COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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सोमवार, 28 अप्रैल 2014

टीबी से मर रहे महादलित

न्यूज@ई-मेल
आलोक कुमार
पटना : एलसीटी घाट मुसहरी निवासी सुदेश्वर मांझी की पत्नी चंदा देवी की मौत पिछले दिनों टीबी बीमारी से हो गयी। उसे गंगा किनारे दफन कर दिया गया। इस मुसहरी में अभी तक कइयों की मौत टीबी बीमारी से हो चुकी है। मोती मांझी और उनकी पत्नी, उनके दामाद सुरेन्द्र मांझी और उनकी पत्नी सीता देवी की मौत हो चुकी है। अभी हाल ही में ललित मांझी भी मर गया। 
ज्ञात हो कि इसी क्षेत्र में कुर्जी होली फैमिली अस्पताल के सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास समिति के परिसर में डाट्स सेन्टर है। यहां पर पंजीकृत रोगियों को दवा के साथ एक अंडा फ्री में दिया जाता है। यहीं से चन्दा देवी दवा खा रही थी। कुछ दिनों तक दवा खाने के बाद दवा छोड़ दी। इसके बाद फिर से बीमार पड़ी तो राजापुर-मैनपुरा स्थित स्वास्थ्य केन्द्र में जाकर टीबी की दवाई आरंभ की, मगर उसे बचाया नहीं जा सका।
पहल के निदेशक डाॅ. दिवाकर तेजस्वी ने बताया कि एक्सडीआर (एक्सटंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट) एवं एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट) टीबी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। विशेषकर, एक्सडीआर टीबी की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह एड्स से भी अधिक खतरनाक है। पब्लिक अवेयरनेस फाॅर हेल्थफुल एप्रोच फाॅर लिबिंग (पहल) के निदेशक डाॅ. दिवाकर तेजस्वी बताते हैं कि बिहार एवं देश में नए टीबी के रोगियों में तीन से चार प्रतिशत एमडीआर टीबी एवं रिलैप्स टीबी के रोगियों में करीब-करीब 15 प्रतिशत एमडीआर टीबी पाई जा रही है। उन्होंने बताया कि इसका घातक पहलू यह है कि इस बीमारी से होने वाले संक्रमित व्यक्ति को भी इसी कैटोगरी की बीमारी होती है, जिनपर दवाओं का प्रभाव नहीं होता। प्रतिरोधक टीबी की जांच के लिए बलगम को कल्चर एवं सेंसीटीविटी के लिए भेजा जाता है, जिसमें छह से आठ सप्ताह का समय लगता है।

पट्टाहीनों को पट्टा दे सरकार

जहानाबाद : सेवनन ग्राम पंचायत में मोकर गांव है। यहां के किसी व्यक्ति ने बिन्द समुदाय को जमीन दी थी। इसपर बिन्द लोग 25 घर बनाकर रहते हैं। कोई 125 लोगों की आबादी है। कोई भी मैट्रिक पास नहीं है। इन बिन्दों को खेत में काम करवाने के लिए यहां लाया गया था। 
ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सांसद डी. बंधोपाध्याय की अध्यक्षता में भूमि सुधार आयोग गठित किया था। आयोग के अध्यक्ष ने सरकार को सुझाया था कि बटाईदारों को पहचान पत्र निर्गत किया जाए। ऐसा करने से बटाईदारों को भी सरकारी क्षतिपूर्ति का लाभ मिल पाता। इस तरह की अनुशंसा को सरकार मानी नहीं। फलतः किसी तरह से फसल नुकसान होने पर बटाईदारों को सरकारी क्षतिपूर्ति का लाभ नहीं मिल पाता है। इस कारण लोगों में गुस्सा है।
राम ईश्वर बिन्द बताते हैं कि यहां के बिन्द समुदाय के सभी 25 परिवारों को सरकार ने बीपीएल श्रेणी में शामिल किया है। खाद्य सुरक्षा योजना के तहत इस बार बीपीएल व एपीएल को समान रूप से योजना में शामिल कर लिया गया है। सभी को 5 किलोग्राम अनाज प्रति व्यक्ति के हिसाब से मिलने लगा है। दूसरी तरफ इंदिरा आवास योजना का लाभ कुछेक को मिला है। अभी और लोग हैं, जिनका मकान नहीं बना है। इसके अलावा सभी को वासगीत पट्टा भी मिलना चाहिए, यह आजतक नहीं मिला है। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी से आग्रह किया गया है कि आम चुनाव के बाद अधिकारियों को भेजकर वासगीत पट्टा निर्गत कर दिया जाए। 

