई 2014

कचरे से 500 रुपए रोज कमाती है रीता देवी!

पटना : बिहार में मनरेगा लागू होने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दानापुर प्रखंड अन्तर्गत जमसौत मुसहरी में रहने वाले महादलित मुसहर समुदाय के बीच जाॅब कार्ड निर्गत किया। जाॅब कार्ड के द्वारा कुछ साल तक लोगों को काम मिला। शहर में जाकर कचरा से रद्दी कागज, प्लास्टिक, लोहा आदि चुनना बंद हुआ। इससे लोगों के बीच स्वाभिमान जागा। जि़ंदगी थोड़ी सुधरी। लेकिन, अब लोगों को समय पर काम और मजदूरी नहीं मिलने से परेशानी बढ़ी है। महादलितों का जीवन फिर से उसी पटरी पर आ गया है, जिसपर पहले था।
आइए, अब महादलितों की जिन्दगी पर एक नजर डालते हैं। जमसौत में ही दिनेश मांझी रहते हैं। इनकी पत्नी है रीता देवी। रीता का मायका शबरी काॅलोनी, दीघा में है। यह अनपढ़ है। इसे भी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम मिलता है। लेकिन, यह सब सिर्फ कहने को! यही कारण है कि वह प्रतिदिन जमसौत से टेम्पो पकड़कर दीघा अपने मायके आती है। यहां आकर अपनी सहेलियों के साथ कचरे के ढेर से कागज, प्लास्टिक, लोहा आदि चुनने जाती है। और उसे किसी कबाड़ी वाले के यहां बेचकर प्रतिदिन करीब 500 रुपए कमाती है। 
रीता के चार बच्चे हैं। दो लड़की और दो लड़का। फिलवक्त तीन बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं। एक विकास कुमार ही पढ़ने नहीं जाता है। वह भी अपनी मां के साथ कचरे के ढेर पर अपनी तकदीर तलाशता है! 
इसी तरह यहां के लोगों का जाॅब कार्ड से मोहभंग हो चुका है। जाॅब कार्ड को वे बक्सा में रखकर भूल चुके हैं। अब अन्य तरह के कार्य में जुट गए हैं। यह है सरकारी योजनाओं की सच्चाई। और वह भी वहां जहां सुशासन की सरकार हो! सरकारी बाबू तो भगवान बने बैठे हैं यहां। चुनाव में सरकार को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। ऐसा वे लोग ही कह रहे हैं, जिन्हें कचरे के ढेर पर अपनी जिन्दगी तलाशनी पड़ रही है। 

साफ दिखता है पवना पंचायत के मुसहरों का दर्द

भोजपुर : दस साल पहले अगलगी में पवना मुसहरी टोला के 74 लोगों के जमीन के कागजात जलकर खत्म हो गये। इस पंचायत के मुखिया उमेश सिंह हैं। इस संबंध में प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यकर्ता इन्दु देवी और विनोद कुमार ने सीओ को आवेदन दिया और वासगीत पर्चा निर्गत करने का आग्रह किया। अबतक कार्रवाई नहीं हुई। 
4 बीघा जमीन पर मुसहरी फैली है। कच्ची-पक्की 75 झोपडि़यां हैं। जनसंख्या करीब 300 के आसपास। मात्र 3 बच्चे प्रमोद राम, विमलेश राम और सुरजीत राम मैट्रिक पास हैं। बताते चलें कि भोजपुर जिले के मुसहर ‘मांझी’ के बदले ‘राम’ लिखते हैं। केवल 5 भाग्यशाली हैं, जिनका राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत स्मार्ट कार्ड बना है। लेकिन, इन्होंने कभी स्मार्ट कार्ड का उपयोग नहीं किया है। बगल में स्थित प्राथमिक विद्यालय में 25 बच्चे पढ़ने जाते हैं। व्यवस्थित ढंग से आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित नहीं है। महाराज राम बताते हैं कि उनके 12 साल के बेटे शारदा कुमार को मिर्गी की बीमारी है। वहीं तपेश्वर राम की 10 साल की बेटी हीराझरी कुमारी को भी मिर्गी की बीमारी है। रामाशीष राम ने बताया कि इन्दिरा गांधी सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि नियमित नहीं मिलती है। पिछले एक साल से अनियमित है। 
झोपड़ी में बैठी यमुनी देवी कहती है कि इन्दिरा आवास योजना के तहत मकान नहीं बन रहा है। जिसका मकान बना है, उसे मात्र 20 हजार रुपए मिले हैं। कुछ सीमेंट भी मिला था। घर से पैसा भी लगाया, इसके बावजूद मकान अधूरा है। अभी कुछ को 70 हजार रुपए मिले हैं। यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित है। यहां 75 हजार रुपए मिलने चाहिए थे। पूरे टोला में केवल एक चापाकल है। इसी से पूरी मुसहरी का काम चलता है। यहां के लोग खेत में मजदूरी करते हैं। अभी गेहूं कटनी में 12 बोझा तैयार करने पर एक बोझा मजदूरी में मिलता है।