भूमि अधिकार घोषणा पत्र लागू हो

पटना : ‘जल, जंगल, जमीन की जंग में वंचित समुदाय संग में’ का नारा बुलंद करने वाली एकता परिषद के द्वारा भूमि अधिकार घोषणा पत्र जारी किया गया है। अभी राजनीतिक दलों के द्वारा आम चुनाव के अवसर पर घोषणा पत्र जारी करना है। इसके आलोक में भूमि अधिकार घोषणा पत्र जारी किया गया है। 
भूमि के मसले पर व्यापक कार्रवाई करने के लिए नवान्तुक सरकार और सांसद को मुद्दा थमा दिया गया है। यह है ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीनों और आवासहीनों को भूमि अधिकार सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की घोषणा और अनुपालन। सामाजिक न्याय की पुनस्र्थापना के लिए ‘राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार कानून’ तथा ‘कृषि भूमि वितरण कानून’ के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण भूमिहीन तथा आवासहीनों को भूमि अधिकार सुनिश्चित कराना है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक भूमिहीन और आवासहीन परिवारों को भूमि अधिकार देने के लिए ‘न्यूनतम भूमि धारिता कानून’। भूमि अधिकार और सुधार को लागू करने के लिए राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर पूर्णकालिक भूमि सुधार आयोग का गठन करना। राज्य तथा जिला स्तर पर वैधानिक मार्गदर्शन देने तथा गरीबों को कानूनी मदद देने के लिए त्वरित न्यायालय तथा कानूनी मार्गदर्शन केन्द्र की स्थापना करना। आदिवासी तथा दलितों को अवैध भूमि हस्तांतरण को सख्ती से रोकने के लिए मौजूदा कानूनों को लागू करना। दलित भूमि हस्तांरण (निरोधक) कानून की घोषणा और अनुपालन ताकि दलित समाज को व्यक्तिगत और सामुदायिक मानवाधिकार के वृहद, दृष्टिकोण से भूमि तथा कृषि सुधार नीतियां और कानूनों का अनुपालन। ‘सामुदायिक संसाधन एवं संवर्धन बोर्ड’ की स्थापना के माध्यम से ग्राम सभा को सशक्त करना। पंचायत (विस्तार उपबंध) अधिनियम-1996 को वैधानिक सर्वोच्चता प्रदान करना। नगरीय सीमा (विस्तार उपबंध) अधिनियम का निर्माण और लागू करना। राष्ट्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर ‘वनाधिकार आयोग’ का गठन करते हुए आदिवासियों और परंपरागत वनवासियों को अधिकार सुनिश्चित करना। ‘राष्ट्रीय आदिवासी नीति’ की घोषणा और अनुपालन। ‘महिला भूमि अधिकार कानून’ की घोषणा और अनुपालन ताकि आधी आबादी को उनका अधिकार सुनिश्चित किया जा सके।

‘हमारा अधिकार, हमारी आवाज’ को बुलंद रखें: अभिनव

मध्य प्रदेश : मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले दिनों कोई 17 जिलों से समुदाय आधारित संगठनों (सीबीओ) ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर सीबीओ के लगभग 2,000 लोग उपस्थित थे। जन उत्सव पर एकत्रित हुए सीबीओ ने अपनी उपलब्धियों को बताया। जमीनी स्तर से मिली सीख को साझा किया। स्थानीय लोक नृत्य और संगीत पेश किया गया। गर्भवती माताओं और बच्चों की देखभाल के लिए, किशोरों की शादी को लेकर उत्पन्न समस्याओं पर भी चर्चा हुई। स्थानीय समुदायों के हकों पर प्रकाश डालते हुए समारोह के लिए एक सांस्कृतिक संवाद की पेशकश की गयी।
इससे पहले पैक्स के हेड अभिनव कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पैक्स की शक्ति और ऊर्जा आज यहां मौजूद है। जन समुदाय के भीतर हमारे कार्यक्रम को विकसित किया गया। अब नेतृत्व क्षमता को देखना और उन्हीं के नेतृत्व में उत्सव करना है। दो दिनों तक जश्न मनाया गया। उन्होंने कहा कि ‘हमारा अधिकार, हमारी आवाज’ को लेकर ग्रामीण मुद्दों को उछालते रहना है। 
इस अवसर पर यहां रैली भी निकाली गयी। साथ ही स्वास्थ्य एवं भूमि अधिकार की मांग, रोजगार गारंटी कानून एवं वन अधिकार कानून में व्यापक सुधार करने की मांग की गयी। देश में 17 जिलों को सबसे पिछड़े जिलों के रूप में चिह्नित किया गया। पैक्स (पूअरेस्ट एरियाज सिविल सोसायटी) एवं 15 अन्य सहयोगी स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा निशात मंजिल में ‘जन उत्सव’ का आयोजन किया गया।

प्रधानमंत्री को याद दिलाने के लिए भेजा पोस्टकार्ड

अरवल : एकता परिषद द्वारा पोस्टकार्ड अभियान चलाया गया। इसके तहत हजारों की संख्या में आवासीय भूमिहीन प्रधानमंत्री के नाम पाती भेज चुके हैं। इसके माध्यम से भूमिहीनों ने माननीय प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि ग्वालियर से चलकर सत्याग्रही अक्तूबर, 2012 को आगरा पहुंचे थे। तब केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और जन सत्याग्रह 2012 के महानायक पी.व्ही. राजगोपाल के संग ऐतिहासिक समझौता हुआ था। अब किये गये समझौते की याद प्रधानमंत्री को दिलायी जा रही है। साथ ही आवास भूमि अधिकार कानून बनाने की मांग की जा रही है।
अभियान का नेतृत्व कर रहे प्रदीप प्रियदर्शी ने कहा कि अबतक सूबे से हजारों की संख्या में भूमिहीनों ने पोस्टकार्ड पर अपना दुखड़ा लिखकर भेजा है। एकता परिषद, बिहार संचालन समिति की सदस्य मंजू डुंगडुंग ने कहा कि बिहार में लाखों महिलाओं के पास सिर्फ 1-2 धूर ही जमीन है। इसी अल्प जमीन पर पूरे परिवार का जीवन गुजरता है। उन्होंने कहा कि जनादेश 2007 और जन सत्याग्रह 2012 में जन संगठनों द्वारा की गयी मांगों को केन्द्र सरकार ने अनदेखा कर दिया है। यूपीए सरकार के मुखिया को स्मरण करवाने के लिए अब पोस्टकार्ड भेजा जा रहा है। 