भोजन के बाद पानी पर भी आफत!

पटना : भोजन के बाद पानी पर भी आफत आ चुका है। ऐसे में गरीबों का क्या होगा, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बिहार में तो काफी पहले से बोतलबंद पानी बेचा जाता रहा है। अब बड़े-बड़े जार में भी बिकने लगा है। पेयजल की किल्लत ने इसकी मांग बढ़ा दी है। इसी क्रम में दानापुर में एक नया प्लांट बैठाया गया है। पहले से ही बिहार में कई प्लांट हैं। 
स्वास्तिक एक्वा नामक जार में पेयजल भरकर लाया जाता है। इससे आप 8 घंटे तक ठंडा पानी का मजा ले सकते हैं। अभी दो तरह के जार में पानी मुहैया कराया जा रहा है। 2 रुपए लीटर की दर से 15 लीटर वाले जार की कीमत 30 रुपए और 20 लीटर वाले जार की कीमत 40 रुपए है। पहले 15 लीटर वाले और बाद में 20 लीटर वाले जार को मार्केट में उतारा गया है। दानापुर, राजाबाजार, बोरिंग रोड, खगौल आदि क्षेत्रों में इस पेयजल को उपलब्ध कराया जा रहा है। कंपनी के पास 6 वाहन हैं। एक वाहन पर 70 जार लादे जाते हैं। उपभोक्ताओं को कार्ड इश्यू किये जाते हैं। महीना पूरा होने पर सेल्समैन कीमत वसूल करते हैं। धीरे-धीरे ही सही, राजधानी में पानी का कारोबार फल-फूल रहा है। सरकार मौन धारण कर रखी है। जनता को पीने के पानी तक खरीदने पड़ रहे हैं!

शुक्रवार, 9 मई 2014

तिहाड़ और संसद

DR.  LALGI  PRASAD  SINGH
अभी थोड़ा-बहुत ‘तिहाड़’
संसद में बैठा है
कभी बहुत-कुछ संसद
तिहाड़ में कब बैठेगी ?
तिहाड़ से संसद में जाने की
बहुत तरकीबें हैं
संसद से ‘तिहाड़’ में जाने की 
तरकीब कब निकाली जाएगी ?
लूट-पाट व झूठ-फरेब के आरामगाह
एयरकंडीसंड आलीशान बंगले
सच्चाई दर-दर की ठोकरें खा रही
वह बेचारी बन सड़कों पर नाक रगड़ रही
सबकुछ साफ-साफ नजर आने वाली चीज
खादी को कब नजर आएगी?
कितनी ही महिलाओं का
शील-हरण जारी है रोज
बलात्कारियों की शामत कब आएगी ? 
जो झोंकते रहे धूल अबतक
जनता की आंखों में
आदत से लाचार
अब झोंकने लगे संसद में
आपस में मिर्च की बुकनी
फिर तो ऐसे माननीयों को
संसद से बाहर की 
राह कब दिखाई जाएगी ?
भ्रष्टाचार बेखौफ चूस रहा
लेगों का खून
महंगाई सुरसा की तरह
मंुह फैलाए खड़ी है जनता के सामने
उसपर काबू पाने के लिए हनुमान की
भूमिका कब निभाई जाएगी ?
हिन्दुस्तान सच्चाई एवं ईमानदारी के लिए 
जब न तब अंगड़ाई लेकर रह जाता
सचमुच यह दुनिया का सरताज कहलाए 
तमाम बदलाओं की वह अगुआई कब आएगी ?
कवि-कथाकार डाॅ. लालजी प्रसाद सिंह, पटना