स्मार्ट कार्ड को लेकर गरीबों का मोहभंग

गया : राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) के तहत बनने वाले स्मार्ट कार्ड की राशि 30 रुपए को बढ़ाकर सीधे दोेगुना 60 रुपए कर दिया गया। स्मार्ट कार्ड बनवाने की राशि दोगुना कर देने से गरीबों में आक्रोश है। इनका कहना है कि सरकार पहले 30 रुपए में 30 हजार रुपए का इलाज करवाने की सुविधा देती थी। अब राशि 60 रुपए कर दी गयी है, तो 60 हजार रुपए के इलाज की सुविधा दी जानी चाहिए।
ज्ञात हो कि केन्द्र सरकार ने बीमा कम्पनी के साथ समझौता कर रखा है। इसके तहत एक परिवार के 5 सदस्यों के लिए स्मार्ट कार्ड 30 रुपए में बनाना है। स्मार्ट कार्ड बन जाने पर कार्डधारी अस्पताल में 30 हजार रुपए तक का इलाज करा सकेंगे। तीस हजार रुपए में एक जन अथवा 4 अन्य पर खर्च किया जा सकेगा। लेकिन, अब 30 रुपए में स्मार्ट कार्ड नहीं बनेगा। इसकी कीमत दोगुनी कर दी गयी है। अब गरीबों को स्मार्ट कार्ड के लिए 60 रुपए देने पडं़ेगे। भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा कहा गया है कि स्मार्ट कार्ड बनाने में अधिक खर्च होता है। इसी कारण से कीमत में बढ़ोतरी की गयी है। अगर बढ़ी राशि को राज्य सरकार वहन करें तो कोई आपत्ति नहीं है।
प्रगति ग्रामीण विकास समिति के परियोजना समन्वयक अनिमेश निरंजन का कहना है कि महंगाई को देखते हुए 60 हजार रुपए बीमा कंपनी को इलाज के लिए देना चाहिए। साथ ही 5 के बदले 6 सदस्यों का इलाज होना चाहिए। इस तरह एक ही परिवार के 6 सदस्यों का ईलाज 60 हजार रुपए में हो सकेगा। आरएसबीवाई के तहत निर्गत स्मार्ट कार्ड से केवल इनडोर मरीजों पर ही खर्च करने का प्रावधान है। परिवार के सदस्य मामूली रूप से बीमार पड़ते हैं तो उनको स्मार्ट कार्ड के द्वारा आउट डोर में चिकित्सों से परामर्श और दवा-दारू की सुविधा नहीं दी जाती है। इस कारण गांव घर में स्मार्ट कार्ड के प्रति लोगों का मोहभंग होने लगा है।

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

दलित की प्रेम कहानी ने दुनिया को चौकाया

Dashrath Manjhi's Path
खास खबर
राजीव मणि
प्यार में चांद-तारें तोड़ लाने की बात कइयों से सुनी जाती है। लेकिन, किसी ने लाया नहीं। भारतीय इतिहास में भी अमर-प्रेम के दर्जनों किस्से हैं। शाहजहां ने तो अपनी पत्नी की याद में ताजमहल तक बनवा डाला। अमर-प्रेम की इस निशानी को बनवाने में कई हजार मजदूर लगें। वर्षों बीत गये। खजाना तक खाली हो गया। यहां तक कि जनता के सामने भुखमरी छा गयी।
अभी तक जितने भी उदाहरण दिये जाते हैं, उन सबमें दशरथ मांझी का प्रेम महान है। बिहार के गया जिले के इस दलित ने जो कारनामा कर दिखाया, सबपर भारी पड़ा। दशरथ ने अपनी पत्नी की मुहब्बत में विशाल पहाड़ को बीच से काटकर रास्ता बना डाला। प्रेम में किया गया यह काम इसलिए सबपर भारी पड़ा, क्योंकि यह सिर्फ अपनी पत्नी के लिए नहीं, पूरे समाज के लिए था। वह भी अकेले, सिर्फ छेनी, हथौड़ी और खंती के सहारे।
Dashrath Manjhi's Samadhi
इसके बावजूद इस महान कार्य को काफी दिनों तक लोग जान नहीं पाये। कारण कि सुदूर क्षेत्र में है यह गांव। गया जिले से 28 किलोमीटर दूर है वजीरगंज। और यहां से करीब 18 किलोमीटर दूर गहलौर। पहाड़ से घिरा एक गांव। यहीं दशरथ मांझी का घर है।
कहते हैं न कि बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी। सो देर से ही सही, बात निकली भी और दूर तलक गयी भी। सत्यमेव जयते-2 टीवी कार्यक्रम के लिए आमिर खान यहां 25 फरवरी को पहुंचे। फिर क्या था, इसी बहाने इस अमर-प्रेम की चर्चा दूर-दूर तक हो गयी। दशरथ मांझी के इस अनोखे प्रेम ने फाॅरवर्ड प्रेस के इस संवाददाता को भी अपनी ओर खींचा।
अतरी प्रखंड के गहलौर पहुंचकर दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ से मुलाकात हुई। बात ही बात में दशरथ बाबा की कहानी निकली। बाबा का परिवार अब भी इसी गांव मंे उसी मिट्टी के मकान में रहता है। पहाड़ के दूसरी ओर जंगल से लकड़ी काटकर और उसे बेचकर बाबा का गुजारा चलता था। बाबा रोज सुबह लकड़ी काटने पहाड़ की दूसरी ओर कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर जाते थे। उनकी पत्नी, फगुनी, रोज दोपहर में खाना लेकर पहुंचती थी। शाम होते-होते वे लकड़ी लेकर लौटते थे।
Dashrath Manjhi's House
एक दिन बाबा की पत्नी खाना लेकर गयी हुई थी। बाबा को तेज प्यास लगी। पानी नहीं था। बाबा ने अपनी पत्नी को पानी लाने भेजा। वह पानी लाने गयी। गांव से मटके में पानी लेकर पहाड़ पर चढ़ने लगी। रास्ते में पैर फिसला और लुढ़ककर बुरी तरह घायल हो गयी। इधर, बाबा प्यास से ब्याकुल। अपनी पत्नी को कोसते बाबा घर की तरफ देखने निकले। रास्ते में खून से लथपथ और बेहोश उनकी पत्नी मिली। मटका टूटा पड़ा था। पानी बह चुका था। फिर क्या था, घर में कोहराम मच गया। अपनी पत्नी को उठाये बाबा घर पहुंचे। पूरे इलाके में डाॅक्टर नहीं, स्वास्थ्य केन्द्र व अस्पताल नहीं! किसी तरह घरेलू चिकित्सा कर खून रोका गया। बाद में अस्पताल पहुंचाया गया। अपनी पत्नी को लाचार, बेवस देखकर बाबा बेचैन हो उठे। गुस्से में ही मुंह से निकला था, अगर यह पहाड़ बीच में नहीं होता तो फगुनिया को अस्पताल समय पर ले जाया जाता। इस पहाड़ ने कइयों की जिन्दगी छीन ली है। मैं इसे खत्म कर दूंगा।