आरटीआई आवेदनों की प्राप्ति रसीद नहीं देते बड़ा बाबू !

पटना : नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों पर नौकरशाह कैंची चलाने पर अमादा हैं। वह चाहे वनाधिकार कानून हो, खाद्य सुरक्षा अधिकार हो या फिर शिक्षा का अधिकार या सूचना का अधिकार। नौकरशाह नागरिकों के अधिकारों के साथ खिलवाड़ करने पर तुले हैं। 
बिहार में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्रेषित आवेदनों की प्राप्ति रसीद नहीं दी जाती है। प्राप्ति रसीद नहीं देने में कार्यालय के बड़ा बाबू का हाथ बताया जाता है। बताया जाता है कि अगर बड़ा बाबू आवेदक को प्राप्ति रसीद दे देंगे, तो लोक सूचना पदाधिकारी को 30 दिनों के अंदर पूछे गये सवालों की जानकारी देनी होगी। अहम सवाल यह है कि साहब के पास जानकारी हो तब न वे देंगे।
अगर साहब 30 दिनों के अंदर जानकारी नहीं देते हैं, तो उनकी परेशानी बढ़ सकती है। पहले तो आवेदक प्रथम अपील करेगा। अगर प्रथम अपील की जानकारी नहीं दी जाती है, तो आवेदक लोक सूचना पदाधिकारी और प्रथम अपील के आवेदनों को मिलाकर राज्य सूचना आयोग में जाकर द्वितीय अपील कर देगा। अगर राज्य सूचना आयोग सख्त हुआ, तो जानकारी नहीं देने के एवज में लोक सूचना पदाधिकारी को अर्थदण्ड भी लगा सकता है। बस, इसी से बचने के लिए प्रारंभिक काल से ही अड़चन लगाना शुरू कर दिया जाता है। 
एकता परिषद के बिहार संचालन समिति की सदस्य सिंधु सिन्हा ने कहा कि साधारण कागज और कम्प्यूटर प्रिंट पर आवेदन देने पर कार्यालय के बाबू स्वीकार नहीं करते हैं। दूसरी तरफ, बाजार से आवेदन प्रपत्र खरीद और उसे भरकर देने के बाद भी कार्यालय के बड़ा बाबू आवेदनों की प्राप्ति रसीद नहीं देते हैं। ऐसे में मजबूरी में आवेदक आवेदन प्रपत्र को रजिस्ट्री करने को बाध्य हैं। 
उन्होंने बताया कि खबर छपी थी कि 1,84,037 भूमिहीन परिवारों को तीन-तीन डिसमिल जमीन उपलब्ध करायी गयी है। इसमें भोजपुर जिले के चिन्हित 531 परिवारों को जमीन देकर शतप्रतिशत उपलब्धि हासिल कर ली गयी है। इसकी संपुष्ठि आरटीआई के माध्यम से करनी थी। आप लाभान्वितों की सूची उपलब्ध करा दें, ताकि उनके घर जाकर सच्चाई जाना जा सके। 
भोजपुर जिले के संदेश थानान्तर्गत सुन्दरपुर गांव निवासी गिरधारी ठाकुर ने संदेश प्रखंड के अंचलाधिकारी से सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी। प्रखंड संदेश के किस-किस गांव में और कितने बीपीएल परिवारों को आवासीय भूमि 3 डिसमिल जमीन वितरण की गयी है? इसकी सूची उपलब्ध करायी जाए। 
8 माह गुजर गये। संदेश प्रखंड के लोक सूचना पदाधिकारी, अंचलाधिकारी के कार्यालय से किसी तरह की जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। मगर, गिरधारी ठाकुर ने प्रेषित प्रपत्र को बेहतर ढंग से रखा है। उसे उम्मीद है कि सूचना के अधिकार के तहत उसे जानकारी जरूर मिलेगी।