वर्ष 1960 की बात है। दशरथ बाबा हाथ में छेनी, हथौड़ी और खंती लिए अकेले ही निकल पड़े। विशाल पहाड़ के पास पहुंचे। पहाड़ को गौर से देखा। और फिर आसपास के क्षेत्रों में छेनी-हथौड़ी की आवाज गूंजने लगी। और जब 1982 में यह आवाज बंद हुई तो पूरे 22 वर्ष गुजर चुके थे। पहाड़ का सीना चीड़ बीच से रास्ता निकाला जा चुका था। 360 फुट लंबे, 22 फुट चैड़े इस रास्ता ने पूरे गांव को एक नई जिन्दगी दी।
Dashrath Manjhi's Tool
हालांकि बाबा की पत्नी का देहान्त रास्ता बनने से एक साल पहले ही हो चुका था। फिर भी बाबा टूटे नहीं। पत्नी की मौत के बाद और तेजी से लग गये। जैसे फगुनिया मरकर भी बाबा के और करीब आ गयी हो। इसके बाद बाबा ने पहाड़ तथा आसपास के क्षेत्रों में पेड़ लगाना शुरू किया। कुछ ही वर्षों में पूरा इलाका हराभरा हो गया। बाबा के पुत्र भागीरथ बताते हैं कि बाबा ने अपने ही हाथों से एक कुआं भी खोदा था। बाद में धीरे-धीरे यह भर गया।
बाबा को दो संतानें हैं। एक पुत्र, एक पुत्री। बेटी का नाम है लौंगिया देवी। लौंगिया बताती है कि इसके बाद तो बाबा पहाड़ से भी ज्यादा सख्त और मजबूत इरादा वाले हो गये। एक बार बाबा को किसी ने बताया कि दिल्ली बहुत दूर है। वहां जाना आपके बस की बात नहीं। फिर क्या था, बाबा ने सोच लिया कि मैं दिल्ली जाऊंगा और वह भी पैदल। एक दिन बाबा दिल्ली जाने को पैदल ही घर से निकल पड़े और अंततः दिल्ली पहुंचकर ही दम लिया।
दशरथ बाबा की बहू बसंती देवी, दामाद मिथुन और पोती लक्ष्मी, सभी ने बताया कि बाबा सबरी माता के भक्त थे। भगवान श्रीराम को जूठे बेर खिलाती सबरी की तस्वीर वे सदा पास रखते थे। उसकी पूजा करते थे। बाबा चाहते थे कि सबरी माता का एक मंदिर भी गांव में बने। वे प्रयासरत भी थे। लेकिन, इसी बीच 17 अगस्त, 2007 को बाबा चल बसे। अपने पीछे प्यार की बेमिशाल कहानियां छोड़कर। पूरे गांव-समाज के लिए कुछ बनाकर। बसंती देवी कहती है कि गांव के मंदिर में हमलोगों को जल्द घुसने नहीं दिया जाता है। इसलिए ही बााबा अलग से सबरी माता की मूर्ति लगवाना चाहते थे। साथ ही गहलौर को ब्लाॅक का दर्जा भी वे दिलवाना चाहते थे।
Family Of Dashrath Manjhi
मिथुन कहते हैं कि गांव और आसपास के दूर-दूर तक के इलाके में बाबा के समय न कोई स्वास्थ्य केन्द्र था और ना ही कोई विद्यालय। बाबा का यह सपना भी उनके जीते जी पूरा नहीं हो सका। बाबा के मरने के बाद स्कूल खुला। अस्पताल का काम अभी चल रहा है।
आज यहां ना दशरथ मांझी हैं और ना ही फगुनी देवी, लेकिन आसपास के पूरे इलाके में उन्हें महसूस किया जा सकता है। पहाड़ के बीचोबीच रास्ता पर, जंगलों में ‘मांउटेनमैन’ के होने का आभास होता है। बाबा का पूरा परिवार आज उसी मकान में एकसाथ रहता है, जहां बाबा ने अमर-प्रेम की कहानी लिखी। उनकी छेनी, हथौड़ी, खंती आज भी परिवार के पास सुरक्षित है। और साथ ही वह मिट्टी का घर जिसमें बाबा रहते थे।

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

आज भी मजदूरों की स्थिति बेहद खराब : उदय नारायण

राजीव मणि

दानापुर। प्रगति ग्रामीण विकास समिति ने अपने 25 साल पूरे कर लेने पर दानापुर स्थित अपने प्रगति भवन परिसर में पिछले दिनों रजत जयंती समारोह मनाया। इस अवसर पर बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चैधरी ने कहा कि प्रारंभ में सरकार रोटी, कपड़ा और मकान की बात करती थी। अब उसमें विस्तार करके स्वास्थ्य और शिक्षा को जोड़कर कार्य किया जा रहा है। इन बुनियादी जरूरतों को पूर्ण करवाने में पूरा तंत्र सक्रिय है। उन्होंने कहा कि देश-प्रदेश के नवनिर्माण में मजदूरों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। खेत-खलिहानों और भव्य इमारतों के निर्माण में लगे मजदूरों की स्थिति बहुत ही खराब है। आज गरीबों को सावधान रहने की जरूरत है। वोट की राजनीति करने वाले गरीबों को वोट के अधिकार से वंचित करने पर उतारू हैं। वहीं पूंजिपति मीडिया में गलत बयानी कर गरीबों को धोखा देने में लगे हैं। ऐसे में लोगों को ही निर्णय करना है कि वे कहां थे और कहां जाना है। इससे पहले उदय नारायण चैधरी ने प्रगति भवन का लोकार्पण किया। 
इस अवसर पर सांसद रामकृपाल यादव ने कहा कि आजादी के 66 साल के बाद भी गांव में रहने वाले 80 प्रतिशत लोगों का विकास नहीं हो पाया है। हालत में सुधार नहीं होने के कारण वे शहर की ओर पलायन करते हैं। आज भी गांवों में शुद्ध पेयजल और शौचालय की व्यवस्था नहीं की जा सकी है। गांव में शिक्षा का स्तर गिरा है। एक ही कमरा में दो-तीन कक्षा के बच्चों को बैठाकर पढ़ाया जाता है। गरीबों को जल, जंगल, जमीन के अधिकार से वंचित रखा गया है। 20 सालों में शहरों की आबादी काफी बढ़ी है। शहर में आकर लोग जैसे-तैसे जिंदगी बिताते हैं। दूूसरी ओर सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों, औद्योगिक घरानों व पूंजिपतियों को मॉल और व्यापार के लिए दिल खोलकर जमीन देती है। गरीब लोगों का घर का सपना अपना नहीं हो पाता है। 
इस अवसर पर बिहार राज्य खाद्य निगम के प्रबंध निदेशक डाॅ. दीपक प्रसाद ने कहा कि बिहार में एक फरवरी से खाघ सुरक्षा अधिनियम, 2013 लागू कर दिया गया है। सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने गृह जिला नालंदा से इसकी शुरूआत की है। योजना शुरू होते ही इस मामले में बिहार अव्वल हो गया है। उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि बिना भेदभाव के लोगों को न्यूनतम भोजन मिल सके। साफ शब्दों में कहें तो कोई भी इंसान भूखे पेट नहीं सोए। कम कीमत और सुनिष्चित ढंग से अनाज मिले। एक व्यक्ति को पांच किलोग्राम अनाज मिलेगा। तीन रुपए में चावल, दो रुपए में गेहंू और एक रुपए में मक्का प्रति किलोग्राम प्राप्त होगा।
ऑक्सफैम इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंधक प्रवीण कुमार ने कहा कि जमीन की जंग को जन आंदोलन बनाने वाले लोग भूख और जमीन की लड़ाई को अंतिम मुकाम तक पहुंचाने में पीछे नहीं रहें। आज इस आंदोलन को विस्तारित करने की जरूरत है। इस अवसर पर अल्पसंख्यक आयोग की उपाध्यक्ष पद्मश्री सुधा वर्गीज ने कहा कि आज नारी शिक्षा को मजबूती से लागू करने की जरूरत है। 
इससे पहले अतिथियों का स्वागत प्रगति ग्रामीण विकास समिति के सचिव प्रदीप प्रियदर्शी ने किया। समिति के कार्यकारिणी समिति के सदस्य उमेश कुमार ने 25 साल के कार्य के बारे में चर्चा की। समारोह का संचालन मंजू डुंगडुंग ने किया। पैक्स के परियोजना पदाधिकारी आरती वर्मा, किसान आयोग के अध्यक्ष सीपी सिंह, प्रकाश कुमार, रामबाबू, पूर्व मुखिया साधु शरण आदि ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता आलोक कुमार, पुष्पा लकड़ा, विजय गौरेया, वीके सिंह, अनिल पासवान, सिंधु सिन्हा, स्वाति कश्यप आदि उपस्थित थे। प्रयाग सेन्टर के द्वारा नुक्कड़ नाटक पेश किया गया।