बीडीओ को सौंपा स्मार पत्र

गया : कुर्था प्रखंड के विकास पदाधिकारी उषा कुमार को दो दिवसीय महिला किसान जागरूकता पदयात्रा के समापन पर स्मार पत्र सौंपा गया। स्मार पत्र में मांग की गई कि भूमिहीन महिलाओं को किसानी का दर्जा दिया जाए। साथ ही सामूहिक खेती, बटाईदारी खेती, एकल खेती के अलावा सब्जी की खेती करने वाले लघु एवं सीमांत किसानों से लाभान्वित कराया जाए। इसके अलावा प्रखंड में किसान पाठशाला का निर्माण किया जाए और माणिक पाकड़ में रहने वाले महादलित परिवारों को वासगीत पर्चा निर्गत किया जाए।
इससे पहले आॅक्सफैम इंडिया के सहयोग से गैर सरकारी संस्था प्रगति ग्रामीण विकास समिति ने खेमखरण सराय से महिला किसान जागरूकता पदयात्रा शुरू की। पदयात्रा कुर्था, नैनसुखबीघा, कुर्मीडीह, सच्चाईमठ, हड़पुर, नदौरा, लोदीपुर, सहाबाजपुर आदि क्षेत्रों से होकर प्रखंड मुख्यालय पहुंची। इसके बाद स्मार पत्र दिया गया। महिला किसान मंच की प्रखंड अध्यक्ष शीलमन्ती देवी के नेतृत्व में चली पदयात्रा में डोमनी देवी के अलावा गणेश दास, मंजू डुंगडुंग, शैल देवी, राजकुमार सहित कई लोग उपस्थित थे।

आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा बरता जा रहा भेदभाव

पटना : पटना सदर के नकटा ग्राम पंचायत के बिन्द टोली में 20 मार्च, 2014 की रात आग लगी थी। खाना बनाते समय लगी आग की चपेट में आकर दर्जनों झोपडि़यां धू-धू कर जल गयीं। घंटों मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। बाद में आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा 46 सौ रुपए पीडि़तों को दिया गया।
दूसरी तरफ पटना में ही रामनवमी के दिन 5 बजे शाम में शाॅट सर्किट से आग लगने से 25 घर स्वाहा हो गये। आग की लपटों की चपेट में आकर कई घर जल गये। लाखों की संपत्ति नष्ट हो गयी। कुल मिलाकर भवन निर्माण करने वाले मजदूर रोड पर आ गए। 
भरत बिन्द, गंगा बिन्द, दीपक बिन्द, बाबूलाल बिन्द, हीरा लाल बिन्द, शर्मिला देवी, मुन्नर देवी आदि ने बताया कि हमलोग भवन निर्माण करने वाले मजदूर हैं। रूपसपुर थाना क्षेत्रान्तर्गत पाटलिपुत्र-दानापुर रेलखंड के ऊपरी पुल के नीचे और रेलखंड के बगल में 20 साल से रहते आ रहे हैं। पहले शेखपुरा में रहते थे। रामनवमी के दिन सभी लोग राम-राम भज ही रहे थे कि अचानक आग लग गयी। देखते ही देखते 5 मिनट में ही 25 घर जलकर खाक हो गये। अग्नि पीडि़त परिवारों को 42 सौ रुपए मिले हैं। कई परिवार लाभ से वंचित रह गये। 
एक अलग घटना में हड़ताली मोड़ के समीप आग से 25 झोपडि़यां जल गयीं। सुनीता देवी ने बताया कि आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा 46 सौ रुपए और 50 किलोग्राम चावल और उतने ही गेहूं मिले हैं।